गुजरात में हायर एजुकेशन बिल मंजूर हो गया है जिसका विद्यार्थी और शिक्षक विरोध कर रहे हैं.
अहमदाबाद:
गुजरात में हायर एजुकेशन काउंसिल बिल को राज्यपाल ने पिछले हफ्ते मंजूरी दे दी है. इस काउंसिल की स्थापना से राज्य में सभी सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों पर काउंसिल का आधिपत्य हो जाएगा और यूनिवर्सिटी और कालेजों की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी. छात्रों का आरोप है कि इससे शैक्षणिक संस्थाओं में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा और साथ ही राज्य में शिक्षा का स्तर और गिर जाएगा.
छात्रसंघ डीएसओ की नेता रिमी वाघेला का कहना है कि आम तौर पर शिक्षा की किसी भी काउंसिल के मुखिया शिक्षामंत्री होते हैं लेकिन गुजरात में मुख्यमंत्री होंगे. इसके अलावा इसमें आईएएस और अन्य सरकार द्वारा मनोनीत होंगे. ऐसे में छात्रों द्वारा चुने हुए नेताओं और शिक्षक संघों के नेताओं की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी. क्या पढ़ाया जाए और कैसे पढ़ाया जाए इसमें शिक्षा से जुड़े लोगों का दखल लगभग खत्म हो जाएगा. उच्च शिक्षा महज एक सरकारी विभाग बनकर रह जाएगी. इसलिए इसका विरोध किया जा रहा है.
इस बिल से कुलपतियों तक की सत्ता पर काउंसिल का आधिपत्य होगा. पिछले साल राज्य विधानसभा में यह बिल पास होने के बाद राज्य में कई जगह इसका विरोध हुआ था. अध्यापकों ने और अन्य कई संगठनों ने राज्यपाल से इसे मंजूरी न देने की गुहार लगाई थी. उनका कहना है कि राज्यपाल ने उनसे मिलने वाले सभी संघों को आश्वासन दिया था कि वह इस पर ध्यान देंगे. यह सभी संघ राज्यपाल के दस्तखत करने से काफी नाराज हैं. अध्यापक और शिक्षाविद हेमंतकुमार शाह का कहना है कि राज्यपाल ने इतने महीनों के बाद कुछ भी सुधार करने के लिए सरकार को कहे बिना ही दस्तखत कर दिए. यह बड़ी बेचैनी वाली बात है.
सरकार और भाजपा इस मुद्दे पर मौन हैं लेकिन दबी जुबान में बचाव करते हैं कि शिक्षाविद होंगे इस काउंसिल में. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि कौन शिक्षाविद होंगे यह फैसला भी सरकार के हाथ में आ जाएगा और छात्रसंघ जैसे चुनावों का छात्र लोकतंत्र खत्म हो जाएगा.
छात्रसंघ डीएसओ की नेता रिमी वाघेला का कहना है कि आम तौर पर शिक्षा की किसी भी काउंसिल के मुखिया शिक्षामंत्री होते हैं लेकिन गुजरात में मुख्यमंत्री होंगे. इसके अलावा इसमें आईएएस और अन्य सरकार द्वारा मनोनीत होंगे. ऐसे में छात्रों द्वारा चुने हुए नेताओं और शिक्षक संघों के नेताओं की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी. क्या पढ़ाया जाए और कैसे पढ़ाया जाए इसमें शिक्षा से जुड़े लोगों का दखल लगभग खत्म हो जाएगा. उच्च शिक्षा महज एक सरकारी विभाग बनकर रह जाएगी. इसलिए इसका विरोध किया जा रहा है.
इस बिल से कुलपतियों तक की सत्ता पर काउंसिल का आधिपत्य होगा. पिछले साल राज्य विधानसभा में यह बिल पास होने के बाद राज्य में कई जगह इसका विरोध हुआ था. अध्यापकों ने और अन्य कई संगठनों ने राज्यपाल से इसे मंजूरी न देने की गुहार लगाई थी. उनका कहना है कि राज्यपाल ने उनसे मिलने वाले सभी संघों को आश्वासन दिया था कि वह इस पर ध्यान देंगे. यह सभी संघ राज्यपाल के दस्तखत करने से काफी नाराज हैं. अध्यापक और शिक्षाविद हेमंतकुमार शाह का कहना है कि राज्यपाल ने इतने महीनों के बाद कुछ भी सुधार करने के लिए सरकार को कहे बिना ही दस्तखत कर दिए. यह बड़ी बेचैनी वाली बात है.
सरकार और भाजपा इस मुद्दे पर मौन हैं लेकिन दबी जुबान में बचाव करते हैं कि शिक्षाविद होंगे इस काउंसिल में. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि कौन शिक्षाविद होंगे यह फैसला भी सरकार के हाथ में आ जाएगा और छात्रसंघ जैसे चुनावों का छात्र लोकतंत्र खत्म हो जाएगा.
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