
लोकसभा में विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता की अनुपस्थिति लोकपाल और सीवीसी समेत विभिन्न संवैधानिक निकायों की नियुक्तियों को अमान्य नहीं करेगी।
अटॉर्नी जनरल (एजी) मुकुल रोहतगी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के मुद्दे पर अपना विचार रखते हुए कहा है कि संसद में एक संसदीय दल या समूह को मान्यता प्रदान करने की शक्ति एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष के हाथों में होती है।
लोकसभा में विपक्ष का नेता लोकपाल, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने वाली चयन समिति का सदस्य होता है।
संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पत्र लिखकर विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस प्रत्याशी को देने की मांग की थी जिसके बाद लोकसभा सचिवालय ने इस संबंध में एजी से राय मांगी थी।
एजी ने बताया, ‘‘सभी चार अधिनियम - मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम - 1993, सीवीसी अधिनियम - 2003, आरटीआई अधिनियम - 2005 और लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम - 2013 में यह उल्लिखित है कि किसी भी अधिनियम के अंतर्गत समिति में महज किसी सदस्य की जगह खाली होने के आधार पर चयन को अमान्य नहीं किया जा सकता।’’
चार अधिनियमों में से कम से कम दो (सीवीसी और आरटीआई) में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है। संसद ने भी इस संबंध में अपना उद्देश्य साफ किया है अर्थात् ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है जब लोकसभा अध्यक्ष से मान्यता प्राप्त लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं हो। पीटीआई-भाषा के एक आरटीआई प्रश्न के जवाब में रोहतगी ने अपने पत्र में कहा है, ‘‘जहां तक दो अन्य अधिनियमों का संबंध है जाहिर तौर पर चयन समिति में विपक्ष के नेता की रिक्ति को आकस्मिक रिक्ति के तौर पर देखा जा सकता है अर्थात् बैठक में हिस्सा नहीं ले पा सकने वाले चयन समिति के सदस्य के जैसा।’’
केंद्र में राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार के गठन के बाद सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा था।
सात जुलाई के अपने पत्र में गांधी ने लिखा था, ‘‘हम लोकसभा अध्यक्ष से यह आग्रह करना चाहते हैं कि लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष के नेता के पद के तौर पर मान्यता दी जाए और इसकी घोषणा की जाए..’’
उन्होंने पत्र में कानून के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख कर विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस को दिए जाने की मांग की। पत्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सहित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के 60 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षर हैं।
लोकसभा सचिवालय ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद के संबंध में एजी की राय मांगी थी। एजी ने 23 जुलाई के अपने पत्र में सचिवालय को जवाब दिया था।
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