नई दिल्ली:
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को 1990-91 में अयोग्य छात्रों को फर्जी तरीके से एमबीबीएस सीट दिलाने के मामले में दोषी ठहराए गए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रशीद मसूद को चार साल कारावास की सजा सुनाई है। इसी के साथ मसूद सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से अयोग्य ठहराए जाने वाले पहले जनप्रतिनिधि हो सकते हैं।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के न्यायाधीश जेपीएस मलिक ने 19 सितंबर को मसूद (67) को भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में दोषी करार दिया था। उन्हें त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज को केंद्रीय कोटे से आवंटित सीटों पर अयोग्य छात्रों को फर्जी तरीके से नामित करने के मामले में दोषी पाया गया था।
इस मामले में दो सरकारी नौकरों, पूर्व आईएएस अधिकारी गुरदयाल सिंह और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमल कुमार राय को भी चार वर्ष करावास की सजा सुनाई गई है। अमल कुमार राय त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधीर रंजन मजुमदार के सचिव थे।
अदालत ने मसूद को 60,000 रुपये और दोनों सरकारी सेवकों को एक-एक लाख रुपये का अर्थ दंड भी लगाया है।
फर्जी तरीके से जिन नौ छात्रों को मेडिकल कॉलेज में नामांकन कराया गया था, उन्हें भी धोखाधड़ी का दोषी ठहराया गया है। सभी छात्रों को एक वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है। छात्रों ने अदालत के सामने जमानत की अर्जी दायर की है।
मसूद, विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के कार्यकाल में 11 महीने तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे थे।
सजा की घोषणा के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया और वह अगले 10 साल तक चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक, जेल से रिहा किए जाने के बाद से छह साल तक किसी भी दागी और सजायाफ्ता सांसद या विधायक को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने किसी सांसद एवं विधायक को दो साल या उससे अधिक अवधि की सजा या अन्य मामले में दोषी साबित किए जाने पर अयोग्य घोषित किए जाने का फैसला सुनाया था और इसके तहत मसूद के सामने राज्यसभा सदस्य के रूप में तत्काल अयोग्य करार दिए जाने का खतरा पैदा हो गया है।
सर्वोच्च न्यायलय ने 10 जुलाई को एक महत्वपूर्ण फैसले में निर्वाचन कानून के उस प्रावधान को निष्प्रभावी करार दिया था, जिसमें सांसद और विधायक को दोषी ठहराए जाने के 90 दिनों के अंदर अपील करने पर उनकी सदस्यता बरकरार रहने की सुविधा थी।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मसूद को भ्रष्टाचार निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी) और 468 (जालसाजी) के आरोप में दोषी पाया गया है। उन्हें आईपीसी की धारा 471 के तहत जाली दस्तावेज का इस्तेमाल करने के आरोप से मुक्त कर दिया गया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के न्यायाधीश जेपीएस मलिक ने 19 सितंबर को मसूद (67) को भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में दोषी करार दिया था। उन्हें त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज को केंद्रीय कोटे से आवंटित सीटों पर अयोग्य छात्रों को फर्जी तरीके से नामित करने के मामले में दोषी पाया गया था।
इस मामले में दो सरकारी नौकरों, पूर्व आईएएस अधिकारी गुरदयाल सिंह और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमल कुमार राय को भी चार वर्ष करावास की सजा सुनाई गई है। अमल कुमार राय त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधीर रंजन मजुमदार के सचिव थे।
अदालत ने मसूद को 60,000 रुपये और दोनों सरकारी सेवकों को एक-एक लाख रुपये का अर्थ दंड भी लगाया है।
फर्जी तरीके से जिन नौ छात्रों को मेडिकल कॉलेज में नामांकन कराया गया था, उन्हें भी धोखाधड़ी का दोषी ठहराया गया है। सभी छात्रों को एक वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है। छात्रों ने अदालत के सामने जमानत की अर्जी दायर की है।
मसूद, विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के कार्यकाल में 11 महीने तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे थे।
सजा की घोषणा के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया और वह अगले 10 साल तक चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक, जेल से रिहा किए जाने के बाद से छह साल तक किसी भी दागी और सजायाफ्ता सांसद या विधायक को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने किसी सांसद एवं विधायक को दो साल या उससे अधिक अवधि की सजा या अन्य मामले में दोषी साबित किए जाने पर अयोग्य घोषित किए जाने का फैसला सुनाया था और इसके तहत मसूद के सामने राज्यसभा सदस्य के रूप में तत्काल अयोग्य करार दिए जाने का खतरा पैदा हो गया है।
सर्वोच्च न्यायलय ने 10 जुलाई को एक महत्वपूर्ण फैसले में निर्वाचन कानून के उस प्रावधान को निष्प्रभावी करार दिया था, जिसमें सांसद और विधायक को दोषी ठहराए जाने के 90 दिनों के अंदर अपील करने पर उनकी सदस्यता बरकरार रहने की सुविधा थी।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मसूद को भ्रष्टाचार निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी) और 468 (जालसाजी) के आरोप में दोषी पाया गया है। उन्हें आईपीसी की धारा 471 के तहत जाली दस्तावेज का इस्तेमाल करने के आरोप से मुक्त कर दिया गया।
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