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गुरु पूर्णिमा पर पढ़ें नीतीश-लालू के उस गुरु की कहानी, जिन्होंने हिंदुस्तान की हुकूमत को हिलाकर रख दिया

1970 के दशक में देश आपातकाल की तरफ बढ़ रहा था, दूसरी ओर बिहार में जेपी आंदोलन के दौरान एक नई राजनीतिक पीढ़ी जन्म ले रही थी. लालू और नीतीश इसका हिस्सा थे. पटना विश्वविद्यालय में छात्र नेता लालू हाजिरजवाब थे और नीतीश रणनीतिक सोच वाले नौजवान. इनकी इन्हीं खूबियों ने इन्हें जेपी का करीबी बना दिया था.

गुरु पूर्णिमा पर पढ़ें नीतीश-लालू के उस गुरु की कहानी, जिन्होंने हिंदुस्तान की हुकूमत को हिलाकर रख दिया
  • 1974 में पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा देकर राजनीतिक बदलाव की शुरुआत की थी.
  • नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जेपी आंदोलन के दौरान युवा नेता थे, जिन्होंने बाद में बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • जयप्रकाश नारायण ने सामाजिक और राजनीतिक क्रांति के लिए संपूर्ण क्रांति आंदोलन चलाया, जातिवाद के खिलाफ भी आंदोलन छेड़ा.
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नई दिल्ली:

तारीख- 5 जून 1974. जगह- पटना का गांधी मैदान. इसी मैदान से जेपी यानी जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा देकर कहा था- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है... इस नारे ने पटना से लेकर दिल्ली तक की गद्दी को हिलाकर रख दिया था. गांधी मैदान में जुटी करीब पांच लोगों की भीड़ में नौजवान भी बड़ी संख्या में थे. इनमें से कुछ नौजवान ऐसे थे, जो आगे चलकर बिहार की सियासत को नया आधार देने वाले थे. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव भी इनमें थे. ये दोनों ही जेपी को अपना गुरु मानते हैं. जेपी की दिखाई राह पर चलकर ही इन्होंने सियासत की सीढ़ियां चढ़ीं और बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और एक-दूसरे के राजनीतिक धुर विरोधी भी बने. आज गुरु पूर्णिमा के मौके पर नीतीश और लालू के इसी गुरु के बहाने अतीत की कुछ यादों में चलते हैं. 

अल्हड़ लालू और गंभीर नीतीश की दोस्ती

1970 के दशक में देश आपातकाल की तरफ बढ़ रहा था, दूसरी ओर बिहार में जेपी आंदोलन के दौरान एक नई राजनीतिक पीढ़ी जन्म ले रही थी. लालू और नीतीश इसका हिस्सा थे. पटना विश्वविद्यालय में छात्र नेता लालू हाजिरजवाब थे और नीतीश रणनीतिक सोच वाले नौजवान. इनकी इन्हीं खूबियों ने इन्हें जेपी का करीबी बना दिया था. एक जमाना था, जब नीतीश और लालू के बीच गहरी दोस्ती हुआ करती थी. लालू अल्हड़, मनमौजी किस्म के थे. उनका अंदाज, उनकी बातें लोगों को बांधकर रखती थीं. वहीं नीतीश कुमार ने कम उम्र में ही सम्मानजनक नेता के तौर पर अपनी छवि बना ली थी. 

...जब नीतीश ने दिलाई लालू को कुर्सी

कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद जब नेता विपक्ष चुनने का अवसर आया तो नीतीश ने ही लालू को कुर्सी दिलाई थी. जानकार बताते हैं कि 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी के ही किसी नेता की तलाश थी. ऐसा नेता चाहिए था, जिसे कर्पूरी पसंद करते थे. अनूप लाल, गजेंद्र हिमांशु जैसे कद्दावर दावेदारी में आगे थे, लेकिन लालू की हसरतें भी थीं. समस्या ये थी कि 18 में से 19 विधायक उनके पक्ष में नहीं थे. लालू की बिरादरी के विधायक भी उनका साथ नहीं दे रहे थे. ऐसे में नीतीश ने अपने संबंधों के जरिए गैर यादव विधायकों को लालू के पक्ष में एकजुट किया और लालू को नेता विपक्ष की कुर्सी तक पहुंचाया. 

युवावस्था में नीतीश और लालू की दोस्ती बहुत गहरी थी.

युवावस्था में नीतीश और लालू की दोस्ती बहुत गहरी थी.
Photo Credit: Photo : Twitter/@TejYadav14

दरअसल लालू सिर्फ नेता विपक्ष ही नहीं बने थे. उस दौर में ये तय था कि जो नेता विपक्ष बनेगा, अगले चुनाव में जीत मिली तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वही बैठेगा. कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 1990 में बिहार में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. लालू-नीतीश की पार्टी को सबसे ज्यादा 122 सीटें मिलीं. लेकिन सीएम की कुर्सी की राह आसान नहीं थी. ऐसे में नीतीश ने ही लालू को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने की रणनीति तैयार की थी. 

नीतीश और लालू के गुरु- जेपी

जेपी आंदोलन के समय दोनों नेताओं के बीच जो घनिष्ठता बढ़ी, वो लगभग दो दशक तक कायम रही. इस दौरान लालू और नीतीश विधायक भी बने और संसद भी पहुंचे. ये अलग बात है कि नीतीश और लालू की राहें बाद में जुदा हो गईं. लालू के सीएम बनने के तीन साल बाद ही नीतीश का उनसे मोहभंग हो गया था. लेकिन लालू के हाथों से सत्ता छीनने में नीतीश को 15 साल का वक्त लग गया. वह 2005 में बीजेपी के सपोर्ट से सीएम बन पाए. 

नीतीश और लालू जेपी को अपना गुरु मानते हैं. जेपी स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी, विचारक और जननेता थे. 1970 के दशक में उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन का जो बिगुल बजाया था, वह जेपी आंदोलन के नाम से मशहूर है. कहा तो यहां तक जाता है कि जेपी आंदोलन से घबराकर ही इंदिरा गांधी ने 1975 में इमरजेंसी लगाई थी. 

मुंह में दांत नहीं थे तो मां कहती थीं- बऊल जी

जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर 1920 के दिन बिहार के सिताबदियारा में हुआ था. बचपन में चार साल तक उनके मुंह में दांत नहीं आए थे. इसकी वजह से उनकी मां उन्हें बऊल जी कहती थीं. लेकिन बाद में जयप्रकाश की वाणी में ऐसा ओज आया कि उन्होंने हिंदुस्तान की हुकूमत को हिलकर रख दिया. 

जेपी ने संपूर्ण क्रांति के जरिए न सिर्फ समाजवाद को आगे बढ़ाया बल्कि सामाजिक क्रांति के जरिए जातिवाद खत्म करने का काम भी किया. उनके कहने पर 10 लाख लोगों ने अपने जनेऊ तोड़ दिए थे और जाति प्रथा को न मानने की शपथ ली थी. जेपी एक दूरदर्शी नेता थे, जो नए भारत की नब्ज को समझते थे. उनके विचार आज भी देश की सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं के लिए प्रासंगिक हैं. 
 

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