कोयले पर अध्यादेश बनाने के बाद संसद का सत्र शुरू होने के ठीक पहले सरकार ने कोयला ब्लॉक्स की नीलामी के लिए नियम तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। केंद्र सरकार अगले साल 11 फरवरी तक पहली नीलामी कराने की सोच रही है, लेकिन ड्राफ्ट रूल बनाते समय सरकार ने उन कोयला खदानों को भी नहीं बख्शा, जो घने जंगलों वाले इलाके में है।
जानकार कह रहे हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सारे कोल ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिए हैं तो केंद्र के पास एक सुनहरा मौका है कि वह कोयला खदानों को एक चरणबद्ध तरीके से नीलाम करे और घने जंगलों और जैव विविधता वाले इलाकों की खदानों को अभी बचाकर रखे।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों 214 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द किया था, जिनमें से कम से कम एक तिहाई घने जंगलों वाले इलाके में है। इनमें से बहुत सारे कोयला ब्लॉक ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां आदिवासी रहते हैं और ये इलाके जैव विविधता और बेशकीमती वनस्पतियों के लिए जाने जाते हैं। इसलिए इन कोल ब्लॉक्स के आसपास मौजूद पर्यावरण और सामाजिक परिवेश का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। मिसाल के तौर पर सोनभद्र को पास महान के जंगलों को लेकर लंबे समय से इसी आधार पर संघर्ष चल रहा है।
कोयला घोटाले में याचिकाकर्ता रहे सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि देश में जितना कोयले के भंडार हैं उनमें 15 फीसदी से भी कम घने जंगलों में हैं। बाकी कोल ब्लॉक्स – जो घने जंगलों से बाहर हैं – में जितना कोयला है वह 70 से 80 साल तक भारत की जरूरतों को पूरा कर सकता है तो पहले इन घने जंगलों वाले कोल ब्लॉक्स को नीलाम करने की क्या ज़रूरत है?”
ये बात भी ध्यान देने की है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने जब कोयला घोटाले पर बहस हुई तो खदानों के आवंटन को लेकर पर्यावरण और सामाजिक परिवेश पर पड़ने वाले असर पर चर्चा नहीं हुई। हालांकि बहुत सारे मामले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने लंबित थे। इसलिए इस मामले पर अभी एक असमंजस बना हुआ है कि आगे क्या होगा। माना जा रहा है कि घने जंगलों वाले कोल ब्लॉक्स की नीलामी फिर से की गई तो एक बार फिर से ट्रिब्यूनल के आगे सुनवाई के लिए कई मामले आ सकते हैं।
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