कैबिनेट ने एक देश, एक चुनाव बिल को मंजूरी दे दी है. इस बिल के इसी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा. 'एक देश, एक चुनाव' मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. पीएम मोदी ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' यानी एक देश एक चुनाव का वादा किया था. मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' (One Nation One Election) प्रस्ताव को 18 सितंबर को मंजूरी दे दी थी. बता दे कि मोदी सरकार पिछले कुछ समय से एक देश एक चुनाव के लिए जोर दे रही है. सरकार का कहना है कि मौजूदा समय में चुनावों पर पैसे और वर्कफोर्स की बर्बादी हो रही है.
सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन के लिए था ये तर्क
चुनाव से पहले घोषित आचार संहिता के चलते विकास के काम रुक जाते हैं. एक साथ चुनाव से समय, पैसे और वर्कफोर्स की बचत होगी. विकास के काम बिना ब्रेक के पूरे होंगे. वहीं विपक्ष ने सरकार के इन तर्कों को अव्यावहारिक बताया. विपक्षी दलों ने राज्य में चुनाव कराने में चुनाव आयोग के सामने आने वाली तार्किक चुनौतियों की ओर इशारा किया है.
वन नेशन वन इलेक्शन का प्रोसेस तय करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, इसमें 8 सदस्य थे. कमेटी का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. कमिटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.
कोविंद कमेटी के सुझाव
-सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है.
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है.
वन नेशन वन इलेक्शन के लिए इन पार्टियों ने किया समर्थन
वन नेशन वन इलेक्शन का बीजेपी, जेडीयू, तेलुगू देशम पार्टी, चिराग पासवान की LJP ने समर्थन किया है. इसके साथ ही असम गण परिषद, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और शिवसेना (शिंदे) गुट ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है. जबकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम समेत 15 दलों ने किया है.
क्या इससे पहले भारत में एक साथ चुनाव हुए?
हां ऐसा हुआ है. भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिया गया. 1970 में इंदिरा गांधी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही लोकसभा को भंग करने का सुझाव दिया. इससे उन्होंने भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा को भी तोड़ दिया. जबकि मूल रूप से 1972 में लोकसभा के चुनाव होने थे. अब मोदी सरकार फिर से इसे लागू करने की कोशिश में है.
किन राज्यों की विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल?
-वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा.
-गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा.
-असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल कम होगा.
संसद में बिल को पास कराना कितना आसान और कितना मुश्किल?
सरकार के लिए आम सहमति के अभाव में मौजूदा इलेक्शन के सिस्टम को बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. 'एक राष्ट्र एक चुनाव' को लागू करने में संविधान में संशोधन के लिए कम से कम 6 विधेयक शामिल होंगे. सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी. NDA के पास संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत है. लेकिन, किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल करना एक मुश्किल काम हो सकता है.
राज्यसभा की 245 सीटों में से NDA के पास 112 सीटें हैं. विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोट चाहिए.
यहां तक कि लोकसभा में NDA को मुश्किलें आ सकती हैं. अभी NDA के पास 545 में से 292 सीटें हैं. लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है. लेकिन, स्थिति गतिशील हो सकती है, क्योंकि बहुमत की गिनती सिर्फ उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के संदर्भ में की जाएगी.
वन नेशन वन इलेक्शन की क्या होंगी चुनौतियां?
-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संघवाद की चिंता भी है. कुछ जानकारों का कहना है कि इससे भारत की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा. राज्य सरकारों की स्वायत्तता कम होगी. विधि आयोग भी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में एक साथ चुनाव की व्यावहारिकता पर सवाल उठा चुका है.
-व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो एक साथ चुनाव कराने में भारी मात्रा में संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है. एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में EVM और ट्रेंड लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. ताकि, पूरी चुनावी प्रक्रिया ठीक से पूरी की जा सके.
-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का भी सवाल है. अक्सर होने वाले चुनावों के ज़रिए जनता समय-समय पर अपनी पसंद तय कर सकती है, लेकिन अगर सिर्फ 5 साल बाद ऐसा होगा, तो जनता की इस पसंद को ज़ाहिर करने में दिक्कत आएगी.
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-इससे एक पार्टी के प्रभुत्व का ख़तरा बढ़ जाएगा. कई अध्ययन बताते हैं कि जब भी एक साथ चुनाव होते हैं, तो एक ही पार्टी के राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के जीतने की संभावना बढ़ जाती है. जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में घालमेल हो जाता है.
-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कई कानूनी पेचीदगियां हैं. कई जानकारों का कहना है कि एक देश एक चुनाव के कानून को कई संवैधानिक सिद्धांतों पर भी खरा उतरना पड़ेगा.
2009 से अब तक कितनी बार हो चुकी चुनावी प्रक्रिया?
2009 से अब तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग 34 बार चुनाव प्रक्रिया पूरी कर चुका है. इनमें से कई बार लोकसभा और कई विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए हैं या कई बार अलग-अलग कराए गए हैं. इन दिनों ही हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की चुनाव प्रक्रिया एक साथ हो रही है. अगर एक देश, एक चुनाव होता है तो ये चुनाव प्रक्रिया पांच साल में एक ही बार होगी या फिर बीच में कुछ विधानसभाएं भंग हुईं, तो उतनी बार चुनाव होंगे.
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