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This Article is From Oct 02, 2016

पांच बार नामित हुए पर महात्मा गांधी को नहीं मिला नोबेल शांति पुरस्कार

पांच बार नामित हुए पर महात्मा गांधी को नहीं मिला नोबेल शांति पुरस्कार
पांच बार नॉमिनेट होने के बाद भी महात्मा गांधी को नहीं मिला नोबल शांति पुरस्कार.
स्टॉकहोम: नोबेल पुरस्कारों को वापस नहीं लिया जा सकता है इसलिए इस पुरस्कार के विजेता के चयन के लिए निर्णायकों को बहुत अधिक सोच विचार करना पड़ता है. अगले दो हफ्तों में नोबेल पुरस्कारों की घोषणा होने वाली है.

नोबेल पुरस्कारों के जनक अल्फ्रेड नोबेल चाहते थे कि इस पुरस्कार से ऐसे लोगों का सम्मान किया जाए जिनके आविष्कार और काम की वजह से समाज में महान परिवर्तन आया हो. लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ जब पुरस्कार पर सवाल भी उठे. आइए डालते हैं एक नज़र...

जब महात्मा गांधी को नहीं मिला शांति पुरस्कार
पूरी दुनिया में महात्मा गांधी को अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी के रूप में जाना जाता है. उन्होंने अहिंसा के बल पर भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गांधी को नोबेल के शांति पुरस्कार के लिए पांच बार नामित किया गया लेकिन उन्हें कभी यह पुरस्कार नहीं दिया गया.

शांति पुरस्कार समिति भी यह बात स्वीकार कर चुकी है कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार नहीं देना एक चूक थी. साल 1989 में महात्मा गांधी की मौत के 41 साल बाद बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को शांति पुरस्कार देते हुए नोबेल समिति के चेयरमैन ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी थी.

जब लोबोटॉमी के आविष्कारक को मिला मेडिसिन प्राइज़

लोगों के दिमाग को समझना और उसे सही दिशा देना उस समय एक अच्छा आविष्कार माना गया और साल 1949 का मेडिसिन पुरस्कार पुर्तगाल के वैज्ञानिक एनटोनियो एगा मोनिज़ को लोबोटॉमी के आविष्कार के लिए दिया गया. लोबोटॉमी में दिमागी बीमारी के इलाज के लिए बनाया गया था.

40 के दशक में इलाज का यह तरीका काफी प्रचलित हुआ, अवॉर्ड सेरेमनी में लोबोटॉम को 'मनोचिकित्सा के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक' कहा गया. हालांकि, बाद में इसके गंभीर परिणाम देखे गए. कुछ मरीजों की मौत हो गई, कईयों का दिमाग बुरी तरह से डैमेज हो गया. यहां तक कि जिन ऑपरेशनों को सफल कहा गया, उनमें भी मरीज़ मानसिक रूप से निष्क्रिय हो गए. 50 के दशक में लोबोटॉमी का उपयोग बहुत कम हो गया.

जब जहरीला गैस अटैक करने वाले को मिला कैमिस्ट्री का पुरस्कार
साल 1918 में फ्रिट्ज़ हर्बर को अमोनिया से नाइट्रोजन और हाइड्रोजन गैस बनाने के लिए कैमिस्ट्री पुरस्कार दिया गया. इस तरीके को उर्वरक तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जिससे कृषि के क्षेत्र में काफी बदलाव भी आया.

लेकिन चयन समिति ने इस बात को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हर्बर ने कैमिकल हमलों में जर्मनी की मदद की थी. उन्होंने बेल्जिम पर 1915 में हुए क्लोरिन गैस अटैक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी.

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