पहले एसपीजी चीफ को हटाया जाना, फिर डीआरडीओ प्रमुख की विदाई, और अब यूपीएससी के सदस्य रहे अमर प्रताप सिंह का इस्तीफा - आखिर इन सबके पीछे क्या कोई सरकारी दबाव काम कर रहा है...?
कम लोगों को याद होगा कि एपी सिंह वही सीबीआई निदेशक हैं, जिनके रहते बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ सीबीआई ने आरोपपत्र दायर किए थे, तो क्या एपी सिंह को उसी की कीमत इस्तीफा देकर चुकानी पड़ी है...?
क्या मोदी सरकार ने उन पर दबाब बनाया था कि अगर वह इस्तीफा नहीं देते तो मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से उनके रिश्तों को उजागर कर दिया जाएगा...?
कार्मिक मंत्रालय अभी तक यह नहीं बता रहा कि उसने एपी सिंह का इस्तीफा मंज़ूर किया है या नहीं... जानकारी के मुताबिक,
- मौजूदा सरकार के एक मंत्री ने एपी सिंह पर दबाव बनाया था कि वह अमित शाह का नाम आरोपपत्र में न डालें, उन्होंने एपी सिंह से मुलाकात भी की थी...
- एपी सिंह ने दबाव की वजह से सीबीआई टीम बदल डाली, लेकिन नई टीम भी इसी नतीजे पर पहुंची कि शाह के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया जाना चाहिए...
मगर अब हालात बदल चुके हैं...
- अमित शाह को क्लीन चिट मिल चुकी है और पूर्व निदेशक का नाम मीट कारोबारी से जोड़ा जा रहा है...
- सरकार के पास महाभियोग का भी रास्ता था, लेकिन वह लंबा और विवादों से घिरा रास्ता होता, इसलिए एपी सिंह पर दबाव बनाने की बात कही जा रही है...
हालांकि एपी सिंह को वर्ष 2018 तक रहना था, लेकिन वह बता रहे हैं कि बीते हफ्ते ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि एपी सिंह के मामले में कहीं यह इशारा भी तो नहीं छिपा हुआ कि सरकार मनमाने ढंग से उन अधिकारियों पर कार्रवाई कर रही है, जो पिछली सरकार से जुड़े रहे।
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