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यूपी में अखिलेश यादव के 'PDA' फार्मूले को कैसे कुंद कर रही है BJP, क्या मदद करेंगे 'महापुरुष'

समाजवादी पार्टी ने पीडीए के सहारे लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी मात दी थी. इससे उसके हौंसले बुलंद हैं. वह पीडीए के फार्मूले को आगे बढ़ा रही है. आइए जानते हैं कि सपा के पीडीए का कैसे मुकाबला कर रही है बीजेपी.

यूपी में अखिलेश यादव के 'PDA' फार्मूले को कैसे कुंद कर रही है BJP, क्या मदद करेंगे 'महापुरुष'
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल इन दिनों 'मिशन 2027'पर हैं. हर दल 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में लगा हुआ है.साल 2017 से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर चल रही समाजवादी पार्टी (सपा) पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के बाद से पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) के फार्मूले पर आगे बढ़ रही है.इसका उसे लोकसभा चुनाव में जबरदस्त फायदा भी मिला.वह बीजेपी को हराने में कामयाब रही.वहीं सत्तारूढ बीजेपी योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज और हिंदुत्व के सहारे 2027 का मिशन जीतने की कोशिश में है. उसे सपा के पीडीए से चुनौती मिल रही है. आइए देखते हैं कि बीजेपी के पास सपा के पीडीए से निपटने की क्या योजना है.    

अखिलेश के पीडीए पर बीजेपी की निगाहें

बीते 31 मई को उत्तर प्रदेश में अहिल्याबाई होलकर की जयंती बड़े पैमाने पर मनाई गई.अहिल्याबाई होलकर जयंती पर इतने आयोजन उत्तर प्रदेश में पहले कभी नहीं देखे गए. होलकर इंदौर की महारानी थीं. किसान परिवार में पैदा हुईं होलकर धनगर (गड़ेरिया-चरवाहा) जाति की थीं.  उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने अहिल्याबाई होलकर की जयंती मनाने के लिए उन इलाकों का खासतौर पर चयन किया, जहां पाल-बघेल-गड़ेरिया जाति की आबादी अधिक है. मुख्य समारोह आगरा में रविवार को आयोजित किया गया. इसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हुए. इसके जरिए  पाल-बघेल-गड़ेरिया जैसी जातियों को साधने की कोशिश की गई. इन जातियों की आबादी आगरा और अलीगढ़ मंडल में अधिक है. 

अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर आगरा में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ.

अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर आगरा में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ.

तराई के बहराइच जिले में हर साल मई में सैयद सालार मसूद गाजी का मेला (जेठ मेला) लगता था. इस साल योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देकर रोक दिया था. यह मामला कानूनी पचड़े में पड़ा, लेकिन लग नहीं पाया.अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) 10 जून को बहराइच में महाराजा सुहेलदेव राजभर का विजय दिवस मनाने जा रही है. महाराजा सुहेलदेव ने 10 जून 1034 को बहराइच के नानपारा मैदान में हुई लड़ाई में महमूद गजनवी के भतीजे और सेनापति सैयद सालार गाजी को मार गिराया था.सुभासपा सुहेलदेव को राजभर जाति का बताती है.वह जिस मेले का आयोजन कर रही है, उसके मुख्य अतिथि योगी आदित्यनाथ होंगे. सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए इस मेले का वर्चुअल उद्घाटन कराने के प्रयास किए जा रहे हैं. सुभासपा की राजनीति राजभर जाति के आसपास होती है.ओबीसी में आने वाली इस जाति के वोट यूपी के पूर्वांचल के जिलों में अच्छे खासे हैं.बीजेपी सुभासपा के जरिए राजभरों को साधने की कोशिश कर रही है. इसी के सहारे बीजेपी हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की भी कोशिश कर रही है.

चुनाव में बीजेपी को मिलता फायदा

बीजेपी ने इसी दिशा में एक कदम 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उठाया था. अलीगढ़ में खुले राजकीय विश्वविद्यालय का नाम राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर रखा गया. राजा महेंद्र प्रताप सिंह जाट समुदाय से आने वाले महापुरुष थे. उन्होंने ने ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लिए जमीन दी थी. इस विश्वविद्यालय का शिलान्यास पीएम मोदी ने 2021 में किया था. इस विश्वविद्यालय को नाम अलीगढ़ और उसके आसपास की जाट आबादी को ध्यान में रखते हुए राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर रखा गया था. इसका फायदा बीजेपी को मिला. बीजेपी ने अलीगढ़ के साथ-साथ बुलंदशहर और मथुरा जैसे जिलों में सभी सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की थी. ये सभी जाट बहुल इलाके माने जाते हैं. बीजेपी ने जाटलैंड में उस परिस्थिति में जीत दर्ज की जब जाट नेता जयंत चौधरी का सपा से गठबंधन था. 

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सपा सांसद रामजी लाल समुन के संसद में दिए एक बयान के बाद मचे राजनीतिक घमासान के बाद आगरा इस राजनीति का केंद्र बन गया था. वहां राजपूतों की करणी सेना ने कई बार सुमन की घेरेबंदी की. इसे भी ध्रुवीकरण की राजनीति का ही एक प्रयोग माना गया था. हालांकि करणी सेना के आंदोलन का प्रत्यक्ष तौर पर समर्थन नहीं किया था. लेकिन माना जाता है कि पर्दे के पीछे से करणी सेना को बीजेपी का समर्थन हासिल था. 

जाति जनगणना कराने का फैसला

नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जाति जनगणना कराने के लिए गए फैसले को भी अखिलेश यादव के पीडीए और कांग्रेस की ओर से आरक्षण पर खतरे के नैरेटिव को कुंद करने का प्रयास के रूप में ही देखा जा रहा है. देश में जाती जनगणना कराने की मांग सबसे अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग की ओर से ही की जा रही है.  

समाजवादी पार्टी ने अपने पीडीए फार्मूले के सहारे बीजेपी को उत्तर प्रदेश में करारी मात दी थी. लोकसभा चुनाव में मिली जीत के साथ सपा के हौंसले बुलंद हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव जोर-शोर से पीडीए की बात कर रहे हैं. इसी फार्मूले के सहारे अखिलेश 2027 में जीत के बाद उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. बीजेपी उनके इस दावे को पंचर करना चाहती है, इसलिए वह अपने स्तर पर पीडीए के फार्मूले को ध्वस्त कर उसका काट निकालने में जुटी हुई है. अब इस दिशा में सपा को कितना फायदा होता है और बीजेपी कितना फायदा उठा पाती है,उसका पता हमें 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों में ही नजर आएगा. 

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