केंद्र सरकार ने दया याचिका के निबटारे में अनावश्यक विलंब को मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का आधार बताने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि 21 जनवरी का न्यायालय का निर्णय 'स्पष्ट रूप से गैरकानूनी' और त्रुटियों से भरा है।
इस निर्णय के तहत ही न्यायालय ने 15 कैदियों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था और इसी फैसले ने राजीव गांधी के हत्यारों के लिए भी इसी तरह की राहत का रास्ता साफ कर दिया था। सरकार ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि इस तरह के महत्वपूर्ण विषय पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए थी और तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने बगैर 'अधिकार क्षेत्र के ही' यह फैसला दिया है।
याचिका में कहा गया है कि यह फैसला स्पष्ट रूप से गैरकानूनी है और उपलब्ध रिकार्ड को देखते हुए इसमें खामियां हैं तथा यह शीर्ष अदालत, संविधान और दूसरे कानूनों द्वारा प्रतिपादित सुविचारित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। याचिका के अनुसार पेश मामले में विलंब के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का मसला उठाया गया था, जो दोषियों के पक्ष में कथित रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 को आकर्षित करता है।
याचिका में कहा गया है कि इसलिए यह संविधान की व्याख्या का मसला है, जिस पर पांच न्यायाधीशों की पीठ को विचार करना चाहिए था, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 145 में व्यवस्था है। शीर्ष अदालत के पहले के आदेश का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि इस फैसले में कहा गया था कि टाडा के तहत हुए अपराध और दूसरे अपराधों के बीच अंतर है।
इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि किसी भी दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करते समय अपराध के स्वरूप पर विचार करना होगा। याचिका के अनुसार ऐसी स्थिति में पेश रिकार्ड को देखते हुए फैसले में खामी नजर आती है, जिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
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