
प्रथम सैटेलाइट को बनाने में IIT बॉम्बे के तकरीबन 150 छात्र शामिल रहे
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'प्रथम' का सबसे अहम काम आयनमंडल में अणु या इलेक्ट्रॉन को गिनना है
इससे GPS सिग्नल सुधारने के साथ सुनामी की भविष्यवाणी में मदद मिलेगी
'प्रथम' को बनाने में IIT बॉम्बे के 5 बैच में तकरीबन 150 छात्र शामिल रहे
'प्रथम' की अंतरिक्ष में उम्र महज़ 4 महीने की है, लेकिन इससे आकाश में फिर एक बार देश ने लंबी छलांग लगाई है. वैसे अंतरिक्ष में रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित होने वाला 'प्रथम' टोयोटा इनोवा में बैठकर सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र पहुंचा था.
9 बजकर 12, श्रीहरिकोटा से PSLV-C35 अंतरिक्ष की ओर उड़ा, हलचल स्पेस सेंटर से 1290 किलोमीटर दूर आईआईटी बॉम्बे में हुई. 2008 में शुरू किया गया मिशन, 26 सितंबर 2016 को करीब 11.30 बजे पूरा हुआ. लॉन्च के बाद पूर्व प्रोजेक्ट मैनेजर मानवी धवन ने कहा मेरा पूरा ध्यान सिर्फ इस मॉनिटर पर था, आख़िरी के पलों में मैं अपनी धड़कनें महसूस कर सकती थी.
परियोजना की मुश्किलों के बारे में बताते हुए संयम ने कहा, 'हम पूरा डिजाइन फाइनल कर चुके थे, तभी हमें पता लगा कि अगर आपका उपग्रह किसी और के रास्ते में आता है, उसे परेशान करता है तो उसे नष्ट कर देना पड़ेगा. इसके बाद हमें पूरा डिज़ाइन बदलना पड़ा, जिसके लिये 40 घंटे तक बिना रुके मीटिंग हुई, फिर भी हमने पूरा काम तय समय में खत्म कर लिया. 'प्रथम' का वज़न 10.15 किलोग्राम है, ये 4 महीने तक अंतरिक्ष में रहेगा.
'प्रथम' का सबसे अहम काम आयनमंडल में अणु या इलेक्ट्रॉन को गिनना है. इस सैटेलाइट में Lithium-ion बैटरी लगायी गयी है, बैटरी से जुड़ने वाले चारों साइड में सौर ऊर्जा के लिये सोलर पैनल लगाये गए हैं. 'प्रथम' की उपयोगिता के बारे में बताते हुए पूर्व छात्र जॉनी झा ने बताया कि इससे जीपीएस सिग्नल सुधारने के साथ सुनामी की भविष्यवाणी में भी मदद मिलेगी.
इस सैटेलाइट को बनाने में IIT बॉम्बे के 5 बैच में तकरीबन 150 छात्र शामिल रहे. अगर सब ठीक रहा तो 'प्रथम' की मदद से डिफेन्स के नैविगेशन सिस्टम और जीपीएस सिस्टम को सुधारा जा सकेगा इसके अलावा इससे मिलने वाले डेटा को दूसरे वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.
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