कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या आगामी चुनाव पूर्व पीएम एच. डी. देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई साबित होगा या यह क्षेत्रीय दल त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में 2018 की तरह एक बार फिर ‘किंगमेकर' के तौर पर उभरेगा.
दलबदल, आंतरिक दरार और एक ही परिवार की पार्टी जैसी छवि से जूझ रहे जनता दल (एस) के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि देवेगौड़ा के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किस प्रकार पार्टी को आगे लेकर जाएंगे.
खास बात ये है कि पार्टी के गठन से लेकर अब तक राज्य में पार्टी ने अपने दम पर कभी भी सरकार नहीं बना पाई. हालांकि, 2006 में भाजपा और 2018 में कांग्रेस की मदद से जनता दल (एस) सत्ता में जरूर आई थी.
बहरहाल, इस बार पार्टी ने अपने दम पर सरकार बनाने के लिए ‘मिशन 123' का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है. ऐसे में ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि आखिर इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पार्टी क्या कुछ करती है. वैसे बता दें कि राज्य में मई में चुनाव होने हैं और सत्ता में आने के लिए कुल 224 में से कम से कम 123 सीट पर जीत की जरूरत है.
हालांकि, पार्टी स्वयं को एकमात्र कन्नड़ पार्टी बताकर क्षेत्रीय गौरव के नाम पर वोट मांग रही है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों एवं पार्टी के भीतर भी संशय है कि वह 123 का लक्ष्य हासिल कर पाएगी या नहीं. पार्टी ने अभी तक 2004 के विधानसभा चुनाव में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, जिसमें उसने 58 सीट जीती थीं. पार्टी ने 2013 में 40 सीट और 2018 में 37 सीट पर जीत दर्ज की थी.
पार्टी के कुछ नेताओं को जनता दल (एस) के सत्ता में आने या सरकार गठन में अहम भूमिका निभाने की उम्मीद है.
जनता दल (एस) के एक पदाधिकारी ने अपना नाम गोपनीय रखे जाने की शर्त पर कहा कि यदि इस प्रकार की स्थिति पैदा होती है, तो हम कुमारन्ना (कुमारस्वामी) को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए निश्चित ही दबाव बनाएंगे, लेकिन हम पिछली बार के खराब अनुभव के बाद अपने चयन को लेकर अधिक सतर्क रहेंगे और इस बार अपने संभावित गठबंधन साझेदार के साथ सीटों को लेकर सावधानी से समझौता करेंगे.
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