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This Article is From Mar 31, 2024

देशभर में लोकसभा चुनाव का शोर, दिल्ली के बॉर्डर पर अब भी डटे हैं किसान; बताया क्या है आगे का प्लान?

राष्ट्रीय किसान महासंघ  के सदस्य अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा, ''हम 13 फरवरी से सीमाओं पर बैठे हैं और हमने खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया है. हमारा मानना है कि जब विपक्ष में होते हैं तो सभी दल किसानों का समर्थन करते हैं लेकिन जब सत्ता में होते हैं तो वे सभी कॉर्पोरेट समर्थक और किसान विरोधी बन जाते हैं.” 

देशभर में लोकसभा चुनाव का शोर, दिल्ली के बॉर्डर पर अब भी डटे हैं किसान; बताया क्या है आगे का प्लान?
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर देश भर में जारी तैयारी के बीच पंजाब के किसानों का आंदोलन जारी है. , पंजाब के किसान लगभग दो महीने से हरियाणा के साथ लगती राज्य की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं. किसान पहले दिल्ली मार्च की तैयारी कर रहे थे हालांकि बाद में सरकार के साथ कई दौर की बातचीत के बाद उन्होंने अपने मार्च को स्थगित कर दिया.  इन किसानों ने अपनी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी आदि की मांगों को लेकर 13 फरवरी को दिल्ली तक मार्च शुरू किया, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें हरियाणा सीमा पर रोक दिया. किसान तब से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं.

ऑल इंडिया किसान सभा के सदस्य कृष्ण प्रसाद ने कहा कि किसान भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार और उसकी नीतियों का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

क्या तमिलनाडु के किसानों वाला मॉडल अपनाएंगे पंजाब के किसान?
करीब तीन दशक पहले सरकारी नीतियों से नाखुश तमिलनाडु के एक हजार से अधिक किसानों ने अपनी शिकायतों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए लोकसभा चुनाव में एक ही निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया था. यही वह समय था जब निर्वाचन आयोग (EC) को इरोड जिले के मोदाकुरिची से अप्रत्याशित 1,033 उम्मीदवारों को समायोजित करने के लिए पारंपरिक 'मतपत्र' के बजाय 'मतपत्र पुस्तिका' जारी करनी पड़ी.

ऑल इंडिया किसान सभा के सदस्य कृष्ण प्रसाद ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ''हालांकि हमारा वह (चुनावी) रास्ता अपनाने की योजना नहीं है. दिल्ली में हुई महापंचायत में हमने भाजपा का विरोध करने और उसकी नीतियों को उजागर करने के अपने रुख की घोषणा की थी. हम इस मुद्दे पर एकजुट हैं.'' 

किसानों को राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नहीं
राष्ट्रीय किसान महासंघ  के सदस्य अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा, ''हम 13 फरवरी से सीमाओं पर बैठे हैं और हमने खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया है. हमारा मानना है कि जब विपक्ष में होते हैं तो सभी दल किसानों का समर्थन करते हैं लेकिन जब सत्ता में होते हैं तो वे सभी कॉर्पोरेट समर्थक और किसान विरोधी बन जाते हैं.” 

14 मार्च को दिल्ली में किसानों ने की थी महापंचायत 
पुलिस ने किसानों को कुछ शर्तों के साथ ही 'किसान मजदूर महापंचायत' आयोजित करने की अनुमति दी थी. जिसमें कहा गया था कि वह ट्रैक्टर ट्रॉली नहीं लाएंगे और न ही कोई मार्च निकालेंगे और 5,000 से अधिक प्रदर्शनकारी एक जगह इकट्ठा भी नहीं हो सकेंगे. इस महापंचायत का मकसद "सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ाई को तेज करना", एमएसपी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना था."

मोदाकुरिची में किसानों के अनोखे विरोध के कारण EC को हुई थी परेशानी
गौरतलब है कि तमिलनाडु के किसानों के अनोखे विरोध के कारण मोदाकुरिची में चुनाव करवाने में चुनाव आयोग को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था. मोदाकुरिची के 1,033 किसानों ने 1996 के लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया था, तो निर्वाचन आयोग को 'अखबारों की तरह मतपत्र' छापने पड़े थे और चार फुट से अधिक ऊंची मतपेटियां रखनी पड़ी थी. उम्मीदवारों की लंबी सूची को समायोजित करने के लिए मतदान के घंटे भी बढ़ाए गए थे. उस चुनाव में द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) की सुब्बुलक्ष्मी जगदीशन अन्नाद्रमुक के आर एन किट्टूसामी को हराकर विजयी हुई थीं.

जगदीशन, किट्टुसामी और एक निर्दलीय को छोड़कर सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 88 उम्मीदवारों को कोई वोट नहीं मिला, वहीं 158 को केवल एक-एक वोट मिला. वर्ष 1996 के आम चुनाव में सबसे अधिक 13,000 उम्मीदवार थे. इसके बाद निर्वाचन आयोग ने जमानत राशि 500 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दी. इससे 1998 के लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या प्रति सीट 8.75 तक लाने में मदद मिली.

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