मेलघर (कालाहांडी):
दाना माझी की एक कमरे की खाली झोपड़ी का दरवाजा हमेशा खुला रहता है. पत्नी की मौत के बाद विभिन्न सरकारी स्कीमों और प्राइवेट चंदे से नौ लाख रुपये मिलने के बावजूद उनके यहां कुछ नए कपड़ों और कुछ जोड़ी जूतों के अलावा कुछ नहीं बदला. मिट्टी की दीवार के एक खाली कोने में उनकी स्मृतियों से कभी नहीं मिटने वाली पत्नी की फोटो टंगी है.
घर से 80 किमी दूर अस्पताल से अपनी पत्नी के शव को 10 किमी तक कंधे पर ढोने के लिए मजबूर गरीब दाना माझी को कुछ टीवी चैनल क्रू ने देखा. उसके बाद उन तस्वीरों ने पूरे देश को झकझोरने के साथ ही गरीबों की दुर्दशा, सरकार की भूमिका और देश के स्वास्थ्य ढांचे पर कई सवालिया निशान खड़े किए.
हालांकि अब दाना माझी को मदद के रूप में जो राशि मिली है, उतना अब तक के पूरे जीवन में वह नहीं कमा सके. माझी की पत्नी का टीबी के चलते 42 साल की उम्र में निधन हो गया था.बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस मेलघर गांव में दाना माझी ने निश्चय किया है कि वह अपनी तीनों बेटियों को पढ़ाएंगे जोकि अभी तक इस गरीब मजदूर के लिए एक सपना ही था.
इस राह में भी रोड़ा है क्योंकि गांव या आस-पास शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था नहीं है. इसके लिए इन लड़कियों को राजधानी भुवनेश्वर जाना होगा जोकि इस गांव से 13 घंटे की दूरी पर है. यानी इनको घर छोड़कर बाहर पढ़ने के लिए जाना होगा जोकि इनके लिए दुखद है.
10 साल की बेटी सोनाई की आंखों में मां के जिक्र मात्र से अभी भी आंसू छलक आते हैं. वह अभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाई है, अब पढ़ाई के लिए पिता से दूर होने के नाम से ही उसको डर लगने लगता है. वह कहती है, ''वहां मुझे पिता की बहुत याद आएगी.''उसकी बड़ी बहन चांदनी (14) जो उस वक्त पिता के साथ थी, जब वह मां के शव को कंधे पर लिए चल रहे थे, अभी भी उदास है. माझी की सबसे छोटी बेटी अभी पांच साल की है.
लेकिन दाना माझी ने तय कर लिया है कि वे अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा देंगे. उनका कहना है, ''मैं उनको शिक्षित करूंगा. वे यहां क्या करेंगी? उनकी जिंदगी बेहतर होनी चाहिए.'' हालांकि ओडिशा के इस कालाहांडी जिले में दाना माझी मशहूर शख्सियत हो चुके हैं. लोग उनकी झलक पाने के लिए सड़कों पर इंतजार करते हैं. कुछ लोग कयास लगाते हैं कि उनको गांव का सरपंच बना दिया जाएगा या अगले चुनाव में टिकट दिया जाएगा.
हालांकि अब दाना माझी को मदद के रूप में जो राशि मिली है, उतना अब तक के पूरे जीवन में वह नहीं कमा सके. माझी की पत्नी का टीबी के चलते 42 साल की उम्र में निधन हो गया था.बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस मेलघर गांव में दाना माझी ने निश्चय किया है कि वह अपनी तीनों बेटियों को पढ़ाएंगे जोकि अभी तक इस गरीब मजदूर के लिए एक सपना ही था.
इस राह में भी रोड़ा है क्योंकि गांव या आस-पास शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था नहीं है. इसके लिए इन लड़कियों को राजधानी भुवनेश्वर जाना होगा जोकि इस गांव से 13 घंटे की दूरी पर है. यानी इनको घर छोड़कर बाहर पढ़ने के लिए जाना होगा जोकि इनके लिए दुखद है.
10 साल की बेटी सोनाई की आंखों में मां के जिक्र मात्र से अभी भी आंसू छलक आते हैं. वह अभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाई है, अब पढ़ाई के लिए पिता से दूर होने के नाम से ही उसको डर लगने लगता है. वह कहती है, ''वहां मुझे पिता की बहुत याद आएगी.''उसकी बड़ी बहन चांदनी (14) जो उस वक्त पिता के साथ थी, जब वह मां के शव को कंधे पर लिए चल रहे थे, अभी भी उदास है. माझी की सबसे छोटी बेटी अभी पांच साल की है.
लेकिन दाना माझी ने तय कर लिया है कि वे अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा देंगे. उनका कहना है, ''मैं उनको शिक्षित करूंगा. वे यहां क्या करेंगी? उनकी जिंदगी बेहतर होनी चाहिए.'' हालांकि ओडिशा के इस कालाहांडी जिले में दाना माझी मशहूर शख्सियत हो चुके हैं. लोग उनकी झलक पाने के लिए सड़कों पर इंतजार करते हैं. कुछ लोग कयास लगाते हैं कि उनको गांव का सरपंच बना दिया जाएगा या अगले चुनाव में टिकट दिया जाएगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
दाना माझी, कालाहांडी, ओडिशा, Dana Majhi, Kalahandi, Odisha, Dana Majhi Of Kala Handi, कालाहांडी का दाना माझी