जून 2013 में उत्तराखंड में आई भारी तबाही के लिए कई हाइड्रो प्रोजेक्ट्स भी जिम्मेदार थे। केंद्र सरकार ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में सौंपे हलफनामे में एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर सहमति जताई है। केदारनाथ त्रासदी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या उत्तराखंड के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स ने इस त्रासदी को बढ़ाया है। इस मामले पर काफ़ी समय तक टालमटोल हुई और फिर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आख़िरकार केंद्र सरकार ने अपना हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में सौंप दिया है।
हलफनामे के मुताबिक केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री गंगा की अविरल धारा बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। ख़ास बात यह है कि इस मसले पर बनी एक्सपर्ट कमेटी की जिस रिपोर्ट से केंद्र सरकार अभी तक मुंह चुराती आ रही थी अब अपने हलफनामे में सरकार ने उस रिपोर्ट के नतीजों पर सहमति जता दी है।
इस रिपोर्ट में उत्तराखंड के हाइडल प्रोजेक्टस के निर्माण और कामकाज पर कई प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं। हलफनामे में कहा गया है कि पिछले साल आई त्रासदी के पीछे ये हाइडल प्रोजेक्ट्स भी एक बड़ा कारण रहे।
यह भी कहा गया है कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट कंपनियों से भी बात की गई, लेकिन उनके पास कोई ठोस उपाय नहीं है।
त्रासदी से बचने के लिए और इस हिमालयी इलाके के अध्ययन के लिए बारह महीने का और वक़्त मांगा गया है।
हलफनामे में कहा गया है कि सात नदियों को उनके मूल स्वरूप में बनाए रखना ज़रूरी है क्योंकि 2200 मीटर से ऊपर का हिस्सा भूकंप और भूस्खलन के लिहाज़ से काफ़ी संवेदनशील है।
यह भी कहा गया है कि छह प्रोजेक्ट्स की नए सिरे से समीक्षा की ज़रूरत है। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाने के लिए हर हाल में मज़बूत और ठोस वैज्ञानिक आधार की ज़रूरत पर हलफनामे में ज़ोर दिया गया है।
अब सरकार के इस हलफनामे पर अब से कुछ देर बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के 39 में से 24 निर्माणाधीन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाई हुई है।
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