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This Article is From Feb 11, 2015

दिल्ली के सियासी भूकम्प के झटके पंजाब में

दिल्ली के सियासी भूकम्प के झटके पंजाब में
पीएम मोदी के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
चंडीगढ़:

दिल्ली के सियासी भूकम्प के झटके पंजाब में महसूस किए जा रहे हैं। अब सम्भावना कम है कि रिश्तों में बढ़ती खटास के बावजूद बीजेपी पिछले आठ साल से सत्ता में सहयोगी अकाली दल का दामन छोड़ेगी। वहीं, सशक्त विपक्ष की भूमिका निभा पाने में नाकाम कांग्रेस को ये डर सताने लगा है कि कहीं उसकी जगह आम आदमी पार्टी न ले ले।

दिल्ली में मंगलवार को जब बीजेपी का सूरज डूब रहा था, ठीक उसी वक़्त तरण तारण के एसडीएम दफ्तर के बाहर पार्टी के एक नेता पर अकाली दल के पार्षद और उसके गुर्गों ने हमला कर दिया। पिटने वाला नेता प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी का भाई है। राज्य में जल्द ही होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव दोनों पार्टियों ने मिल कर लड़ने का फैसला तो किया है लेकिन वार्ड तय करने को लेकर ऐसे झगड़ों से एनडीए सहयोगियों के बीच दरार बढ़ रही है।

नाराज़ अनिल जोशी ने पार्टी आला कमान से मामले का संज्ञान लेने की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा, 'मोदी जी, राजनाथ जी, अमित शाह जी देखें पंजाब में क्या हो रहा है, ये बात चार मंत्री और चार सीपीएस की नहीं है, कार्यकर्ता पिट रहे हैं, ऐसी सरकार का क्या फायदा।'

पर इस सब के बावजूद, अल्पसंख्यकों की नाराज़गी झेल रही बीजेपी अब अकाली दल से रिश्ता तोड़ने का जोखिम उठाएगी, इसकी उम्मीद कम है।

वहीं, लोकसभा चुनावों में राज्य की चार सीटों पर कब्ज़ा करने वाली आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का जोश दिल्ली की जीत के बाद कई गुना बढ़ गया है। पटियाला से पार्टी के सांसद धर्मवीर गांधी ने जीत के जश्न में जुलूस निकाला। उन्होंने कहा, 'दिल्ली नतीजे का असर पूरे देश में पड़ेगा, पंजाब में पार्टी मजबूत होगी, हम 2017 की तैयारी कर रहे हैं।'

आप के बढ़ते असर का सबसे ज़्यादा खामियाज़ा टुकड़ों में बंटी कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि अगले दो साल के भीतर जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां पार्टी को कोई ख़ास उम्मीद नहीं है। उत्तर भारत में पंजाब उसकी एक मात्र उम्मीद है। राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रमोद कुमार का कहना है कि कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल होने वाली है। पार्टी की जो हालत है उसे देख कर नहीं लगता की वह 2017 तक अकाली दल को टक्कर दे पाएगी।

हालांकि पंजाब में विधानसभा चुनाव 2017 में होंगे लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से ही यहां की सियासत करवट ले रही है। दिल्ली में शिकस्त के बाद तमाम विरोधाभासों के बावजूद बीजेपी और अकाली दल की दोस्ती बनी रहेगी। वहीं, कांग्रेस हाई कमांड ने गुटबाज़ी ख़त्म करने के उपाये जल्द नहीं किए तो उसकी जगह आम आदमी पार्टी ले सकती है।

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