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This Article is From Oct 13, 2017

आरुषि मर्डर केस के जज ने गणित के टीचर, फिल्म निर्देशक जैसा बर्ताव किया : इलाहाबाद हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने निचली अदालत में चली आरुषि केस की सुनवाई के बारे में कड़े शब्दों में कहा कि तलवार दंपति को दोषी करार देने वाले जज ने न्याय की सामान्य प्रक्रिया से 'भटककर' काम किया.

आरुषि मर्डर केस के जज ने गणित के टीचर, फिल्म निर्देशक जैसा बर्ताव किया : इलाहाबाद हाईकोर्ट
राजेश और नूपुर तलवार की जल्द हो सकती है रिहाई ( फाइल फोटो)
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार दंपति को किया बरी
हाईकोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी
निचली अदालत के जज की तुलना की फिल्म निर्देशक से
इलाहाबाद: डेंटिस्ट युगल राजेश और नूपुर तलवार को वर्ष 2008 में हुई उनकी किशोरी पुत्री आरुषि और घरेलू नौकर हेमराज की हत्या के आरोप से बरी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युगल को दोषी करार देने वाले निचली अदालत के जज की तुलना 'गणित के अध्यापक' तथा 'फिल्म निर्देशक' से की, जो इधर-उधर छितराए हुए तथ्यों में से कहानी गढ़ रहा हो. हाईकोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि तलवार दंपति को दोषी करार देने वाले जज ने न्याय की सामान्य प्रक्रिया से 'भटककर' काम किया. हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया, "जज गणित के किसी अध्यापक की तरह काम नहीं कर सकते, जो किसी भी संख्या को फर्ज़ कर तुलनाओं से किसी गणितीय प्रश्न को हल कर रहा है... किसी फिल्म निर्देशक की तरह निचली अदालत के जज ने बेहद छितराए हुए तथ्यों के आधार पर गढ़ी गई कहानी पर ज़ोर दिया, लेकिन इस बात पर कतई ज़ोर नहीं दिया कि वास्तव में हुआ क्या था..."

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नोएडा स्थित अपने आवास में वर्ष 2008 में हुई हत्याओं के लिए दोषी करार दिए जाने के बाद से चार साल से जेल में बंद तलवार दंपति को आज (शुक्रवार को) जेल से रिहा कर दिया जाएगा. 14 साल की होने से कुछ ही दिन पहले आरुषि का शव उसके बेडरूम में मिला था, और उसका गला रेता हुआ था. सबसे पहले हत्या का संदेह घरेलू नौकर हेमराज पर किया गया, लेकिन कुछ ही घंटे बाद उसका शव भी घर की छत पर पड़ा मिला. देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बने इस केस में निचली अदालत ने परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर तलवार दंपति को हत्या को दोषी करार दिया था.

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हाईकोर्ट का कहना है कि सीबीआई यह साबित करने में नाकाम रही कि तलवार दंपति ने ही अपनी बेटी का कत्ल किया, तथा निचली अदालत के जज द्वारा निकाला गया निष्कर्ष 'गैरकानूनी और विकृत' था, क्योंकि अदालत ने रिकॉर्ड किए गए सबूतों पर विचार ही नहीं किया. हाईकोर्ट के दोनों जजों ने कहा, "संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूतों की जगह नहीं ले सकता... दो पहलू मुमकिन हैं... एक, जो अपील करने वालों के दोषी होने की ओर इशारा करता है, दूसरा, जो उन्हें निर्दोष बताता है... हमारा कहना है कि हम उस पर ध्यान दें, जो उनके (तलवार दंपति के) पक्ष में हो..."

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हाईकोर्ट को "उस दुर्भाग्यपूर्ण रात में घर के भीतर अन्य बाहरी लोगों की मौजूदगी की संभावना पर भी यकीन है... घर के भीतर किसी बाहरी व्यक्ति के होने से इंकार नहीं किया जा सकता..." जजों ने कहा, "सीबीआई इस तरह का कोई भी सबूत जुटाने में पूरी तरह नाकाम रही, जिससे इशारा मिलता कि हेमराज का कत्ल आरुषि के बेडरूम में हुआ, और फिर उसके शव को चादर में लपेटकर घसीटते हुए छत तक ले जाया गया..."
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सीबीआई की इस थ्योरी को जजों ने पूरी तरह नकार दिया कि तलवार दंपति ने ही हेमराज के शव को अपने घर की छत पर छिपाया, और कहा कि यह थ्योरी 'साफ-साफ बेतुकी और नामुमकिन है...'

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