महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोटिंग होनी है और 23 नवंबर को परिणाम आएंगे. इस बार का पिछले कई चुनावों से अलग है. महाराष्ट्र में हमेशा से मराठा और किसान की राजनीति सबसे प्रमुख स्थान पर रहती थी. मराठवाड़ा से सीएम बनना तय होता था. लेकिन अब महाराष्ट्र में बदलाव आया है. शिवाजी की राजनीति के साथ-साथ इस बार हिंदू एकता प्रमुख मुद्दा बन गया है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के यूपी में दिए बयान को राज्य की राजनीति में एंट्री मिली. खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ के बयान को नए अंदाज में राज्य की राजनीति में लोगों के बीच दिया और अब यह मुद्दा देश की राजनीति में नया रुख तय करने को तैयार है. ऐसा लग रहा है कि अब आगे आने वाले चुनाव में यह मुद्दा कई सालों तक रैलियों में गूंजा करेगा. संभव है कि इस बार के झारखंड और महाराष्ट्र के चुनावों के परिणाम इस बात पर मुहर लगाएंगे कि आगे दलों को किस मुद्दे को लेकर राजनीति करनी होगी.
महाराष्ट्र में ही क्यों हुई हिंदुत्व कार्ड की शुरुआत
महाराष्ट्र की राजनीति से इस मुद्दे की शुरुआत क्यों हुई. इसे भी समझना जरूरी है. महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदू एकता की बात पर बीजेपी सबसे ज्यादा माइलेज लेने में लगी है. कारण यह है कि बीजेपी के विरोधी किस कार्ड पर राजनीति करते हैं. शिवसेना उद्धव ठाकरे हिंदू कार्ड पर राजनीति करती रही है. एनसीपी शरद पवार हमेशा से मराठा और किसान कार्ड पर राजनीति करते रहे हैं. इसके अलावा पश्चिम महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटरों पर भी पार्टी राजनीति करती रही है. तीसरा अहम विरोधी दल कांग्रेस जिस पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लगातार लगते रहे हैं. इससे साफ है कि बीजेपी को राज्य में सत्ता में वापसी के लिए शिवसेना यूबीटी, एनसीपी शरद पवार और कांग्रेस को एक साथ निपटने के लिए हिंदू वोटरों को एकजुट करना ही पड़ता. बीजेपी पिछले कुछ चुनावों में देख चुकी है कि मुस्लिम मतदाताओं को वोट उन्हें न के बराबर ही मिलता है. इससे पार्टी के रणनीतिकारों ने महाराष्ट्र में यह प्रयास किया है कि हिंदुत्व कार्ड खेला जाए और इसका परिणाम उन्हें बाकी देश में इस कार्ड को खेलने, न खेलने पर फैसला लेने में मदद करेगा.
बीजेपी को जीत के लिए हिंदू एकजुटता क्यों दिखी
हाल के संपन्न लोकसभा चुनाव में बीजेपी का अनुमान रहा है कुछ सीटों में बीजेपी के हारने का कारण केवल मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण ही था. मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए विपक्ष के प्रचार, और मौलानाओं की अपील जिसे बीजेपी वोट जिहाद का नाम दे रही है, को जिम्मेदार मानती है. बीजेपी ने यह भी पाया कि लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने आरक्षण को लेकर लोगों के बीच जाति की आग भड़काई. जिससे हिंदू वोट बंटे और दूसरी तरफ विपक्ष ने मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया जिसका खामियाजा बीजेपी को चुनाव परिणाम में देखने को भी मिला. इससे सबक लेकर बीजेपी के रणनीतिकारों ने इस चुनाव में जीत के लिए यह मान लिया कि वोटों को पाने के लिए हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण ही एक मात्र जीत का फॉर्मूला है. बीजेपी जानती है कि हिंदू वोटरों के पास कई पार्टियों का विकल्प है लेकिन मुस्लिम वोटरों के पास केवल बीजेपी विरोधी पार्टियों का विकल्प है. हिंदू वोटरों के लिए शिवसेना यूबीटी, राज ठाकरे की मनसे, शरद पवार की पार्टी सभी है. लेकिन खास बात यह है कि बीजेपी ने शरद पवार पर ज्यादा निशाना नहीं साधा है. बीजेपी अपनी ओर से एआईएमआईएम पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर हमला कर रही है. और उधर, ओवैसी बीजेपी के बयानों का जवाब दे रही है.
कौन हैं बीजेपी के रणनीतिकार
बीजेपी के रणनीतिकारों में राज्य से सबसे आगे देवेंद्र फडणवीस हैं. वहीं मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार भी पीछे नहीं है. पार्टी के राज्य इकाई के प्रमुख, चंद्रशेखर बावनकुले ने भी पार्टी की इस रणनीति पर मुहर लगाई है.
कौन हैं शिवसेना के रणनीतिकार
बात करें शिवसेना (एकनाथ शिंदे) की तो यहां पर शिंदे अकेले ही सारे फैसले ले रहे हैं. शिंदे को बीजेपी का पूरा साथ है. बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर पार्टी ने पूरे राज्य में चुनावी लड़ाई की रणनीति बनाई है. एकनाथ शिंदे का मानना है कि इस चुनाव किसी भी पार्टी प्रचार का ज्यादा समय नहीं मिला है. इसलिए उनका मानना है कि पार्टी ने लोगों के बीच परिचित चेहरों पर दांव लगाया है. पार्टी के शिवसेना के वरिष्ठ नेता हैं और इन नेताओं की पहले से ही पब्लिक में पकड़ है. इन लोगों ने लोगों के काम किए हैं और अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर काम किया है. इसलिए पार्टी को जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी. इसके साथ ही पार्टी का यह भी मानना है कि राज्य सरकार की नीतियां जिसमें लाडली बहना प्रमुख है, से लोगों का वोट महायुति को मिलेगा.
कौन हैं अजित पवार के रणनीतिकार
महायुति की तीसरी सबसे अहम पार्टी अजित पवार की है. अजित पवार अपने चाचा की पार्टी एनसीपी को संभाल रहे हैं. अजित पवार के साथ प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे, छगन भुजबल, नवाब मलिक पार्टी के लिए प्रमुख रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं. अजित पवार पश्चिमी महाराष्ट्र की राजनीति पर ही ध्यान केंद्रित रख रहे हैं. इसी इलाके से उन्हें अपने चाचा शरद पवार की एनसीपी के खिलाफ ज्यादातर चुनाव लड़ना है. ऐसे में अजित पवार सारा हिंदू वोट तो खींच नहीं सकते, इसलिए उन्होंने सेकुलर राजनीति का पुराना फंडा ही आगे बढ़ाया है. उन्हें मुस्लिम वोट चाहिए. मराठा वोट में उनकी पकड़ जितनी है उतना वोट तो मिल ही जाएगा. अब सवाल यह है कि महायुति में सहयोगी बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड का उनपर कितना असर पड़ेगा यह 23 तारीख को पता चलेगा. वैसे लोकसभा चुनाव में भी अजित पवार का स्ट्राइक रेट काफी कम रहा था.
कौन हैं कांग्रेस के रणनीतिकार
महायुति के बाद बात करते हैं एमवीए की. एमवीए यानी महाविकास आघाड़ी. इसमें भी तीन प्रमुख दल हैं. कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार और शिवसेना उद्धव ठाकरे. कांग्रेस पार्टी के राज्य इकाई के प्रमुख नाना पटोले, बाबा साहब थोरात और पृथ्वीराज चव्हाण इस बार चुनाव में अहम रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं. कांग्रेस पार्टी अभी भी उन्हीं मुद्दे पर राजनीति कर रही है जिन मुद्दों पर पहले भी राजनीति की है. पार्टी अपने पारंपरिक वोटों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाह रही है.
कौन हैं शिवसेना यूबीटी के रणनीतिकार
शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे हैं. अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भी राजनीति में अहम रोल दिया है. लेकिन संजय राउत, अनिल परब और मिलिंद नार्वेकर पार्टी अहम किरदार हैं जो पार्टी को आगे बढ़ाने में दिनरात लगे हुए हैं. शरद पवार हों या अन्य किसी भी मामले पार्टी की ओर संजय राउत डील के लिए मध्यस्थता करते हैं. अनिल देसाई और मिलिंद नार्वेकर भी राजनीतिक मुद्दों पर पार्टी में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं. मिलिंद के कद का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब नारायण राणे ने पार्टी छोड़ी तब उन्होंने खुल मिलिंद का नाम लिया था लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की. पार्टी लोगों को यह बताने की रणनीति पर काम कर रही है कि एकनाथ शिंदे ने पार्टी के साथ गद्दारी की है. पार्टी शिवसेना में टूट के लिए बीजेपी को दोषी बता रही है. लोगों के बीच यह सहानुभूति का मुद्दा पार्टी लेकर जा रही है. पार्टी बीजेपी पर आरोप लगा रही है कि तोड़-फोड़ कर बीजेपी सत्ता में आना चाहती है. पार्टी इस तरह लोगों से वोटों की अपील भी कर रही है ताकि एमवीए को सत्ता में आने का मौका मिले.
कौन हैं एनसीपी शरद पवार के रणनीतिकार
गठबंधन की तीसरा अहम घटक है एनसीपी शरद पवार. यहां पर पवार का इतना ऊंचा है कि देश में उन्हें राजनीति का वर्तमान में सबसे बड़ा नेता माना जाता है. उन्हें महाराष्ट्र में मराठा छत्रप भी कहा जाता है. इनके सेनानायकों में जयंत पाटिल, बेटी सुप्रिया सुले अहम हैं. जयंत राज्य इकाई के प्रमुख हैं. सुप्रिया के साथ जयंत ने मिलकर सीट बंटवारा से लेकर उम्मीदवारों के चयन पर काम किया. पार्टी अजित पवार को गद्दार साबित करने के कार्ड पर खेल रही है. पार्टी को अजित पवार की उम्र और अजित पवार की गद्दारी पर सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद है.
कौन बनेगा सीएम
इन दलों में सबसे अहम मुद्दा है. कौन बनेगा सीएम. उद्धव ठाकरे बीजेपी को छोड़कर सीएम बनने के लिए ही अलग हुए थे. अब कांग्रेस और एनसीपी भी सीएम कुर्सी पर नजर लगाए है. ऐसे में कौन बनेगा सीएम चुनाव बाद एमवीए में एक अहम विवाद खड़ा करेगा. वैसे उद्धव को छोड़कर बाकी दोनों ही दल कह चुके हैं जिसके पास ज्यादा सीटें होंगी उसका नेता सीएम होगा.
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