राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जी20 प्रतिनिधियों को भेजे गए रात्रिभोज के निमंत्रण में ''प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया'' के बजाय "भारत की राष्ट्रपति" लिखे जाने के बाद दो नामकरणों पर विवाद जारी है. विपक्ष ने केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार की आलोचना करते हुए उस पर केवल राजनीतिक कारणों से इंडिया का नाम बदलने का आरोप लगाया है.
देश का नाम भारत कैसे पड़ा?बहुत से लोग इस बात से अवगत नहीं हैं कि 'भारत' नाम भारतीय संविधान के पहले मसौदे में नहीं था, जब इसे 4 नवंबर, 1948 को मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ बीआर आंबेडकर द्वारा पेश किया गया था. वास्तव में यह तब तक नहीं था जब तक कि एक साल बाद संविधान को अंतिम रूप दिया गया. तब कई लोगों ने मूल नाम के छूटने को रेखांकित किया था.
इसके बाद 18 सितंबर, 1949 को डॉ आंबेडकर ने अनुच्छेद-1 के मसौदे में एक संशोधन पेश किया. इसमें लिखा था, "इंडिया, यानी भारत राज्यों का एक संघ होगा." इस वाक्यांशविज्ञान की विधानसभा सदस्य एचवी कामथ ने आलोचना की. उन्होंने इसे "बेढंगा और संवैधानिक त्रुटि" कहा.
गरमागरम बहस और विकल्पएचवी कामथ ने तब दो विकल्प पेश किए : "भारत या अंग्रेजी भाषा में इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा" या "हिंद या अंग्रेजी भाषा में इंडिया राज्यों का एक संघ होगा." उन्होंने कहा कि वाक्यांश "अंग्रेजी भाषा में इंडिया" महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई देशों में राष्ट्र को अभी भी "हिंदुस्तान" के रूप में जाना जाता है और इसके लोगों को उनकी आस्था की परवाह किए बिना हिंदू कहा जाता है.
संविधान सभा के कई सदस्यों ने 'इंडिया' नाम के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्ज कराई और 'भारत' के पक्ष में बहस के दौरान गरमागरम चर्चा की गई. उदाहरण के लिए, जबलपुर के सेठ गोविंद दास ने एचवी कामथ का समर्थन करते हुए कहा, "इंडिया, यानी भारत" किसी देश के नाम के लिए इससे सुखद शब्द नहीं थे. यही होना चाहिए. उन्होंने कहा, "भारत को विदेशों में भी इंडिया के नाम से जाना जाता है."
अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए एचवी कामथ ने आयरिश संविधान का उल्लेख किया और बताया कि कैसे सांसदों ने अपने देश का नाम रखा. एचवी कामथ ने कहा, "आयरिश फ्री स्टेट का संविधान कहता है:" राज्य का नाम आयर है या अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड है.
जबकि सेठ गोविंद दास दास ने तर्क दिया कि विष्णु पुराण और ब्रह्म पुराण में भारत का उल्लेख है. अन्य सदस्यों ने दावा किया कि सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी देश को भारत कहा था, इंडिया नहीं. कई लोगों ने यह भी कहा कि भारत के विपरीत इंडिया कोई प्राचीन शब्द नहीं है, जो इसकी सभ्यता के इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हो.
संयुक्त प्रांत का प्रतिनिधित्व करने वाले हरगोविंद पंत ने कहा कि वे यह समझने में असफल रहे कि 'भारत वर्ष' शब्द सदन को स्वीकार्य क्यों नहीं है, जबकि ''इस शब्द के महत्व और महिमा को यहां सभी लोग स्वीकार कर रहे हैं.''
वोट से हुआ फैसलाइंडिया नाम पर आपत्तियों और भारत के पक्ष में कुछ मजबूत तर्कों के बावजूद एचवी कामथ के संशोधन को 38 'हां' से 51 'न' के वोट से खारिज कर दिया गया. मूल शब्द "इंडिया यानी भारत राज्यों का एक संघ होगा" कायम रहा.
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