- शिबू सोरेन आदिवासी समुदाय के एक बड़े नेता के तौर पर उभरे
- उन्होंने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और सात बार दुमका लोकसभा सीट से सांसद रहे
- शिबू सोरेन ने अलग राज्य के लिए लंबे समय तक आंदोलन किया और कई सालों के संघर्ष के बाद उनका सपना पूरा हुआ
झारखंड के पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री रह चुके शिबू सोरेन का निधन हो गया है. सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से पिता के निधन की जानकारी दी गई. जिसमें उन्होंने कहा कि वो शून्य हो चुके हैं. शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति का एक बड़ा नाम थे और पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे. आइए जानते हैं कि शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर कैसा रहा और कैसे वो झारखंड की राजनीति में सबसे बड़ा नाम बन गए.
ऐसा था शिबू सोरेन का शुरुआती सफर
शिबू सोरेन का जन्म बिहार के हजारीबाग में 11 जनवरी 1944 को हुआ था. उन्हें दिशोम गुरु और गुरुजी के नाम से लोग जानते थे. उनके पिता सोबरन मांझी आदिवासी समुदाय से थे और काफी ज्यादा पढ़े-लिखे थे. बतौर शिक्षक उन्होंने अपने समुदाय के लिए कई जरूरी काम किए और तमाम मुद्दों पर आवाज उठाई. इसी के चलते उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कॉलेज में पढ़ रहे शिबू सोरेन ने आदिवासी समुदाय को एकजुट करना शुरू कर दिया. यहीं से उनके राजनीति में कदम रखने की भी शुरुआत हो गई.
आदिवासियों के हकों की लड़ाई लड़ने वाला नेता
साल 1972 में शिबू सोरेन और उनके साथियों ने एक राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया, जिसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ. इसके बाद उन्होंने 1977 में पहली बार चुनाव लड़ा. हालांकि पहले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला 1980 से शुरू हुआ और दुमका लोकसभा सीट से वो सात बार सांसद रहे.
आदिवासियों के लिए अलग राज्य बनाना उनका सपना था. शिबू सोरेन ने अलग झारखंड की मुहिम चलाने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने अलग राज्य के लिए लंबा आंदोलन चलाया और पूरी राजनीति इसके लिए समर्पित कर दी. उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति का नतीजा था कि बिहार से अलग झारखंड राज्य साकार हुआ.
आदिवासियों के दिशोम गुरु
शिबू सोरेन ने सूदखोरों और महाजनों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, जिसका असर बिहार के अलावा देश के तमाम राज्यों में दिखा. इसके बाद उनकी लोकप्रियता आदिवासी समुदाय में काफी बढ़ती गई. दिशोम गुरु का मतलब देश का गुरु होता है. खेतों और जमीन को लेकर उनके आंदोलनों के बाद लोग उन्हें गुरु और दिशोम गुरु के नाम से पुकारने लगे. उस दौर में पार्टी के अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो थे, लेकिन झामुमो का सबसे बड़ा चेहरा शिबू सोरेन बन गए.
इमरजेंसी में गए जेल
इमरजेंसी में शिबू सोरेन का नाम उन तमाम बड़े नेताओं में शामिल था, जिन्हें गिरफ्तार करने के आदेश जारी हुए थे. हालांकि ये वो वक्त था जब सोरेन झारखंड का एक बड़ा नाम बन चुके थे, यही वजह है कि अधिकारियों ने उन्हें किसी तरह सरेंडर करने के लिए मनाया. आखिरकार शिबू सोरेन ने सरेंडर किया और उन्हें इस दौरान धनबाद की जेल में बंद किया गया.
तीनों बार क्यों पूरा नहीं हुआ कार्यकाल?
शिबू सोरेन ने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. साल 2000 में झारखंड राज्य के गठन के साथ ही चुनाव हुए और एनडीए को बहुमत मिला. इस बार सोरेन के हाथ सत्ता नहीं आई. अगले विधानसभा चुनाव के दौरान शिबू सोरन केंद्र में कोयला मंत्री का पदभार संभाल रहे थे. इस चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन राज्यपाल ने शिबू सोरेन को बुलाकर उन्हें सीएम पद की शपथ दिला दी. हालांकि बाद में सोरेन अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए और कुछ ही दिन बाद इस्तीफा देना पड़ा.
इसके बाद साल 2008 में शिबू सोरेन दूसरी बार सीएम बने, लेकिन इस बार भी किस्मत ने साथ नहीं दिया. उन्हें पद पर बने रहने के लिए विधायक का चुनाव लड़ना पड़ा, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार राजा पीटर ने उन्हें हरा दिया. जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके ठीक एक साल बाद फिर से सोरेन को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने की कोशिश हुई और उन्हें ये पद मिल भी गया, लेकिन सहयोगी पार्टी बीजेपी में कलह के चलते एक बार फिर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं