आधुनिक टेक्नोलॉजी दुनिया को तेज़ी से बदल रही है. ऐसे समय में जो खुद को नहीं बदलेगा वो पीछे रह जाएगा. यही वजह है कि भारत वक्त की नज़ाकत को पहचानते हुए नई टेक्नोलॉजी से होने वाले बदलावों के साथ खुद को भी तेज़ी से बदल रहा है. इसी के तहत भारत ने 'मेक इन इंडिया' इनिशिएटिव शुरू किया. उसी से जुड़ा अगला कदम 'मेक फॉर द वर्ल्ड' है. यानी भारत में बनाओ, दुनिया के लिए बनाओ. भारत अब देश में ही आधुनिकतम तकनीक से जुड़े निर्माण के लिए तैयार है. गुजरात के वडोदरा में सोमवार (28 अक्टूबर) को इसी से जुड़ी एक बड़ी पहल हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज़ ने वडोदरा में टाटा-एयरबस की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत की. इसके साथ ही भारत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेमीकंडक्टर चिप के सेक्टर में भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं.
आइए समझते हैं कि ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेमीकंडक्टर चिप सेक्टर में भारत कैसे आगे बढ़ता जा रहा है:-
कहां बनेंगे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (28 अक्टूबर) को गुजरात के वडोदरा में स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज के साथ टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) कैंपस में टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया. वडोदरा का C295 प्लांट पहला प्राइवेट प्लांट है, जहां मिलिट्री ट्रासपोर्ट एयरक्राफ्ट बनेंगे. मोदी ने C-295 एयरक्राफ्ट की फाइनल असेंबली लाइन (FAL) प्लांट की नींव अक्टूबर 2022 में रखी थी. इसके लिए भारत सरकार ने सितंबर 2021 में स्पेन की एयरबस डिफेंस एंड स्पेस के साथ 56 C-295 एयरक्राफ्ट के लिए 21,935 करोड़ रुपये में डील साइन की थी.
56 में से 40 एयरक्राफ्ट बनाने के लिए टाटा एडवांस लिमिटेड और एयरबस के बीच करार हुआ था. बाकी 16 एयरक्राफ्ट स्पेन से रेडी-टू-फ्लाई कंडीशन में भारत आने हैं. इसके लिए अगस्त 2025 की डेडलाइन रखी गई है. इसके तहत पहला एयरक्राफ्ट सितंबर 2023 में भारत आ भी चुका है.
एयरबस C-295 क्या है?
एयरबस C-295 को 90 के दशक में डेवलप किया गया था. तब इसे CASA C-295 कहा जाता था. इसके नाम में C CASA से लिया गया है. 2 का मतलब है इसमें 2 इंजन है. 95 का मतलब है यह अधिकतम 9.5 टन का पेलोड उठा सकता है. इस तरह इसका नाम C-295 हो गया.
एयरक्राफ्ट C-295 की क्या है खासियत?
-इस एयरक्राफ्ट का विंग्स स्पैन 25.81 मीटर का होता है. इसमें 2 क्रू मेंबर होते हैं. 71 ट्रूप्स (सैनिकों) के बैठने की कैपासिटी होती है. इसमें 5 कार्गो पैलेट होते हैं.
-ये एयरक्राफ्ट शॉर्ट टेक-ऑफ और लैंडिंग कर सकते हैं. ये 320 मीटर की दूरी में ही टेक-ऑफ कर सकता है. लैंडिंग के लिए 670 मीटर की लंबाई काफी है. ये पहाड़ी इलाकों में भी पूरी तरह कारगर है.
-ये एयरक्राफ्ट अपने साथ 7,050 किलोग्राम का पेलोड उठा सकता है. एक बार में अपने साथ 71 सैनिक, 44 पैराट्रूपर्स, 24 स्ट्रेचर या 5 कार्गो पैलेट को ले जा सकता है.
-ये एयरक्राफ्ट लगातार 11 घंटे तक उड़ान भर सकता है. 2 लोगों के क्रू केबिन में टचस्क्रीन कंट्रोल के साथ स्मार्ट कंट्रोल सिस्टम भी है.
-C-295MW ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट में पीछे रैम्प डोर है, जो सैनिकों या सामान की तेजी से लोडिंग और ड्रॉपिंग के लिए बना है.
-एयरक्राफ्ट में 2 प्रैट एंड व्हिटनी PW127 टर्बोट्रूप इंजन लगे हुए हैं. इन सभी प्लेन को स्वदेश निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूइट से लैस किया जाएगा.
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AI का इस्तेमाल जटिल से जटिल कामों में होता है. फैक्टरी में उत्पादों के निर्माण से लेकर आधुनिकतम हथियारों के इस्तेमाल तक या इंटरनेट पर होने वाली बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विस, इंश्योरेंस, हेल्थकेयर या अन्य सभी तरह की गतिविधियों में इसका इस्तेमाल होता है. इस टेक्नोलॉजी में महारत हासिल किए बगैर भारत जैसे बड़े देश का गुज़ारा नहीं है. खुद सरकार ये बात कई बार स्पष्ट कर चुकी है.
GenAI के लिए सरकार ने तैयार किया इकोसिस्टम
देश में अगर लोगों को अधिक से अधिक सुविधाएं देनी हैं या जटिल से जटिल निर्माण करना है तो Artificial Intelligence को अधिक से अधिक बढ़ावा देना होगा. इसके लिए सरकार ने एक पूरा इकोसिस्टम तैयार किया है, जिसकी वजह से AI में कई स्टार्ट अप तैयार हो रहे हैं.
नैसकॉम की रिपोर्ट India's Generative AI Startup Landscape 2024 के मुताबिक, भारत में Generative AI (GenAI) स्टार्टअप दो साल के अंदर ही 3.6 गुना हो गए हैं. 2023 के पहले छह महीनों में ये 66 थे. 2024 के पहले छह महीनों में 240 हो गए हैं. 12 महीनों में भारत में Generative AI में ज़बर्दस्त बदलाव आया है. 2023 से अब तक भारत के GenAI startups में $750 मिलियन डॉलर की फंडिंग आई है. Generative AI से जुड़े 75% स्टार्ट अप 2024 के पहले छह महीनों में पैसा कमाने लगे थे, जबकि 2023 के पहले छह महीनों में सिर्फ़ 22% स्टार्ट अप को ही राजस्व हासिल हो पाया था.
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सेमीकंडक्टर का नया मास्टर बनेगा भारत
AI के अलावा एक और क्षेत्र है सेमीकंडक्टर का, जिसे कोई नया सोना तो कोई नया तेल कह रहा है. कई जानकार कह रहे हैं कि कि Semiconductor is the new oil तो कई जानकार मानते हैं कि Semiconductors might even become the new “gold standard” of the future economy.
सेमीकंडक्टर फील्ड के तहत वो इलेक्ट्रॉनिक चिप्स बनती हैं, जिनके इस्तेमाल के बिना आप और हम अपने रोज़ के सामान्य से उपकरण भी इस्तेमाल नहीं कर सकते. चाहे वो आपका मोबाइल फोन हो, आपका कंप्यूटर, आपका टीवी हो, आपका फ्रिज हो या आपकी कार हो... हर चीज़ में चिप लगी हैं. ये वो उपकरण हैं जिनमें इलेक्ट्रॉनिक सर्किट लगे होते हैं. तेज़ी से बढ़ती टेक्नोलॉजी में ये चिप्स उतने ही जटिल होते जा रहे हैं. एक नाखून बराबर चिप इतने बड़े और जटिल कामों को अंजाम दे सकती है कि आप सोच भी नहीं सकते.
सेमीकंडक्टर में अभी दुनिया पर राज करता है ताइवान
भारत अब इस टेक्नोलॉजी में महारत हासिल करने की दिशा में बढ़ गया है. अभी तक इस क्षेत्र पर चीन, ताइवान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया जैसे देशों का ही प्रभुत्व था. ताइवान पर तो चीन का आक्रामक रवैया सिर्फ इसलिए भी दुनिया को डराता है कि इससे सेमीकंडक्टर चिप्स की सप्लाई में दिक्कत आ जाएगी और इसका असर हर क्षेत्र पर पड़ेगा. यही वजह है कि बड़े देश इस मामले में विकल्पों की तलाश कर रहे हैं. भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में एक नया विकल्प बनने की ओर है.
सेमीकंडक्टर सेक्टर में AI का रोल?
सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बड़ी भूमिका है. बहुत ही जटिल चिप्स, जिन्हें बनाने की प्रक्रिया को VLSI यानी Very Large scale integration कहते हैं, उसमें तो कटिंग एज टेक्नोलॉजी की ज़रूरत होती है. भारत इस क्षेत्र की टेक्नोलॉजी में भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और उसके पास ट्रेन्ड मैनपावर भी है. G20 के शेरपा और नीति आयोग के पूर्व CEO अमिताभ कांत ने NDTV वर्ल्ड समिट में बताया कि भारत के लिए सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना कितना अहम हो गया है..
कहां होंगे सेमीकंडक्टर यूनिट?
-गुजरात के सानंद में अमेरिका की माइक्रॉन टेक्नोलॉजी ऐसी ही एक यूनिट तैयार कर रही है. जो इस साल के अंत तक तैयार हो जाएगी.
-गुजरात के धोलेरा में Tata Electronics Private Limited (TEPL) ताइवान की दिग्गज कंपनी PSMC के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर फैक्टरी बना रही है.
-असम में Tata Semiconductor Assembly and Test Pvt Ltd (TSAT) नाम से एक सेमीकंडक्टर यूनिट लग रही है.
-गुजरात के ही सानंद में जापान की Renesas Electronics Corporation और थाइलैंड की Stars Microelectronics के साथ मिलकर CG Power एक यूनिट बना रहा है.
-Kaynes Semicon भी गुजरात के सानंद में एक यूनिट लगा रहा है.
-इसके अलावा अदाणी ग्रुप करीब 84 हज़ार करोड़ रुपये की लागत से इज़रायल की Tower Semiconductor के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक चिप निर्माण फैक्टरी बनाने की तैयारी कर रहा है.
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दुनिया की बड़ी कंपनियां निवेश की इच्छुक
भारत AI और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में जो इकोसिस्टम तैयार कर रहा है, उसे लेकर दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत में निवेश के लिए उत्साहित दिख रही है. इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ दिनों में इन क्षेत्रों के दिग्गज भारत के दौरे पर रहे हैं. आने वाले दिनों में कई और दिग्गज आने वाले हैं. अमेरिका की कंपनी NVIDIA के संस्थापक जेनसेन हुआंग का दौरा, तो इतना चर्चा में रहा जैसे किसी बड़े रॉकस्टार का होता है. वो इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में उनसे मिले भी थे. NVIDIA ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट, डेटा साइंस और हाइ परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग के लिए एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेसेस बनाती है. इसके अलावा मोबाइल कंप्यूटिंग और ऑटोमोटिव मार्केट के लिए चिप्स बनाती है.
क्या कहती हैं एक्सपर्ट?
NASSCOM की CSO संगीता गुप्ता कहती हैं, "अगर आप ग्लोबल सर्वे देखते हैं, तो यूथ में AI को लेकर बहुत भ्रम और डर है. क्योंकि उन्हें लगता है कि AI के आने से उनकी जॉब पर असर पड़ेगा. लेकिन अगर आप भारत के कॉन्टैक्स्ट में देखें, तो ऐसी नई टेक्नोलॉजी के आने से बेशक कुछ जॉब बदलती हैं, जॉब का नेचर बदलता है. लेकिन ओवरऑल नेट जॉब क्रिएशन ही होता है."
संगीता गुप्ता ने कहा, "भारत में अगर खासतौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को देखें, तो इसका फायदा ही है. AI के साथ अगर ह्यूमन काम करेंगे, तो प्रोडक्टिविटी बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी. इसका मतलब है कि बहुत छोटी कंपनियां भी, जो पहले आईटी नहीं करती थी. अब इसका इस्तेमाल कर सकेंगी. क्योंकि आपके पास ह्यूमन मशीन कॉम्बिनेशन होगा."
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