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भारत की चाबहार डील से क्यों बौखलाया अमेरिका, पढ़े इसके पीछे की पूरी इनसाइड स्टोरी

भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर हुए समझौते से अमेरिका बेचैन हो गया है. इस डील से बौखलाए अमेरिका ने इशारों इशारों में भारत पर प्रतिबंध लगाने तक की बात कह दी है.

भारत की चाबहार डील से क्यों बौखलाया अमेरिका, पढ़े इसके पीछे की पूरी इनसाइड स्टोरी
भारत-ईरान डील पर क्यों बौखलाया अमेरिका
नई दिल्ली:

अगर आप ईरान के चाबहार बंदरगाह को गूगल मैप्स पर देखें तो यह समुद्र से लगा एक छोटा सा है हिस्सा है... लेकिन इस छोटे से हिस्से को लेकर भारत से हुई ईरान की डील ने दुनिया के कई मुल्कों की नींद उड़ा कर रख दी है. इस डील के फिक्स होने के बाद अब आलम कुछ यूं है कि अमेरिका से लेकर चीन और चीन से लेकर पाकिस्तान तक परेशान-परेशान दिख रहे हैं. अमेरिका तो इस कदर बौखला गया कि इस डील के बाद उसने भारत पर प्रतिबंध लगाने तक की धमकी दे डाली. अब ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि चाबहार क्यों हैं इतना अहम, जिसके लिए दुनिया के कई देश हो रहे हैं बेचैन. आज हम आपको भारत और ईरान के बीच हुई इस डील और इस डील से दुनिया के देशों को हो रही दिक्कत के पीछे की कहानी बताने जा रहे हैं....साथ ही हम ये भी जानेंगे कि आखिर चाबहार कूटनीतिक तौर पर भारत के लिए इतना अहम क्यों है....

चलिए इससे पहले की भारत और ईरान के बीच हुई इस डील के बारे में कुछ बात करें. पहले हम ये जानलेते हैं कि आखिर चाबहार शब्द आया कहां से और इसका मतलब क्या होता है. 

बात अगर चाबहार नाम की करें तो यह मूलत: बालोची वाक्यांश चाहर बहार का संक्षिप्त रूप है. इसमें चाहर का मतलब है चार और बहार का मतलब होता है वसंत. इस शब्द का अर्थ समझें तो यह एक ऐसा स्थान है जहां साल के सभी चार मौसम वसंत के समान होते हैं. 


आखिर क्या है भारत से ईरान की डील

आपको बता दें कि भारत और ईरान ने चाबहार के शाहिद बेहश्ती बंदरगाह के टर्मिनल के संचालन के लिए एक समझौता किया है. इस समझौते के तहत अगले 10 साल के लिए एक डील पर हस्ताक्षर किए गए हैं. यह जानकारी ईरान में भारतीय दूतावास की तरफ से एक्स पर एक पोस्ट के जरिए दी गई. इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के पोर्ट्स एंड मेरिटाइम ऑर्गनाइजेशन ने समझौते पर हस्ताक्षर किए.

यह पहला मौका है जब भारत विदेश में मौजूद किसी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेगा. चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में मौजूद है. इस बंदरगाह को भारत और ईरान मिलकर विकसित कर रहे हैं.

व्यापार में भारत को कैसे होगा फायदा 

विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि पहले भारत को मध्य एशिया के देशों से व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता था. यहां तक की अफगानिस्तान तक भी कोई सामान भेजने के लिए भारत पाकिस्तान से होकर जाने वाले रास्ते का ही इस्तेमाल करता था. लेकिन जब से भारत और ईरान के बीच चाबहार को लेकर समझौता हुआ है तो अब अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से बिजनेस के लिए भारत को नया रूट मिल जाएगा. अब तक इन देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से होकर जाना पड़ता था. यह बंदरगाह भारत के लिए कूटनीति के लिहाज से भी अहम है. 

ईरान से डील पर अमेरिका ने भारत को दी चेतावनी 

ईरान से भारत की इस डील की खबर सामने आते ही अमेरिका बौखला सा गया है. यही वजह है कि अमेरिका ने मंगलवार को  चेतावनी दी थी कि तेहरान के साथ व्यापारिक डील पर विचार करने वाले "किसी को" भी प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए. अमेरिकी विदेश विभाग के उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि मैं बस यही कहूंगा...ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और इनको जारी रखा जाएगा. जब उनसे यह पूछा गया कि इन प्रतिबंधों के दायरे में क्या भारतीय कंपनियां भी आ सकती हैं, इस पर वेदांत पटेल मे कहा कि जो कोई भी ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रहा है, उस पर संभावित जोखिम का खतरा बना रहेगा. 

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अमेरिका क्यों हुआ परेशान 

अमेरिका, भारत और ईरान के बीच बढ़ती नजदीकियों से बेहद परेशान है. अगर पर्दे के पीछे की बात करें तो अमेरिका ये कभी नहीं चाहता कि दुनिया का कोई भी देश ईरान के साथ किसी तरह का व्यापारिक संबंध रखे. साथ ही अमेरिका ये भी नहीं चाहता कि भारत का ईरान से दोस्ती करने का कोई फायदा भारत को हो.

इसके पीछे की वजह यह है कि अमेरिका को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो भारत अमेरिका के दुश्मन गुटों के ज्यादा करीब होता चला जाएगा. यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में अमेरिका ने ईरान पर एक के बाद एक कई प्रतिबंध भी लगाए हैं. 

चाबहार बंदरगाह का भारत के लिए क्या है महत्तव

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए इतना क्यों जरूरी है...अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ा जाए तो पता चलेगा कि यह बंदरगाह अपनी लोकेशन की वजह से भारत के लिए बेहद खास है. चाबहार बंदरगाह ईरान में ओमान की खाड़ी में स्थित है. यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से महज 72 किमी दूर है. चाबहार अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) का भी हिस्सा है, जो एक मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्टेशनल प्रोजेक्ट है.

यह प्रोजेक्ट हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जोड़ता है. 

चीन औऱ पाकिस्तान भी इस वजह से हुए बेचैन

भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगार को लेकर हुए समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये भी है कि इसे पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगार और चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के लिए भारत के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है. मीडिया में छपे रिपॉर्ट्स के अनुसार इस बंदरगाह का इस्तेमाल करने की वजह से भारत अब पाकिस्तान को लूप से बाहर रखते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दूसरे देशों से सीधे व्यापार कर सकता है. ऐसा होने से अब पाकिस्तान की महत्ता भी इस इलाके में धीरे धीरे कम होने लगी है.

वहीं अगर बात चीन की करें तो भारत की यह डील चीन के लिए भी करारा जवाब है. भारत बीते कई सालों से अपने महत्कांक्षी परियोजना नेक्सल ऑफ डायमंड पर काम कर रहा है. और इस परियोजना के लिए चाबहार बंदरगाह बेहद जरूरी है. 

भारत की यह परियोजना कूटनीतिक रूप से काफ खास माना जा रहा है. इस रणनीति का उद्देश्य चीन को चारों तरफ से घेरने का है. इस रणनीति के तहत भारत अपने नौसैनिक अड्डों का विस्तार कर रहा है और चीन की रणनीतियों का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक रूप से मजबूत देशों के साथ संबंध भी सुधार रहा है. भारत की इस रणनीति में भी चाबहार बेहद अहम पड़ाव है. 

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