नई दिल्ली:
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज फिर डीआरडीओ को आड़े हाथ लिया। रक्षा मंत्री ने कहा कि डीआरडीओ सेना के असाल्ट राइफल तो नहीं बना पाया, लेकिन मिसाइल बना लिया। वहीं, डीआरडीओ ने रोना रोया कि जरूरत के मुताबिक न तो उसके पास वैज्ञानिक हैं और न ही संसाधन।
डीआरडीओ के 39वें निदेशक सम्मेलन में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि डीआरडीओ ने मिसाइल टेक्नोलॉजी में बहुत प्रगति की है, लेकिन सेना के लिए जरूरी एक अच्छी असाल्ट राइफल्स और बुलेटप्रूफ जैकेट अभी तक तैयार नहीं की है। इसके लिए वैज्ञानिकों को काम करना होगा। यही नहीं, डीआरडीओ को सेना के साथ मिलकर काम करना होगा, खासकर थल और वायु सेना के साथ।
वहीं, डीआरडीओ के महानिदेशक एस क्रिस्टोफर ने कहा कि चीन अपने रक्षा बजट का 20 फीसदी रिसर्च पर खर्च करता है, जबकि हमारे देश में मात्र 4 से 5 प्रतिशत ही इस मद में खर्च होता है। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है। इतना ही नहीं, 2001 से डीआरडीओ में नए वैज्ञानिकों की भर्ती तक नही हुई हैं। करीब चार सौ से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं।
वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल अरुप राहा ने कहा कि दुनिया को कोई सही मायने में ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी नही देगा, अगर देश को सामरिक मामलों में आत्मनिर्भर होना है तो इसमें आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। डीआरडीओ अभी भी सेना की उम्मीदों पर आधा ही खऱा उतरा है और आगे बढ़ने के लिए डीआरडीओ में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मसलन, इसके प्रोडक्ट में सेना की भागीदारी के साथ जिम्मेदारी बढ़ाने की जरूरत है।
डीआरडीओ के 39वें निदेशक सम्मेलन में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि डीआरडीओ ने मिसाइल टेक्नोलॉजी में बहुत प्रगति की है, लेकिन सेना के लिए जरूरी एक अच्छी असाल्ट राइफल्स और बुलेटप्रूफ जैकेट अभी तक तैयार नहीं की है। इसके लिए वैज्ञानिकों को काम करना होगा। यही नहीं, डीआरडीओ को सेना के साथ मिलकर काम करना होगा, खासकर थल और वायु सेना के साथ।
वहीं, डीआरडीओ के महानिदेशक एस क्रिस्टोफर ने कहा कि चीन अपने रक्षा बजट का 20 फीसदी रिसर्च पर खर्च करता है, जबकि हमारे देश में मात्र 4 से 5 प्रतिशत ही इस मद में खर्च होता है। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है। इतना ही नहीं, 2001 से डीआरडीओ में नए वैज्ञानिकों की भर्ती तक नही हुई हैं। करीब चार सौ से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं।
वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल अरुप राहा ने कहा कि दुनिया को कोई सही मायने में ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी नही देगा, अगर देश को सामरिक मामलों में आत्मनिर्भर होना है तो इसमें आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। डीआरडीओ अभी भी सेना की उम्मीदों पर आधा ही खऱा उतरा है और आगे बढ़ने के लिए डीआरडीओ में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मसलन, इसके प्रोडक्ट में सेना की भागीदारी के साथ जिम्मेदारी बढ़ाने की जरूरत है।
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