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एस जयशंकर Exclusive इंटरव्यू: रूस-यूक्रेन से लेकर चीन, विदेश मंत्री ने बताया कूटनीति का 'मिशन मोदी' प्लान

S Jaishankar Exclusive Interview: एस जयशंकर ने कहा कि अगर हम भारत की क्षमता की बात करें तो जब तक हमारे पास टेक्नोलॉजी नहीं है, हम विकसित नहीं बन सकते.जब तक हमारे पास मैन्युफेक्चरिंग नहीं आएगी तो टेक्नोलॉजी कैसे आएगी.

मोदी सरकार के 100 दिन की विदेश नीति समझिए.

दिल्ली:

पीएम मोदी के तीसरे टर्म के 100 दिन (Modi 3.0 100 Days) के कार्यकाल में विदेश नीति की एक्टिविटीज के तौर पर क्या-क्या हुआ, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस पर विस्तार से बात की. एस जयशंकर (S Jaishankar Interview) ने कहा कि आज तीसरे कार्यकाल के 100 दिन हो चुके हैं. हमारी तैयारी इसकी पहले से थी. हमने बहुत तेज शुरुआत की है. भारत की विदेशी नीति कैसी है, मोदी 3.0 के 100 दिन पूरे होने के मौके पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से खास बातचीत में बताया.

एस जयशंकर ने कहा कि विदेश नीति की बात करें तो भारत की प्रगति के टारगेट को विदेश नीति और कूटनीति के जरिए बढ़ाया है. हमारी जिम्मेदारी भी है कि दुनिया में स्थिरता रहे. यह दुनिया की भी जरूरत है. 100 दिन की बात करें तो पीएम सिंगापुर गए.वह दौरा सेमिकंडक्टर का विजिट था.मलेशिया के पीएम आए और उन्होंने हमारी स्किल को अपने देश में न्योता दिया. 

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विदेश मंत्री ने कहा कि डायरेक्ट इकोनॉमिक इशूज थे. बहुत सारे देश हमारे नए कार्यक्रम या नए इनिशिएटिव-जैसे 12 इंडस्ट्रियल नोट बनने वाले हैं. इंफ्रास्ट्रक्टर को हम आगे ले जाने वाले हैं. स्किलिंग और टैलेंट को हम कैसे बढ़ाएं. ऐसी चीजों से बहुत सारे जुड़ना चाहते हैं. पीएम मोदी के निजी कनेक्शन और कोशिश की वजह से यह आगे बढ़ रहा है. 

मिडिल ईस्ट शांति बहाली में भारत की भूमिका

यूक्रेन और मॉस्को पर एस जयशंकर ने कहा कि यह युद्ध का तीसरा साल चल रहा है. मिडिल ईस्ट में तनाव है और गाजा में भी लड़ाई चल रही है. जोर इस पर है कि भारत शांति के पक्ष में क्या कर सकता है.पीएम मोदी जुलाई में रूस गए थे, उसके बाद अगस्त में यूक्रेन गए थे. इसी सिलसिले में जी-7 समेत दूसरे देशों से भी बात चल रही है, उसको हम कैसे आगे ले जाएं. पिछले 100 दिनों में ये बड़े विषय हैं. 

विदेश नीति पर भारत की पॉजिशनिंग समझिए

अगर भारत की पाॉजिशनिंग समझनी है तो ये 100 दिन देखने की जरूरत है. इसकी झलक मोदी सरकार के 100 दिन से मिलती है. पीएम मोदी पहले दौरे पर पश्चिम देशों के संगठन जी 7 में मुलाकात के लिए इटली गए थे. संसद सत्र की वजह से पीएम मोदी SEO की बैठक में नहीं जा सके, मैं उनके प्रतिनिध के तौर पर अस्ताना शिखर सम्मेलन में गया था. ये ज्यादातर रूस, चीन, सेंट्रल एशिया, ईरान, ये देश हैं. हमारे रिश्ते रूस और यूक्रेन दोनों के साथ ही हैं. अभी हम उस पोजिशन में हैं कि पीएम मोदी दोनों ही देशों के राष्ट्रपति के साथ बैठकर खुले तौर पर बातचीत कर सकते हैं.

कुछ ही दिनों में क्वाड भी होने वाला है. पीएम मोदी आशियान भी गए. हमारे ज्यादातर पड़ोसी देश पीएम मोदी के शपथ ग्रहण में भारत आए थे. इसी दौरान अगस्त में वॉइस ऑफ ग्लोबल समिट हुई.इसमें 100 से ज्य़ादा विकासशील देश शामिल हुए थे. हम दनिया के ज्यादातर देशों के साथ कैसे बनाकर रखें, हमारे राष्ट्रहित और दुनिया की भलाई के लिए हम जो भी कर रहे हैं, इसमें कोई विरोधाभास नहीं है. हम दोनों साथ साथ कर रहे हैं. इसके लिए हमारी पोजिशनिंग बहुत अच्छी है. 

मेन्युफैक्चरिंग पर मोदी सरकार के कदम

टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत-चीन के रिश्तों पर एस जयशंकर ने कहा कि अगर हम भारत की क्षमता की बात करें तो जब तक हमारे पास टेक्नोलॉजी नहीं है, हम विकसित नहीं बन सकते.जब तक हमारे पास मैन्युफेक्चरिंग नहीं आएगी तो टेक्नोलॉजी कैसे आएगी.आधार मैन्युफैक्चरिंग कैसे आएगी. हमारा दुर्भाग्य है दशकों से कहीं न कहीं मैन्युफैक्चरिंग में पीछे रहे.एनवायरमेंट के तर्क पर इस मामले में कुछ लोग बाधाएं डालते हैं. मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी तो रोजगार भी बढ़ेगा. मोदी सरकार ने इस पर जोर दिया है. इसके लिए जो स्किल चाहिए तो बजट में इसे भी महत्व दिया गया है.

भारत पर दुनिया का रिस्पॉन्स कैसा?

आज पूरी दुनिया भारत को लेकर बहुत उत्साहित है. पिछले 100 दिन में हमारी सिग्नलिंग बहुत ही पॉजिटिव है.इंडस्ट्री पर, इंफ्ररास्ट्रक्चर पर,स्किलिंग पर सरकार के जो बड़े फैसले आए हैं, उसको दुनिया मानेगी. दुनिया का इस पर रिस्पॉन्स होगा. 

भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर विदेश मंत्री

कभी-कभी हर चीज आपके अनुकूल नहीं रहती है. कहीं न कहीं कुछ ऐसी आवाजें उठती हैं, कुछ लोग कुछ कह देते हैं या कुछ कर देते हैं. ईरान का जो भी बयान आया उस पर हमारे प्रवक्ता ने कल टिप्पणी की है. बंग्लादेश में जो भी घटनाएं हुई हैं, उनके यहां पर उनकी अपनी पॉलिटिक्स होगी. वहां जो भी उनका वह उनका आंतरिक मामला है. हमारा काम वर्तमान सरकार के साथ रिश्ता कायम कर आगे बढ़ना है. वो लोग अगर अपनी पोजिशन और रिश्तों के महत्व को समझ लेंगे तो  पड़ोसी रिश्तों की क्लाविटी और लेवल कुछ और होगा.  

सभी पड़ोसी एक दूसरे पर निर्भर होते हैं.पहले भी यहां पर राजनीतिक घटनाएं हुई थीं, लेकिन बाद में सब सैटल हो गया. बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हमें टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. हम इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं. हमारा कोऑपरेशन और व्यापार अच्छा है तो हम उसी रास्ते पर जाना चाहते हैं.

'समिट ऑफ द फ्यूचर' पर फोकस

आने वाले दिनों में दो बड़ी चीजें हैं, पहला- समिट ऑफ द फ्यूचर. यह सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स हैं. विकाशशील देशों की तरक्की का यह असेसमेंट है. उनको 2030 तक के लिए कुछ टारगेट दिए गए थे. कोरोना और अन्य कारणों से सभी लोग टारगेट से काफी पीछे हैं, यह चिंता की बात है. उसकी तैयारी की बात करें तो अगस्त में तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबस समिट में पीएम मोदी ने जब इसकी बैठक बुलाई थी तो विकाशशील देशों के कंसर्न का निचोड़ उन्होंने निकाला था. समिट ऑफ द फ्यूचर में पीएम जो भी बोलोंगे, उसे दुनिया बहुत ही ध्यान से सुनेगी.

क्वाड की बैठक पर नजर रखने की जरूरत

दूसरी जरूरी चीज क्वाड की बैठक है. यह राष्ट्रपति जो बाइडेन का आखिकी क्वाड होगा. जापान के पीएम का भी कार्यकाल खत्म होने को है. पिछले कुछ सालों में क्वाड में काफी प्रगति हुई है. हम चाहते हैं कि इस मीटिंग में और भी कदम आगे बढ़ें.इन दोनों को ही जरूर फॉलो किया जाए. 

पीम मोदी के पहले 100 दिनों की झलक

पीएम मोदी का तीसरे कार्यकाल में भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत प्रगति होगी. अगर पिछले 10 सालों में इतना इंफ्रास्ट्रक्चर और इतने एजुकेशन इंस्टीट्युशन्स खड़े किए गए हैं. चाहें एयरपोर्ट या फिर रेलवे या सड़क देख लीजिए, ये अगले पांच साल में डबल हो जाएंगे. पीएम मोदी के इस कार्यकाल को नेशनल डेवलपमेंट के माध्यम से डिफाइन किया जाएगा. पीएम मोदी डेमोक्रेटिक वर्ल़्ड में सबसे सीनियर लीडर्स में से एक हैं.लोग उनकी कद्र करते हैं और उनकी सोच पर लोग बल देते हैं.आज दुनिया युद्ध, संघर्ष और तनाव से जो जूझ रही है, इसमें पीएम मोदी का निजी तौर पर योगदान हो सकता है.पहले 100 दिनों में इसकी थोड़ी बहुत झलक देखने को मिलेगी. 
 

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