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This Article is From Oct 15, 2020

'भंग की गई मुस्लिम रेजिमेंट' सरासर झूठ है : पूर्व सैनिकों ने लिखा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को खत

पत्र में कहा गया, "यह झूठ, हमारे देश और सशस्त्र बलों में अहितकारी शक्तियों द्वारा फैलाया जा रहा था जो मनोबल और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा."

'भंग की गई मुस्लिम रेजिमेंट' सरासर झूठ है : पूर्व सैनिकों ने लिखा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को खत
नई दिल्ली:

Muslim Regiment in Indian Army : भारत के मुस्लिम सैनिकों को बदनाम करने वाला एक व्यापक रूप से प्रसारित सोशल मीडिया पोस्ट, देश में सांप्रदायिक घृणा को हवा देने के अलावा सशस्त्र बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, 120 सेवानिवृत्त अधिकारियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को चेतावनी दी है. राष्ट्रीय हित का आह्वान करते हुए उन्होंने इस विशेष पोस्ट के पीछे के लोगों की पृष्ठभूमि की तत्काल जांच का आग्रह किया. और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फेसबुक और ट्विटर को इस झांसा देने के प्रयास को सक्षम बनाने के लिए चेतावनी दी है.

14 अक्टूबर को लिखे एक पत्र में, जिसे मीडिया के साथ साझा किया गया था में 1965 के युद्ध में पाकिस्तान से लड़ने से इंकार करने के बाद "मुस्लिम रेजिमेंट" को "अपमानित" करने वाले पोस्ट की सामग्री को "पूर्णतय झूठा" करार दिया गया.

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पत्र में कहा गया है, मई 2013 से फेसबुक और ट्विटर पर एक फेक अकाउंट से सर्कुलेट हो रहा है, अब भारत-चीन सीमा
गतिरोध के बीच इसे फिर से पुनर्जीवित किया गया है. तीन सेना प्रमुखों के अलावा यह पत्र अन्य को भी लिखा गया है.  पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के पूर्व अधिकारी शामिल हैं.

पत्र में कहा गया, "यह झूठ, हमारे देश और सशस्त्र बलों में अहितकारी शक्तियों द्वारा फैलाया जा रहा था जो मनोबल और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा."

सैकड़ों लोगों के बीच 18 उदाहरणों का हवाला देते हुए जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में झांसा दिया जा रहा है. सेवानिवृत्त
अधिकारियों ने कहा कि भारतीय सेना के पास 1965 या उसके बाद कोई मुस्लिम रेजिमेंट नहीं थी. पत्र में कहा गया है, "हम आगे यह बताना चाहते हैं कि बहु-वर्ग रेजीमेंट के हिस्से के रूप में लड़ने वाले मुसलमानों ने हमारे राष्ट्र के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता साबित की है,"

1965 के युद्ध के दौरान अपने ही चाचा के नेतृत्व में पाकिस्तानी डिवीजन से लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले हवलदार अब्दुल हमीद, परमवीर चक्र और मेजर अब्दुल रफी खान के उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया.  पत्र में कहा गया है कि "यह कहते हुए कि मुस्लिम सैनिकों ने ... लड़ने से इनकार कर दिया ... सभी सेवारत और सेवानिवृत्त मुस्लिम सैनिकों की वफादारी पर सवाल उठाए. यह भारत के सैनिकों के मनोबल पर प्रहार कर उनकी शत्रुता को कम करने में मदद करता है."

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