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This Article is From Aug 03, 2022

सरकार की राय है कि लगातार ताली बजाने वाले ही हैं सही : RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन

रघुराम राजन ने कहा, निश्चित रूप से हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक विकासशील, सवाल यह है कि हमें किस स्तर की वृद्धि की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक गरीब देश हैं

रघुराम राजन ने कहा कि, हमारी उस पीढ़ी के लिए गंभीर खतरे हैं जो अगले 10 वर्षों में स्कूलों से निकलकर स्नातक हो जाएगी.

नई दिल्ली:

ग्लोबल इकोनॉमी इन दिनों संकट से गुजर रही है. कोरोना का सबसे ज्यादा असर ग्लोबल इकोनॉमी पर ही पड़ा है. महंगाई आसमान छू रही है. भारतीय इकोनॉमी पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने एनडीटीवी से अपनी राय साझा की है. रघुराम राजन ने कहा कि, भारत में पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह की नौकरियों (Jobs) की जरूरत बढ़ी है, उसके लिए जारी विकास अपर्याप्त रहा है. हमें अपने लोगों के कौशल और शिक्षा को बढ़ाना होगा.

रघुराम राजन ने कहा कि, निश्चित रूप से हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक विकासशील है. सवाल यह है कि हमें किस स्तर की वृद्धि की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक गरीब देश हैं. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह की नौकरियों की जरूरत बढ़ी है, उसके लिए विकास अपर्याप्त रहा है. क्या हम आराम कर सकते हैं? बिलकुल नहीं. हमें और करने की जरूरत है, हमें और विकास की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि 7 प्रतिशत उपहास की बात है. यहां कोई शॉर्टकट नहीं हैं. हमें अपने लोगों के कौशल और शिक्षा को बढ़ाना होगा. हमारी उस पीढ़ी के लिए गंभीर खतरे में हैं जो अगले 10 वर्षों में स्कूलों से निकलकर स्नातक हो जाएगी. अगर हम स्किल बेस बना सके, तो नौकरियां आएंगी. उन्होंने कहा कि रुपये को वह करने दो जो वह करेगा. एक बार जब महंगाई नियंत्रण में आ जाती है, तो हमारे निर्यात के स्तर को देखते हुए रुपया अपने स्तर पर पहुंच जाएगा. सामान्य तौर पर कम से कम आगे देखते हुए कुछ उम्मीद है कि महंगाई में कमी आएगी.

रघुराम राजन ने कहा कि, मैं कहूंगा कि यह कहने का एक अलग कारण है कि 'हम श्रीलंका के रास्ते जा रहे हैं.' हम इससे बहुत दूर हैं. लेकिन मैं एक अन्य तथ्य पर कहूंगा, जो अल्पसंख्यकों और राष्ट्र में उनके स्थान का मुद्दा है. श्रीलंका में निश्चित रूप से बड़े अल्पसंख्यक तमिल हैं. जब उनके सामने रोजगारविहीन विकास की समस्या थी, तो नेताओं को अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर से ध्यान हटाना विशेष रूप से आसान लगा. इससे संघर्ष के हालात बने और जिसके परिणामस्वरूप गृहयुद्ध हुआ.

सांप्रदायिक संघर्ष आर्थिक माहौल को कैसे प्रभावित करता है:  राजन ने कहा कि लोग चिंतित हैं. पहले वे परिणामों के बारे में सोचते हैं. हम वहां अभी तक नहीं पहुंचे हैं. हम उससे कुछ दूरी पर हैं, लेकिन कुछ राजनेताओं द्वारा इस आग को जिस तरह से ईंधन दिया जा रहा है, उसे देखते हुए हमें इस बारे में चिंता करना शुरू कर देना चाहिए.

दूसरी बात जो वे सोचते हैं कि 'क्या मैं वास्तव में ऐसे देश के साथ व्यापार करना चाहता हूं जो अपने अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार करता है?' जब आप चीन को देखते हैं कि उइगरों के साथ उन्होंने क्या किया है, तो यूरोप और अमेरिका से चीन को बहुत अधिक झटका लगा है. वहां उत्पादित होने वाले सामानों पर प्रतिबंध है. यह कहने वाले शेयरधारक बढ़ रहे हैं, कि वे इन क्षेत्रों में व्यापार करना बंद करना चाहते हैं. नागरिक समाज भी एक भूमिका निभाता है और एक सहिष्णु, सम्मानजनक लोकतंत्र की छवि होना महत्वपूर्ण है.

भारत एक उदार लोकतंत्र : रघुराम राजन ने कहा कि, मैं 10 साल से भी कम समय के बारे में कहूंगा, कि अगर हम सही चीजें कर सकते हैं, तो हम निश्चित रूप से जो खो चुके हैं उसे फिर पा सकते हैं लेकिन जितना आगे आप इस सड़क पर उतरेंगे, यह उतनी ही कठिन होती जाएगी.

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में आपने व्यापक सलाह के बिना लिए गए कई निर्णय देखे हैं. उदाहरण के लिए डीमोनेटाइजेशन. अन्य उदाहरण के लिए कृषि बिल. लोकतंत्र में यह तब काम करता है जब आप संवाद करते हैं. यह एक अंतहीन संवाद नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि 'आलोचक' शब्द दिलचस्प है. मैं एक संतुलित दृष्टिकोण पेश करने की कोशिश करता हूं लेकिन संतुलन के लिए भी अक्सर आलोचना की आवश्यकता होती है. इस सरकार की राय है कि लगातार ताली बजाने वाले ही सही हैं क्योंकि सरकार गलत नहीं करती है. हर सरकार गलती करती है.

रघुराम राजन ने कहा कि, मैंने तब यूपीए सरकार की आलोचना की है जब मैं सत्ता का हिस्सा नहीं था और मैंने पिछली एनडीए सरकार के साथ काम किया है. मेरे पास अत्यधिक आलोचनात्मक होने का कोई कारण नहीं है. आलोचना करने वाले लोगों को आलोचक के रूप में लेबल न करें.

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