सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट करने के कारण आपराधिक अवमानना (Contempt of Court) के दोषी अधिवक्ता प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) को सोमवार को सजा सुनाते हुए उनपर एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगाया. कोर्ट ने कहा कि भूषण ने न्याय प्रशासन की संस्था की प्रतिष्ठा को कलंकित करने का प्रयास किया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह कोई कठोर दंड देने की बजाय उदारता दिखाते हुए भूषण पर एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगा रहीहै. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी अधिवक्ता प्रशांत भूषण को सजा सुनाते हुए कहा कि जुर्माने की एक रुपये की राशि 15 सितंबर तक जमा करानी होगी और ऐसा नहीं करने पर उन्हें तीन महीने की कैद भुगतनी होगी तथा तीन साल के लिए वकालत करने पर प्रतिबंध रहेगा.
प्रशांत भूषण को सजा सुनाए जाने के बाद कवि कुमार विश्वास ने ट्वीट करते हुए कहा कि सजा को और बढ़ाया जा सकता है. उसमें केवल इतना जोड़ना है कि एक रुपये को चार चवन्नी के रूप में जमा कराना है. कुमार विश्वास ने ट्वीट किया है, 'मीलॉर्ड चाहें तो प्रशांत भूषण की सजा को थोड़ा और बढ़ा सकते हैं, अपने हालिया आदेश में सिर्फ़ यह जोड़कर की प्रशांत भूषण एक रुपये को 'चार चवन्नी' के रूप में जमा कराए.' इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि 'और हाँ शुद्ध परिहास के इस ट्वीट को Contempt न मान लें.'
मीलॉर्ड चाहें तो #PrashantBhushan की सजा को थोड़ा और बढ़ा सकते हैं, अपने हालिया आदेश में सिर्फ़ यह जोड़कर की @pbhushan1 एक रुपये को “चार चवन्नी” के रूप में जमा कराएँ
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) August 31, 2020
(और हाँ शुद्ध परिहास के इस ट्वीट को Contempt न मान लें)
बता दें, सुप्रीम कोर्ट की ओर से सजा सुनाए जाने के बाद भूषण ने कहा कि वह एक रुपये का जुर्माना जमा करेंगे. उन्होंने आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का भी संकेत दिया. भूषण ने संवाददाताओं से कहा कि उच्चतम न्यायालय और न्यायपालिका के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान है और उनके ट्वीट शीर्ष अदालत का अनादर करने पर केंद्रित नहीं थे. पीठ ने सजा के बारे में अपने 82 पेज के फैसले में कहा,‘‘हमारे सुविचारित दृष्टिकोण में अवमाननाकर्ता (भूषण) द्वारा किया गया कृत्य बहुत ही संगीन है. उन्होंने न्याय के प्रशासन की उस संस्था की प्रतिष्ठा को कलंकित करने का प्रयास किया जिसका वह स्वयं भी हिस्सा हैं.' इसने कहा, ‘‘दोहराने की कीमत पर, हमें यह कहना है कि देश की जनता का विश्वास ही कानून के शासन के लिए न्यायिक संस्था की बुनियाद है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था का अनिवार्य पहलू है.'
न्यायमूर्ति मिश्रा ने फैसला पढ़कर सुनाया लेकिन इसमें फैसले के लेखक का नाम नहीं था. न्यायमूर्ति मिश्रा दो सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. न्यायालय ने 14 अगस्त को अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ दो अपमानजनक ट्वीट के मामले में आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए कहा था कि इन्हें जनहित में न्यापालिका के कामकाज की स्वस्थ आलोचना नहीं कहा जा सकता.
Video:अवमानना केस : प्रशांत भूषण ने कहा, सम्मानपूर्वक चुकाऊंगा जुर्माना
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