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This Article is From Dec 24, 2018

Flashback2018: बड़े रक्षा सौदे जिनसे बढ़ी भारत की ताकत

भारत के पास दूसरे देशों से हथियार खरीदने के अलावा कोई और विकल्‍प नहीं बचता. भारत लड़ाकू विमानों, युद्धपोतों, हेलीकॉप्‍टरों और बंदूकों समेत कई किस्‍म के रक्षा उपकरणों का आयात करता है.

Flashback2018: बड़े रक्षा सौदे जिनसे बढ़ी भारत की ताकत
फाइल फोटो
नई दिल्‍ली:

दुनिया में हथियार खरीदने वाले देशों में भारत का स्‍थान पहले नंबर पर आता है. इसमें सबसे बड़ा कारण भारत की भौगोलिक स्थिति है. भारत के पड़ोस में पाकिस्‍तान और चीन जैसे देश हैं. पाकिस्‍तान की तरफ से आतंकवाद के रूप में एक तरह से परोक्ष लड़ाई जारी ही रहती है तो दूसरी ओर चीन की गतिविधियां भी संदेह पैदा करती हैं. डोकलाम का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. ऐसे में भारत को अपनी रक्षा के लिए हर किस्‍म के हथियारों और हथियार प्रणालियों की आवश्‍यकता है. लेकिन स्‍वदेशी तरीके से इसकी आपूर्ति फिलहाल तो संभव नहीं दिखती. इसके कई कारण हैं, मसलन देश में हथियारों की तकनीक के विकास की गति धीमी है, और जो तकनीक है उसमें भी इतना लंबा वक्‍त लग जाता है कि कई बार उसका होना बेमानी लगता है. ऐसे में भारत के पास दूसरे देशों से हथियार खरीदने के अलावा कोई और विकल्‍प नहीं बचता. भारत लड़ाकू विमानों, युद्धपोतों, हेलीकॉप्‍टरों और बंदूकों समेत कई किस्‍म के रक्षा उपकरणों का आयात करता है. साल 2018 में भी भारत ने कुछ बहुत बड़े रक्षा सौदों को अंजाम दिया. आइए उनपर एक नजर डालते हैं...

भारत-रूस के बीच एस-400 मिसाइल सौदे पर हस्ताक्षर
अक्‍टूबर के पहले हफ्ते में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) अपने दो दिवसीय भारत यात्रा (Vladimir Putin) पर आए. उनकी इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एस-400 वायु रक्षा प्रणाली सौदे पर दस्तखत हुए. अमेरिकी चेतावनी के बावजूद भारत ने रूस के साथ यह सौदा किया.  दरअसल, अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि रूस के साथ यह खास सौदा करने वाले राष्ट्रों के खिलाफ वह दंडात्मक प्रतिबंध लगाएगा. हालांकि, नई दिल्ली ने काफी संयमित रुख दिखाया. शायद, अमेरिका के साथ अपने बेदाग संबंधों को कायम रखने की कोशिश के तहत इसने ऐसा किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन ने अपने - अपने संबद्ध प्रेस बयानों में एस-400 समझौते का जिक्र नहीं किया. सरकारी अधिकारियों ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर होने की सार्वजनिक घोषणा नहीं की. एस 400 खरीदने वाला भारत तीसरा देश है. चीन ने भी रूस से इसे खरीदा है. इस मिसाइल सिस्‍टम अपने आप में बेजोड़ है. इसका पूरा नाम S-400 ट्रायम्फ है जिसे नाटो देशों में SA-21 ग्रोलर के नाम से पुकारा जाता है. यह लंबी दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम है जिसे रूस ने बनाया है. S-400 का सबसे पहले साल 2007 में उपयोग हुआ था जो कि S-300 का अपडेटेड वर्जन है. इस एक मिसाइल सिस्टम में कई सिस्टम एकसाथ लगे होने के कारण इसकी सामरिक क्षमता काफी मजबूत मानी जाती है. इसकी मारक क्षमता अचूक है क्योंकि यह एक साथ तीन दिशाओं में मिसाइल दाग सकता है. 400 किमी के रेंज में एक साथ कई लड़ाकू विमान, बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइल और ड्रोन पर यह हमला कर सकता है.


नौसेना के लिए दो युद्धपोतों पर भारत का रूस से करार
नवंबर 2018 में भारत और रूस ने भारतीय नौसेना के लिए दो मिसाइल युद्धपोतों के निर्माण के लिए 50 लाख डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये और अमेरिका की पाबंदियों की चेतावनी के बावजूद उच्चस्तरीय रक्षा सहयोग जारी रखने के स्पष्ट संकेत दिये. अधिकारियों ने कहा कि रक्षा क्षेत्र की पीएसयू गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) और रूस की सरकारी रक्षा निर्माता रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के बीच तलवार श्रेणी के दो युद्धपोतों के निर्माण के लिए करार किया गया. यह समझौता रक्षा सहयोग के लिए सरकार से सरकार के बीच रूपरेखा के तहत किया गया. इस सौदे के तहत रूस भारत में युद्धपोतों के निर्माण के लिए जीएसएल को डिजाइन, प्रौद्योगिकी और कुछ सामग्री प्रदान करेगा. जहाजों में अत्याधुनिक मिसाइलें और अन्य शस्त्र प्रणालियां लगी होंगी. जीएसएल के सीएमडी शेखर मित्तल ने बताया, ‘‘हमने गोवा में दो युद्धपोतों के निर्माण के लिए रूस के साथ 50 करोड़ डॉलर के समझौते को अंतिम रूप दिया है.''

इजरायल के साथ 777 मिलियन डॉलर का बराक मिसाइल सौदा
अक्‍टूबर के महीने में ही रूस के साथ एयर डिफेंस सिस्‍टम एस-400 की डील करने के बाद भारत ने इजरायल से भी बराक-8 मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम खरीदने के लिए करार किया. यह डील 777 मिलियन डॉलर या करीब 5700 करोड़ रुपये में ही. इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने खुद इसकी घोषणा की. इस डील पर भारत की ओर से भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने दस्‍तखत किए. बराक-8 लंबी दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला एयर मिसाइल मिसाइल सिस्टम है, जिसे डीआरडीओ और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मिलकर बनाया है. वैसे तो खासतौर पर इसका इस्तेमाल नौसेना के जहाजों की हवाई हमलों से सुरक्षा के लिए किया जाएगा लेकिन भारतीय थल सेना और भारतीय वायु सेना भी इसका इस्तेमाल कर सकेंगी. हवा के रास्ते दुश्मन द्वारा किए जाने वाले हमले को रोकने और दुश्मन के लड़ाकू हवाई हथियारों एवं उपकरणों को हवा में ही मार गिराने में यह मिसाइल सक्षम है. यह एलआरएसएएम (Long Range Surface to Air Missile-LRSAM) श्रेणी की मिसाइल है.

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