करगिल की रहने वाली तसलीमा नाज (18) थलसेना के प्रतिष्ठित ‘सुपर-50' कार्यक्रम के तहत वर्तमान में कश्मीर में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की कोचिंग ले रही है और उसका कहना है कि वह अपने गृहनगर वापस जाने से पहले एक अच्छे मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में अपना दाखिला सुनिश्चत करना चाहती है. नाज केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की उन चार लड़कियों में एक है, जिनका चयन 2022 में सेना के इस शैक्षणिक कार्यक्रम के लिए एक कठिन प्रक्रिया के बाद किया गया है. सेना इस कार्यक्रम के तहत 50 युवाओं को नीट परीक्षा की कोचिंग देती है.
नाज ने कहा, ‘‘मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं और इस सपने को साकार करने के लिए मैं करगिल से श्रीनगर आई. लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद, मुझे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और उसके बाद इस कार्यक्रम के लिए चुना गया. मुझे एक विज्ञापन के माध्यम से सुपर-50 कार्यक्रम के बारे में पता चला था.''
नाज ने बताया कि उसके पिता की करगिल में एक दुकान है और मां गृहिणी है. नाज ने बताया कि उसकी एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई है.
नाज ने कहा, 'मैंने 12वीं कक्षा की पढ़ाई इस साल एक प्राइवेट स्कूल से पूरी की. मेरी बड़ी बहन इंजीनियर है और जीवन में अच्छा करने के लिए मेरी प्रेरणास्रोत है. मैं उसे और मेरे परिवार को गौरवान्वित करना चाहती हूं.''
श्रीनगर के हफ़्त चिनार में सेना यह कोचिंग संचालित कर रही है. छात्रों के साथ ही इस मौके पर कानपुर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रतिनिधि ने भी इस बारे में बातचीत की, जो सार्वजनिक क्षेत्र के एक उपक्रम के साथ इस कार्यक्रम में साझेदार है.
एनजीओ के प्रतिनिधि ने कहा कि वर्तमान कार्यक्रम 2018 की ‘सुपर-30' पहल से विकसित हुआ और शुरू में जम्मू कश्मीर के केवल 30 विद्यार्थियों का चयन नीट की तैयारी कराने के लिए किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘‘2021 से इसमें 20 लड़कियों को भी शामिल किया गया है और इसलिए इसे सुपर-50 कहा जाता है. इन 20 लड़कियों में से चार लद्दाख क्षेत्र से, तीन जम्मू से और बाकी 13 कश्मीर क्षेत्र से हैं. लड़कियों की अधिकतम संख्या (सात) गांदेरबल से है जबकि पांच कुपवाड़ा से और एक शोपियां से है.''
कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को उनके लक्ष्यों के प्रति केंद्रित करना है. इस कार्यक्रम में शामिल होने से पहले उन्हें अपना मोबाइल फोन अपने घर पर ही छोड़ना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया उनका ध्यान भंग करते हैं, इसलिए मोबाइल फोन रखने की अनुमति नहीं दी गई है.
उन्होंने कहा कि हालांकि परिसर में एक लैंडलाइन फोन है, जिसका इस्तेमाल निर्धारित समय पर या किसी भी आपात स्थिति में किया जा सकता है.
करगिल की रहने वाली रुकसाना बटूल ने कहा, ‘‘हम अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके लिए हम यहां आए हैं. हमारे माता-पिता को हमसे बड़ी उम्मीदें हैं. एक निश्चित अवधि के लिए मोबाइल फोन का त्याग करने में कोई दिक्कत नहीं है, यदि इससे हमें अपना करियर बनाने में मदद मिलती हो.''
'आर्मी एचपीसीएल कश्मीर सुपर-50' में अध्ययनरत कश्मीर घाटी की लड़कियों ने कहा कि वे लद्दाख की अपनी सहपाठियों के साथ अंग्रेजी या हिंदी में बातचीत करती हैं.
कुपवाड़ा की रहने वाली 19 साल की शमीना अख्तर ने कहा, 'भाषा कोई बाधा नहीं है, हम एक-दूसरे की स्थानीय भाषा नहीं समझते, लेकिन हम एकदूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, क्योंकि हम एक ही कक्षा में पढ़ाई करते हैं और एक ही छात्रावास में रहते हैं.''
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