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This Article is From Jul 24, 2016

2012 में कलाम ने राष्‍ट्रपति चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने के फैसले पर दो विरोधाभासी भाषण तैयार किए थे

2012 में कलाम ने राष्‍ट्रपति चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने के फैसले पर दो विरोधाभासी भाषण तैयार किए थे
डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम का फाइल फोटो
नई दिल्ली: एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2012 में अपने विरुद्ध संख्याबल होने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव में उतरा जाए या नहीं, इस पर काफी वक्त तक विचार किया था क्योंकि वह जमीनी स्तर पर भ्रष्‍टाचार से लड़ना चाहते थे और उन्होंने अपने फैसले को सही ठहराने के लिए दो विरोधाभासी भाषण तैयार किए थे। उनके एक सहयोगी ने यह खुलासा किया है।

राष्ट्र के नाम संबोधित इन दो पत्रों में एक उस मौके के लिए था कि जब कलाम चुनाव लड़ना पसंद करते और दूसरा तब पेश किया जाता जब वह नहीं लड़ने का फैसला करते।

पहला पत्र
चुनाव लड़ने पर सहमति के लिए कलाम ने जो पत्र तैयार किया था, वह लंबा था। इस मसौदा पत्र में लिखा है, ''इस लिए मेरे प्यारे भारतीयों, मैंने आप सभी के साथ मिलकर यह चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मैं यह अच्छी तरह जानते हुए भी चुनाव में उतरा कि संख्या मेरे विरुद्ध है। मैं भलीभांति यह जानते हुए चुनाव लड़ूंगा कि मेरे पास बहुमत नहीं है। यह पता होने के बाद भी मैं दौड़ में शामिल होऊंगा कि मैं हार जाऊंगा। लेकिन मैंने पहले ही लोगों का दिल जीत लिया है और मैं अब उनके लिए चुनाव लड़ने के लिए कर्तव्यबद्ध हूं।''

पत्र में लिखा गया है, ''मेरा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। मैं किसी भी राजनीतिक विचारधारा का न तो समर्थन करता हूं और न ही विरोध। मैं बस एक वैज्ञानिक हूं और मैं हमेशा चाहता हूं कि मुझे शिक्षक के रूप में याद किया जाए। अब चूंकि मैंने चुनाव का सामना करने का फैसला कर लिया है, मैं उम्मीदवार बन गया हूं। चुनाव में उम्मीदवार को पार्टी नेताओं से मिलकर और उनका समर्थन मांगकर चुनाव प्रचार करना होता है। मेरे पक्ष में वोट जुटाने के वास्ते प्रचार के लिए मेरे पास न तो कोई पार्टी या कार्यकर्ता हैं। प्रिय भारतीयों, मैं आपसे यानी मेरे लिए प्रचार करने की अपील करता हूं।''

जनता का उम्मीदवार
कलाम ने पत्र में आगे लिखा था, ''मैंने अहसास किया है कि चुनाव लड़ने का मेरा फैसला हमारा सामूहिक निर्णय है। मैं अब जनता का उम्मीदवार हूं। मैं आशा करता हूं कि मैं जीतूं या हारूं, आप वही प्रेम मुझ पर बरसाते रहेंगे। हो सकता हैं मैं हार जाऊं- मैं नहीं जानता। लेकिन मैं आपके प्रति सच्चे, निष्ठावान और स्नेहशील बने रहने के लिए निश्चित तौर पर आबद्ध हूं। यह कोई राजनीतिक बयान या प्रचार मंत्र नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे शब्द हैं जो सीधे मेरे हृदय से निकले हैं। ’’ उन्होंने भगवद गीता के एक श्लोक के साथ अपने पत्र का समापन किया।

दूसरा पत्र
यह उस स्थिति के लिए तैयार किया गया था, जब वह चुनाव नहीं लड़ते, यह महज 100 शब्दों का है। इस पत्र में लिखा गया है, ''आप राष्ट्रपति चुनाव से पहले के घटनाक्रम से वाकिफ हैं। वैसे तो मैंने दूसरे कार्यकाल की कभी आकांक्षा नहीं की है और न ही मैंने चुनाव लड़ने की दिलचस्पी दिखायी है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और अन्य राजनीतिक दल चाहते थे कि मैं उनका उम्मीदवार बनूं। कई नागरिकों ने भी यही इच्छा प्रकट की थी। यह मेरे प्रति उनके प्यार एवं स्नेह और जनाकांक्षा दर्शाता है।''

उसमें लिखा गया है, ''मैं वाकई इस समर्थन से आल्‍हादित हूं। यह उनकी इच्छा होने के खातिर, मैं उसका सम्मान करता हूं। उनका मुझ पर जो विश्वास है, उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं। मैंने मामले की संपूर्णता पर गौर किया है। राजनीतिक स्थिति को गौर करते हुए मैंने राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। ईश्वर आप सभी का भला करे।''

नई पुस्‍तक में किया गया दावा
ये दोनों पत्र और पूरे घटनाक्रम का जिक्र एक नई पुस्‍तक 'व्हाट कैन आई गिव? लाइफ लेसंस फ्रॉम माई टीचर ए पी जे अब्दुल कलाम' में है। यह पुस्तक कलाम के सहयोगी सृजन पाल सिंह ने लिखी है। यह पुस्तक पेंग्विन रैंडम हाउस ने प्रकाशित की है जो 27 जुलाई को कलाम की पहली पुण्यतिथि पर जारी की जाएगी। इस पुस्तक से मिलने वाली रॉयल्टी परमार्थ फाउंडेशन कलाम लाइब्रेरी को जाएगी जो दबे कुचले वर्ग के बच्चों को शिक्षा प्रदान करता है।

तत्कालीन कांग्रेस सरकार प्रतिभा पाटिल के उत्‍तराधिकारी के रूप में देश के 12 वें राष्ट्रपति के लिए प्रणब मुखर्जी के नाम पर फैसला कर चुकी थी और इस कदम पर आम सहमति बनने लगी थी। ममता बनर्जी और मुलायम सिंह ने कलाम के प्रति अपना समर्थन घोषित कर दौड़ तेज कर दी। इस फैसले से भाजपा को अपने उम्मीदवार के चयन में मदद मिली कि किसे संप्रग उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा किया जाए। शीघ्र ही तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने कलाम को अपना समर्थन दे दिया और आरएसएस भी उनके समर्थन में आ गया। आडवाणी ने कलाम के लिए समर्थन जुटाने के वास्ते राष्ट्रीय अभियान की भी पेशकश की, बशर्ते वह चुनाव लड़ने पर राजी हो जाएं।

सिंह ने लिखा है, ''कलाम को खुलकर समर्थन करने वालों समेत सभी जानते थे कि संख्याबल उनके खिलाफ है।'' उन्होंने लिखा है, ''मीडिया सर्वेक्षण भी इस आकलन के पक्ष में था। कांग्रेस पार्टी के कलाम के विरुद्ध होने और संसद के दोनों सदनों एवं ज्यादातर विधानसभाओं में संप्रग का स्पष्ट बहुमत होने के कारण कलाम को जो सर्वाधिक मत मिलता वह बस 42 फीसदी था।''

सिंह लिखते हैं, ''मीडिया ने विचार व्यक्त किया कि डॉ कलाम यदि सभी दलों में क्रॉस वोटिंग करवा पाए तब ही वह जीत सकते हैं। कई मीडिया विशेषज्ञ मानते थे कि डॉ. कलाम की लोकप्रियता को देखते हुए इस बात की संभावना थी कि सांसद एवं विधायक क्रॉसवोट करते। लेकिन हम, उनके निकट सहयोगी, जानते थे कि वह क्रॉस-वोट की क्षुद्र राजनीति को कभी बढ़ावा नहीं देंगे।'' सिंह के मुताबिक ऐसा जान पड़ता है कि कलाम बनर्जी की भावुक अपील के बाद कलाम द्रवित हो गए और उन्‍हें तत्काल फैसला करने में दुविधा हुई।

उन्होंने लिखा है, ''लेकिन इस पक्की हार से हटने में डॉ. कलाम की दुविधा की प्राथमिक वजह कुछ और थी। ऐसा इसलिए था कि जनता के राष्ट्रपति देश में जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते थे। हमारी चर्चा ने एक नया कोण लिया कि यदि डॉ कलाम हारने वाला चुनाव लड़ भी जाते हैं तो क्या वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जनचेतना जगा सकते और इस कैंसर के खिलाफ लड़ाई जीत सकते हैं?"

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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एपीजे अब्दुल कलाम, 2012 राष्ट्रपति चुनाव, सृजनपाल सिंह, APJ Abdul Kalam, 2012 Presidential Election, Srijan Pal Singh, प्रणब मुखर्जी, Pranab Mukherjee
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