
एच-1बी वीजा भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करने और 'अमेरिकन ड्रीम' हासिल करने का महत्वपूर्ण रास्ता है, खासकर तकनीकी, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य क्षेत्र में. लेकिन अमेरिकन प्रेसिडेंट ट्रंप ने 21 सितंबर 2025 से इस वीज़ा पर 100,000 डॉलर की फीस लगा दी है. इससे यह वीज़ा सवालों के घेरे में आ गया है. इतनी भारी-भरकम फीस से भारतीयों और अमेरिका को क्या-क्या नुकसान होंगे, यूएसए में रह रहे भारतीय इस बारे में क्या कहते हैं, आइए जानते हैं.
पेशेवरों के साथ ही छात्रों को भी खतरा
प्रेसिडेंट ट्रंप की वीज़ा फीस एक लाख डॉलर करने से अमेरिका में आईटी, हेल्थ, एजुकेशन सेक्टर में जाने के इच्छुक मिडिल क्लास के पैरों तले ज़मीन खिसक गई है. 21 सितंबर से पहले H-1B की फीस 2 हज़ार डॉलर से 5 हज़ार डॉलर होती थी. अब वही वीज़ा एक लाख डॉलर में मिलेगा. यह हज़ारों लोगों के ख्वाब तोड़ने जैसा है. वीजा फीस 2-5 लाख रुपये से लगभग 88 लाख रुपये होने का बोझ नई कंपनियों के अलावा टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी नामी कंपनियों पर भी पड़ेगा जो एच-1बी वीजा पर निर्भर हैं. वीजा फीस बढ़ने से उनकी लागत बढ़ेगी. छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां इससे ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं. इसके अलावा, लगभग 30-40% भारतीय छात्र जो अमेरिका में पढ़ाई और नौकरी के लिए एजुकेशन लोन लेते हैं, उन पर वीजा फीस बढ़ने से डिफॉल्ट का खतरा बढ़ सकता है.
क्या कहते हैं यूएस में रहने वाले भारतीय
अजय जैन भुटोरियाः भारतीय उद्यमी और जो बाइडन के राष्ट्रपति कार्यकाल में वित्त सलाहकार रहे भुटोरिया का कहना है कि ट्रम्प का प्रस्तावित $100,000 का H-1B शुल्क फेल होगा. जल्द ही मुकदमे दर्ज होंगे और अदालतें इसे खारिज कर सकती हैं क्योंकि यह प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के अनुरूप नहीं है, जिसमें सार्वजनिक सूचना और फेडरल रजिस्टर में टिप्पणी की जरूरत होती है. यह शुल्क स्टार्टअप्स को नुकसान पहुंचाएगा, नए विचारों को रोकेगा और भारत जैसे देशों में आउटसोर्सिंग बढ़ा सकता है. ये कंपनियों को स्थानीय लोगों को नौकरी देने के लिए मजबूर करेगा.
आनंद आहूजाः यूएस में वकील और ट्रम्प सर्पोटर आहूजा कहते हैं कि H-1B वीजा सुधार का उद्देश्य अमेरिका में खासकर STEM श्रेणी में उच्च कुशल श्रमिकों को आकर्षित करना और बनाए रखना है. यह H-1B वीजा में धोखाधड़ी और अमेरिकी आप्रवासन कानूनों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाएगा. यह संयुक्त राज्य अमेरिका में इनोवेशन और प्रोडक्टिविटी को बढ़ावा देगा क्योंकि उच्च योग्यता प्राप्त कामगारों को H-1B आवेदनों के लिए कई मौके मिलेंगे.
अभीक दत्ताः न्यूयार्क में भारतीय टेक कंपनी TechPlus Talent के CEO अभीक कहते हैं कि H-1B वीजा की फीस बढ़ने से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स का अमेरिकन ड्रीम मुश्किल में पड़ गया है, भले ही पूरी तरह खत्म न हुआ हो. भारतीय आईटी इंडस्ट्री पहले से ही AI, नजदीकी देशों से काम लेने (नीयरशोरिंग) और फिलीपींस जैसे देशों से ऑफशोरिंग में प्रतिस्पर्धा से परेशान है. अब उसे नए आइडिया लाना और दूसरे देशों में बिजनेस बढ़ाने जैसे नए तरीके खोजने होंगे. हमें सबसे बुरे हालात के लिए तैयार रहना चाहिए. अगर हम ऐसा कर पाए तो यह बाद में हमारे लिए फायदेमंद हो सकता है. अब समय कुछ नया करने और इनोवेशन लाने का है.

साहिल न्यातिः यूएस में भारतीय इमिग्रेशन एक्सपर्ट और Jinee Green Card & Meritmap.ai के फाउंडर साहिल कहते हैं कि H-1B वीजा महज एक कागज नहीं, यह नए आइडिया और नए लोगों को एकसाथ लाने का पुल है. यह हम जैसे भारतीयों के लिए दुनिया की सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था में अपनी काबिलियत दिखाने का मौका है. आज यह पुल एक तंग गलियारे जैसा लग रहा है, जिसमें अनिश्चितता और भरोसे की कमी है. अगर H-1B प्रोग्राम में सही और निष्पक्ष तरीके से बदलाव हों तो हमें दिक्कत नहीं है. हम में से कई लोग सुधारों का स्वागत करते हैं. अगर सैलरी या स्किल के आधार पर सिस्टम बने, जैसे O-1 वीजा तो यह अच्छा कदम हो सकता है, बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाए. लेकिन चिंता तब होती है, जब सुधार निष्पक्षता की जगह बहिष्कार की ओर बढ़ते हैं.
साहिल कहते हैं कि सिस्टम ऐसा नहीं होना चाहिए कि योग्य लोगों को मनमाने कोटे, पुराने ढांचे या लॉटरी जैसे अस्पष्ट तरीकों की वजह से मौके देने से रोक दे. अनिश्चित प्रक्रिया सिर्फ लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि बिजनेस को कमजोर करती है, नए आइडिया को रोकती है और उस पूरे सिस्टम को नुकसान पहुंचाती है, जिसे आप्रवासी प्रतिभाओं ने इतना मजबूत किया है. हम सिर्फ ऐसा सिस्टम चाहते हैं, जो इंसाफ पर आधारित हो और स्किल, मेहनत और योगदान की कद्र करे. H-1B का भविष्य डर, असुरक्षा या शोषण का नहीं होना चाहिए. यह न सिर्फ भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए बल्कि अमेरिका के भविष्य के लिए भी जरूरी है ताकि वह इनोवेशन में लीडर बना रहे.

सुधांशु कौशिकः उत्तरी अमेरिकी एसोसिएशन ऑफ इंडियन स्टूडेंट्स (एनएएआईएस) के कार्यकारी निदेशक एवं भारतीय छात्रों की यूएस में आवाज़ उठाने वाले छात्र नेता सुधांशु कहते हैं कि एच-1बी वीजा पर हालिया कार्यकारी आदेश ने छात्रों और पेशेवरों में गहरा भय और भ्रम पैदा कर दिया है. यह संदेश जा रहा है कि अवांछित हैं. जो छात्र अमेरिका को पहली पसंद मानते थे, अब वे कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों की ओर देख रहे हैं. प्रशासन को पता है कि आर्थिक समृद्धि निर्वासन या जनसंख्या घटाने से नहीं आती, सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने और बनाए रखने से आती है.
सुधांशु कहते हैं कि अमेरिका अब तक ऐतिहासिक रूप से यह अवसर देता रहा है. हालांकि नई नीति F-1 से H-1B के मार्ग को समाप्त करती है, जिसने अनगिनत अंतरराष्ट्रीय छात्रों को रहने, काम करने और सामाजिक, आर्थिक व नागरिक के रूप में योगदान करने का अवसर दिया है. इसमें कोई शक नहीं कि अंतरराष्ट्रीय छात्र इस नीति परिवर्तन के सबसे बड़े पीड़ित हैं. विश्वविद्यालयों पर दबाव बढ़ेगा, कॉलेजों की अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ेंगी. कुल मिलाकर अमेरिका कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा. दुनिया के सबसे बेस्ट माइंड्स को आकर्षित करने और पोषित करने की उसकी क्षमता कम हो जाएगी.
पुराने वीजा धारकों को भी देनी होगी बढ़ी फीस?
क्या पुराने H-1B वीज़ा होल्डर को भी 1 लाख डॉलर देने होंगे, इस सवाल के जवाब में यूएस के इमिग्रेशन एक्सपर्ट साहिल न्याती ने कहा कि बढ़ी फीस 21 सितंबर 2025 के बाद दाखिल नए आवेदनों पर लागू होगी. यदि पहले से एच-1बी वीजा धारक हैं या 21 सितंबर से पहले वीज़ा मिल चुका है तो आप प्रभावित नहीं होंगे. वीजा रिन्यू कराने वाले और वैध एच-1बी के साथ यात्रा करने वाले भी प्रभावित नहीं होंगे. एक लाख डॉलर की एच-1बी वीजा फीस वार्षिक नहीं है, ये वन टाइम फीस है, वो भी उन लोगों के लिए जो 21 सितंबर के बाद अप्लाई करेंगे. सरकार ने भी साफ किया कि ये वन टाइम फीस है.
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