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बिहार के राजपूतों के गढ़ में OBC-EBC की जीत, जानें कैसे बदल गए जातियों के समीकरण

अगर अनारक्षित सीटों की बात करें तो दोनों प्रमुख गठबंधनों ने 18 सवर्ण, 16 यादव और 10 अति पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे.इसमें से 12 सवर्ण, छह दलित, दो अल्पसंख्यक और बाकी के 20 सांसद पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के हैं.

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बिहार के राजपूतों के गढ़ में OBC-EBC की जीत, जानें कैसे बदल गए जातियों के समीकरण
नई दिल्ली:

इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अनोखा रहा. राज्य का विपक्षी महागठबंधन ने नौ सीटें जीतकर बड़ा उलटफेर किया है. इससे केंद्र में सरकार बनाने जा रहे एनडीए को बड़ा झटका लगा है. इससे पहले 2019 के चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर कब्जा जमाया था. उस चुनाव में महागठबंधन की कांग्रेस ही केवल एक सीट जीत पाई थी. साल 2024 के लोकसभा उपचुनाव में हुआ उलटफेर जाति की राजनीति के लिए मशहूर बिहार के जातिय समीकरणों में भी बदलाव आया है.लेकिन दलितों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में तत्कालीन सत्तासीन नीतीश-तेजस्वी की महागठबंधन सरकार ने जाति का सर्वे करवाया था. राजनीतिक हलको में इसे वोट बैंक बढ़ाने की कवायद के रूप में देखा गया. जाति सर्वे के आंकड़े सार्वजनिक करने के बाद सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया.कैबिनेट से मंजूरी लेकर ओबीसी का आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया. आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फीसदी आरक्षण जारी रखने की भी बात हुई थी.इसका लाभ भी मिला. सामाजिक समीकरण साधने के लिए ही जाति सर्वे कराया गया था.लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ रही. इसके अलावा उम्मीदवारों का चयन भी इसी आधार पर किया गया. 

कहां से कौन दलित उम्मीदवार जीता

बिहार में दलितों के लिए छह सीटें आरक्षित हैं.इस बार के चुनाव में इनमें से पांच सीटें एनडीए के खाते में गई है. महागठबंधन के खाते में केवल एक सीट गई है.इनके अलावा कहीं से भी कोई दलित सांसद नहीं बना है. इन आरक्षित सीटों में गया से जीतन राम मांझी (हम), समस्तीपुर से शांभवी (लोजपा), जमुई से अरुण भारती (लोजपा), हाजीपुर से चिराग पासवान (लोजपा), गोपालगंज से आलोक सुमन (जेडीयू)और सासाराम से मनोज राम (कांग्रेस)जीते हैं. 

नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान और उनके सांसद.

नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान और उनके सांसद.

अनारक्षित सीटों का हाल

वहीं अगर अनारक्षित सीटों की बात करें तो दोनों प्रमुख गठबंधनों ने 18 सवर्ण, 16 यादव और 10 अति पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे.इसमें से 12 सवर्ण, छह दलित, दो अल्पसंख्यक और बाकी के 20 सांसद पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के हैं. बिहार के सवर्ण सांसदों में छह राजपूत सांसद हैं, ये हैं राधामोहन सिंह (बीजेपी), लवली आनंद (जेडीयू), सुधाकर सिंह(आरजेडी), वीणा देवी (लोजपा), जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और राजीव प्रताप रूडी (बीजेपी). भूमिहार जाति के गिरिराज सिंह (बीजेपी), ललन सिंह (जेडीयू) और विवेक ठाकुर (बीजेपी) है. वहीं ब्राह्मण सासंदों में गोपाल जी ठाकुर (बीजेपी) और देवेश चंद्र ठाकुर (जदयू)हैं. कायस्थ जाति के रविशंकर प्रसाद (बीजेपी) भी सांसद चुने गए हैं. वहीं अगर अति पिछड़ा वर्ग की बात करें तो इससे रामप्रीत मंडल(जेडीयू), दिलेश्वर कामैत (जेडीयू), प्रदीप सिंह (बीजेपी), राजभूषण निषाद (बीजेपी), अजय मंडल (जेडीयू), सुदामा प्रसाद और राजेश वर्मा (लोजपा) चुने गए हैं. पिछड़ा वर्ग के कुर्मी-कुशवाहा बिरादरी से सुनील कुमार और विजया लक्ष्मी देवी (जेडीयू), कौशलेंद्र कुमार (जेडीयू),राजाराम सिंह (माले)और अभय कुशवाहा (आरजेडी) है. वहीं डॉक्टर संजय जायसवाल (बीजेपी) वैश्य हैं. पिछड़ा वर्ग के ही अशोक यादव (बीजेपी), मीसा भारती (राजद), राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (निर्दलीय), दिनेश चंद्र यादव-गिरिधारी यादव (जेडीयू), सुरेंद्र यादव (आरजेडी) और नित्यानंद राय (बीजेपी)भी सांसद चुने गए हैं.  दो मुसलमान सांसद भी जीते हैं, इनमें किशनगंज से मोहम्मद जावेद और कटिहार से तारिक अनवर हैं.

दिल्ली में जेडीयू संसदीय दल की बैठक.

दिल्ली में जेडीयू संसदीय दल की बैठक.

ढह गए जातियों के ये गढ़

साल 2008 में हुए परिसीमन से राज्य की करीब सभी 40 लोकसभा सीटों का भूगोल बदल गया था. के बाद 2009 में हुए लोकसभा के तीन चुनाव में ओबीसी और सवर्ण आधिपत्य वाली 19 सीटें सामने आई थीं. इनमें से कई इस बार ध्वस्त हो गए.औरंगाबाद और आरा में 2014 और 2019 में राजपूत जाति के सुशील कुमार सिंह और राजकुमार सिंह उम्मीदवार जीते थे. लेकिन इस साल के चुनाव में आरा से सीपीआईएमएल के सुदामा प्रसाद ने बाजी मार ली. वहीं औरंगाबाद में राष्ट्रीय जनता दल के अभय कुमार सिन्हा ने अपना परचम लहराया है. सुदामा वैश्य और अभय कुशवाहा क्रमश: पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं. बिहार के चित्तौड़गढ़ के नाम से मशहूर इस इलाके से बीजेपी के सुशील कुमार सिंह अपनी चौथी जीत और आरके सिंह अपनी तीसरी जीत को लेकर आश्वस्त थे. लेकिन महागठबंधन ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया. 

वहीं मिथिलांचल की शिवहर सीट पर भी इस बार जाति का किला ढ़ह गया. यह सीट आमतौर पर बनिया समुदाय के लिए जानी जाति है. लेकिन इस चुनाव में राजपूत समाज से आने वाली जदयू की लवली आनंद ने यहां से जीत दर्ज की है. उन्होंने राजद का रितु जायसवाल को हराया है. रितु वैश्य समाज की थीं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. वहीं राजपूत समाज की बहुलता वाली एक सीट महाराजगंज में बीजेपी अपना कब्जा बनाए रखने में कामयाब रही है. महाराजगंज से बीजेपी के जर्नादन सिंह सिग्रीवाल ने कांग्रेस के आकाश कुमार सिंह को हराया है. 

ये भी पढें: "18वीं लोकसभा कुछ कर गुजरने के इरादों वाली..." : नई सरकार का दावा पेश करने के बाद PM मोदी

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