Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आजीवन कारावास का मतलब दोषी की जिंदगी समाप्त होने तक जेल में रहने से है और इसका मतलब केवल 14 या 20 साल जेल में बितानाभर नहीं है, जो कि एक गलत धारणा है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘हमें ऐसा लगता है कि इस बारे में एक गलत धारणा है कि आजीवन कारावास की सजा पाए कैदी को 14 साल या 20 साल की सजा काटने के बाद रिहाई का अधिकार है।’
न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन और मदन बी लोकुर की पीठ ने कहा, ‘आजीवन कारावास की सजा पाए कैदी को आखिरी सांस तक जेल में रहना होता है, बशर्ते कि उसे उचित प्राधिकार वाली किसी सरकार ने कोई छूट नहीं दी हो।’
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही विभिन्न सरकारों द्वारा ‘त्यौहार’ के मौके पर एकसाथ बड़ी संख्या में कैदियों की रिहाई किए जाने की परंपरा पर भी रोक लगा दी और कहा कि रिहाई संबंधी हर मामले की मामला दर मामला जांच की जरूरत होती है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं