पुणे के दक्कन कॉलेज आफ आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर वसंत शिंदे की अगुवाई में 2015 से राखीगढ़ी के टीलों की पुरातात्विक खुदाई शुरू हुई थी. यहां पर साढ़े चार हजार साल पुराने नर कंकाल मिले थे. इनका डीएनए सैंपल पहले बीरबल इंस्टीट्यूट आफ पेलिओबॉटनी में भेजा गया था. प्रोफेसर वीएस शिंदे ने पुरातात्विक और डीएनए टेस्ट का साइंटिस्ट आकलन करने के बाद पाया है कि हड़प्पा सभ्यता को विकसित करने वाले आर्यन नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोग ही थे. हड़प्पन काल के ही लोग वैदिक काल में थे. सरस्वती नदी के किनारे भी हड़प्पन सभ्यता के निशान मिले हैं. शिंदे का यह भी कहना है कि आर्यों द्रविण सभ्यता में संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले मोहनजोदड़ों और हड़प्पा सभ्यता का विकास भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों ने किया था. यहां के ही लोग ईरान और मध्य एशिया में व्यापार और खेती करने गए थे. इससे इतिहासकार और पुरातत्वविदों के बीच इस बात को लेकर अब अलग अलग दावे हैं.
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जेनेटिक साइंटिस्ट डेविस रिक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने भी यह माना. खेती भी यहीं के लोगों ने शुरू किया था. किसी भी प्रकार का बाहरी लोग बड़ी तादात में नहीं आए थे. हां भाषा की उत्पत्ति कैसे बनी के बारे में हमें नहीं पता है.
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