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Exclusive: खुद ने बीच में छोड़ी फिर बच्चों को क्यों पढ़ा रहे डॉक्टरी? CM मोहन यादव ने बताया पैरेंटिंग का तरीका

शिक्षा के क्षेत्र में मध्‍य प्रदेश सरकार कैसे बदलाव कर रही है, ताकि अधिक से अधिक रोजगार मिल सके? इस पर मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री ने बताया कि मैं पहले शिक्षा मंत्री भी रहा हूं. इसलिए जानता हूं कि शिक्षा के क्षेत्र की जरूरतें क्‍या हैं.

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मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने छोड़ी थी एमबीबीएस की पढ़ाई...

भोपाल:

मध्य प्रदेश सरकार का फोकस नई शिक्षा नीति के जरिए विद्यार्थियों का विकास करने पर है. सरकार विद्यार्थियों का स्किल डेवलेपमेंट कर उन्‍हें रोजगारपरक शिक्षा देने पर ध्‍यान केंद्रित कर रहे हैं. NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने मध्य प्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव (Dr. Mohan Yadav) से एक्सक्लूसिव बातचीत की, जिसमें उन्‍होंने बताया कि मध्‍य प्रदेश में स्किल यूनिवसिर्टी बनाने की भी योजना है. वैसे बता दें कि मोहन यादव ने राजनीति में आने के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन उन्‍होंने अपनी बेटी और बेटे को डॉक्‍टर बनाया है.  

शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव 

शिक्षा के क्षेत्र में मध्‍य प्रदेश सरकार कैसे बदलाव कर रही है, ताकि अधिक से अधिक रोजगार मिल सके? इस पर मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री ने बताया, "मैं पहले शिक्षा मंत्री भी रहा हूं. इसलिए जानता हूं कि शिक्षा के क्षेत्र की जरूरतें क्‍या हैं. नई शिक्षा नीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में साल 2020 में आई. इस नीति में बेहद स्‍पष्‍ट है कि सिर्फ कागज की डिग्री बांटना हमारा लक्ष्‍य नहीं होना चाहिए. हमारे यहां अभी 20 लाभ विद्यार्थी उच्‍च शिक्षा में हैं, लेकिन नई शिक्षा नीति अगर पहली कक्षा से लागू होती है, तो 2 लाख से ज्‍यादा विद्यार्थी उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने वाले नहीं होंगे, क्‍योंकि 12वीं के बाद काफी विद्यार्थी अलग-अलग रोजगारपरक क्षेत्र में चले जाएंगे. ऐसे में काफी पहले से ही उनकी लाइन तय हो जाएगी. हम स्किल डेवलेपमेंट ज्‍यादा ध्‍यान देने वाले हैं. हम स्किल यूनिवसिर्टी भी बनाने वाले हैं."    

सीएम हाउस में क्‍यों नहीं रहता मोहन यादव का परिवार 

मोहन यादव का परिवार उनके साथ सीएम हाउस में नहीं रहता है, इसकी वजह उन्‍होंने बताई, "मेरा बेटा भोपाल में होस्टल में पढ़ रहा है. उसने एकबीबीएस कर लिया है और अब MS कर रहा है. मैं समझता हूं कि पढ़ाई का एक माहौल होता है. अगर वो सीएम हाउस में इस आबोहवा में रहेगा, तो उसका उसर तो जरूर पड़ेगा. ऐसे माहौल में उसकी पढ़ाई कैसे होगी? उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी. ऐसे में अगर उसे फोकस होकर पढ़ना है, तो अलग रहकर ही पढ़ना होगा. पढ़ाई पूरी करने के बाद जो भी करना है, ये उसका ही विचार होना चाहिए." 

हमको ही बनना है प्रतिमान 

मोहन यादव को वीआईपी कल्‍चर बिल्‍कुल भी पसंद नहीं है. वह बताते हैं, "मेरी बेटी भी यहां भोपाल में पढ़कर गई है, उसने भी एमबीबीएस किया है. तब मैं उज्‍जैन विकास प्राधिकरण का पयर्टन विकास निगम का प्रदेशाध्‍यक्ष था. बाद में मैं विधायक मंत्री बना, तब भी मैंने कहा कि बेटा तुमको होस्‍टल में ही पढ़ना है. बच्‍चे भी इस बात से सहमत हैं, तो मुझे इस बात का संतोष है कि मेरे परिवार में इस बात को लेकर पॉजिटिव सोच है. जैसे मेरे बेटे का विवाह हुआ, तो लाखों लोगों को कैंपस में बुलाकर क्‍यों विवाह करना चाहिए, 100 लोगों को बुलाकर भी तो शादी हो सकती है? प्रतिमान हमको ही बनना है और उसके लिए अपना मन कड़ा करना पड़ेगा. तभी दूसरे लोग भी इससे प्रेरित होंगे."   

मोहन यादव ने क्‍यों छोड़ी MBBS की पढ़ाई 

मोहन यादव ने राजनीति में आने के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन अपने बेटे और बेटी को उन्‍होंने डॉक्‍टर बनाया है. उन्‍होंने बताया, "जब मैं बीएससी करने गया था, तो फर्स्‍ट ईयर में ज्‍वॉइंट सेक्रेटरी बन गया. सेकेंड ईयर में जाने से पहले मैंने पीएमटी की परीक्षा दी और मेरे सेलेक्‍शन हो गया. फिर मैं मेडिकल कॉलेज चला गया. लेकिन फिर सभी ने कहा कि हमें फिर से विद्यार्थी परिषद को जिताना है और आपको अध्‍यक्ष बनना है, ऐसे में मैं मेडिकल कॉलेज छोड़कर वापस आ गया. उस समय मैं काफी उत्‍साह में भी था, तब लगा कि चुनाव लड़ लेंगे, तो ज्‍यादा अच्‍छा रहेगा. हालांकि, बाद में मैंने और हमारे बच्‍चों ने महसूस किया कि अगर हम एमबीबीएस की पढ़ाई करते हैं, उच्‍च शिक्षा लेते हैं, तो उसमें कोई बुराई नहीं है. इसके बाद जो करना है, वो कर सकते हैं. मेरा दामाद भी डॉक्‍टर है, बेटी भी डॉक्‍टर है और बेटा भी डॉक्‍टर है, एक बेटा वकील है. 

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