- दिल्ली दंगा मामले में आरोपी शरजील ईमाम समेत सात आरोपियों की जमानत याचिका की सुनवाई टल गई है
- सुप्रीम कोर्ट ने आज की सुनवाई समय समाप्त होने के कारण आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है
- अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी, जिसमें आरोपियों को पुलिस की दलीलों का जवाब देना होगा
2020 दिल्ली दंगा मामले में आरोपी शरजील ईमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा और शिफा उर रहमान समेत सात आरोपियों की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई टल गई. मामले की अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी. अदालत का समय खत्म हो जाने की वजह से आज सुनवाई नहीं हो सकी. आरोपियों की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दिल्ली पुलिस अपनी दलील खत्म कर चुकी है और अब उन्हें पुलिस की दलीलों पर अपना जवाब देना है.
पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (जो दिल्ली पुलिस का पक्ष रख रहे हैं) ने कहा था कि 2020 की हिंसा कोई अचानक हुई सांप्रदायिक झड़प नहीं थी, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला करने के लिए सुविचारित, सुनियोजित और योजनाबद्ध षड्यंत्र था. उन्होंने कहा, 'हमारे सामने यह कहानी रखी गई कि एक विरोध प्रदर्शन हुआ और उससे दंगे भड़क गए. मैं इस मिथक को तोड़ना चाहता हूं. यह स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था, बल्कि पहले से रचा गया, जो सबूतों से सामने आएगा.'
एसजी मेहता ने दावा किया कि जुटाए गए सबूत (जैसे भाषण और व्हाट्सएप चैट) दिखाते हैं कि समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की स्पष्ट कोशिश की गई. उन्होंने विशेष रूप से शरजील इमाम के कथित भाषण का जिक्र करते हुए कहा, 'इमाम कहते हैं कि उनकी इच्छा है कि हर उस शहर में चक्का जाम हो जहां मुसलमान रहते हैं.' गुरुवार को एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने सुप्रीम कोर्ट में शरजील इमाम के भाषणों के वीडियो और दंगों के दृश्य प्रस्तुत किए. उन्होंने कहा कि जांच में जो सामग्री सामने आई है, वह सोची-समझी और समन्वित साजिश को साबित करती है.
दिल्ली पुलिस ने अपने जवाबी हलफनामे में उमर खालिद को 'मुख्य साजिशकर्ता' बताया. पुलिस ने आरोप लगाया कि यह साजिश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान ध्यान आकर्षित करने के लिए रची गई थी. हलफनामे में कहा गया, 'इसका मकसद सीएए को भारत में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सामूहिक अत्याचार के रूप में पेश करके इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाना था. ये मुद्दा जानबूझकर चुना गया था, ताकि इसे 'शांतिपूर्ण विरोध' के नाम पर छुपाकर, लोगों को कट्टरपंथी बनाने के लिए एक उत्प्रेरक (यानी, भड़काने वाली वजह) के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.'
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
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