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This Article is From Mar 20, 2017

एक गिरफ्तारी ने कैसे बदल दिया फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को

एक गिरफ्तारी ने कैसे बदल दिया फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को
धीरेंद्र कुमार झा द्वारा लिखित 'योगी आदित्यनाथ और हिन्दू युवा वाहिनी' का मुख पृष्ट
नई दिल्ली: योगी आदित्यनाथ जोकि बीजेपी के एक फायरब्रांड नेता यानी आग उगलने वाले कट्टरवादी हिन्दू नेता के रूप में जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही उनकी उदार छवि को पेश किया जा रहा है. योगी के स्वभाव में उदारपन यूं ही नहीं आया है. 2007 में गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान योगी को 11 दिन के लिए सलाखों के पीछे रहना पड़ा था. सलाखों के पीछे बिताए ये 11 दिन उनके जीवन और स्वभाव में आए बदलाव की एक बड़ी वजह माने जाते हैं, क्योंकि जेल जाने और सुरक्षा गार्ड छिनने से योगी अंदर से इतना आहत हुए कि लोकसभा में अपने दर्द बयान करते हुए वे रो पड़े थे.

घटना जनवरी, 2007 की है, जब गोरखपुर सांप्रदायिक दंगे की आग में झुलसा रहा था. इस दंगे में दो लोगों की जान चली गई. काफी संख्या में मकान और दुकान फूंक दिए गए. कई दिनों तक गोरखपुर में कर्फ्यू लगा रहा. 28 जनवरी को योगी आदित्यानाथ अपनी हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं के साथ गोरखपुर के दंगाग्रस्त इलाके में जाने की तैयारी कर रहे थे कि प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए योगी और उनके साथियों को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था.

एक दिन पहले ही योगी ने गोरखपुर के एक छोटे से फसाद को सांप्रदायिक दंगा बनाने के मकसद ने एक भड़काऊ भाषण दिया था. उनके दल युवा वाहिनी ने भी 29 जनवरी को मुहर्रम के दिन मुस्लिमों द्वारा निकाले जाने वाले ताज़िए को जलाने और नष्ट करने की चेतावनी दी थी. ऐसे में प्रशासन ने योगी और उनके साथियों को गिरफ्तार कर हालात को काबू में करने का काम किया था. (ताज़िया एक तरह से हज़रत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक होता है, जो बांस और रंग-बिरंगे कागज, पन्नी आदि से बनाया हुआ होता है. मुस्लिम लोग इसके आगे बैठकर मातम करते हैं. बाद में शोक प्रकट करते हुए इसे दफनाया जाता है.)

गोरखपुर दंगे की आग आसपास के इलाकों में भी फैल रही थी. इसे काबू करने के लिए प्रशासन बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां कर रहा था. हालात को देखते हुए योगी आदित्यनाथ को उनके साथियों के साथ सलाखों के पीछे धकेल दिया था. जेल जाने के 11 दिन बाद 7 फरवरी को अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी. यह पहला और इकलौता मौका था जब स्थानीय प्रशासन ने आदित्यनाथ और उनके साथियों के खिलाफ इतनी तेजी से कार्रवाई की थी. यह सब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा चलाई जा रही तुष्टिकरण की नीति के तहत किया गया था.

मुलायम सिंह यादव ने यह कदम शायद इसलिए भी उठाया कि अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव जो होने जा रहे थे और आदित्यनाथ गोरखपुर में सांप्रदायिकता की आग सुलगा रहे थे. हालांकि इन चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. लोग तर्क देते हैं कि शायद मुलायम सिंह की तुष्टीकरण की नीति के ही चलते मुस्लिम समुदाय समाजवादी पार्टी से नाराज होकर मायावती की तरफ चला गया.

कारण जो भी रहा हो, लेकिन आदित्यनाथ की गिरफ्तारी और उनकी हिफाज़त में लगे सुरक्षाकर्मियों को हटाना, जैसी घटनाओं ने योगी जैसे कट्टर छवि वाले नेता को अंदर तक झिंझोड़कर रख दिया. गोरखपुर से सांसद बने योगी आदित्यनाथ को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने शून्य काल के दौरान अपनी बात रखने अनुमति दी थी. 11 दिन सलाखों के पीछे बिताने के बाद सदन में आपबीती बताते हुए आदित्यनाथ फफक कर रो पड़े थे. उन्होंने कहा कि ये दिन उनके लिए बेहद अपमानजनक और पीड़ादायक थे.

योगी ने लोकसभा अध्यक्ष से पूछा, 'क्या उन्हें सुरक्षा मिल पाएगी, या फिर हमारी स्थिति सुनील महातो के समान होगी?'
बता दें कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्य सुनील महातो की उन्हीं दिनों जमशेदपुर के पास हत्या कर दी गई थी.

आदित्यनाथ की आंखों में आंसू देखकर उनके ठाकुर समर्थक चिंतित हो उठे. यह उनकी मजबूत छवि को कमजोर करना दर्शा रहा था. इस कमजोरी को भांपते हुए युवा वाहिनी उनकी छवि को फिर से बनाने में जुट गई. रोने के पीछे तर्क दिया कि योगी आदित्यनाथ एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और भावनाओं से भरे हुए हैं. यह इसलिए भी किया गया क्योंकि आदित्यनाथ की छवि एक फायरब्रांड नेता की रही है और पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनके संगठन की गतिविधियां भी कुछ ऐसी ही रही हैं.

योगी की छवि सुधारने के लिए युवा वाहिनी ने फिर से अपना उग्र रूप दिखाना शुरू कर दिया और आदित्यनाथ ने मुस्लिमों के खिलाफ अपनी इस सेना को भड़काने का नेतृत्व भी किया, जैसा कि वे पहले से ही करते आए हैं. अपने भाषणों में उन्होंने अपनी पुरानी अतिवादी राजनीति का पालन तो किया, लेकिन बेहद सावधानी के साथ. भले ही ऊपर से वे खुद को पुराना योगी होने का दावा करते रहे.

कह सकते हैं कि आदित्यनाथ और उनकी युवा वाहिनी फिर से वातावरण को सांप्रदायिक माहौल में ढालने में लग गई थी. यह सब 2014 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों की तैयारियों का एक हिस्सा था. लेकिन बेहद सधे हुए कदमों के साथ. इसकी बानगी इस घटना में देखने को मिली.

4 दिसंबर, 2013 को अंबेडकरनगर जिले में एक हिंदू व्यापारी की हत्या हो गई थी. इस घटना के दो हफ्ते बाद योगी आदित्यनाथ घटनाकांड में शामिल तो हुए लेकिन एक तय दूरी और अस्पष्टता के साथ. यानी वे इस घटना में अपने पुराने रूप में नज़र नहीं आए.

16 दिसंबर को अंबेडकर नगर के अकबरपुर में आयोजित युवा वाहिनी की बैठक में उन्होंने इस हत्या के लिए वहां के समाजवादी पार्टी से स्थानीय विधायक अजीम-उल-हक़ को जिम्मेदार ठहराया और चेतावनी दी कि अगर 15 दिन के भीतर दोषी को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वे इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे. लेकिन पूरी चेतावनी और भाषण में उनकी उग्रता कहीं देखने को नहीं मिली.

(यह लेख धीरेंद्र कुमार झा द्वारा लिखित 8 पुस्तकों की श्रृंखला 'योगी आदित्यनाथ और हिन्दू युवा वाहिनी' का एक हिस्सा है. इस पुस्तक श्रृंखला को जुग्गेरनॉट बुक ने प्रकाशित किया है और इसके अंश प्रकाशक की अनुमति से प्रकाशित किए गए हैं.)

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