देश में इस तरह का पहला मामला आया है, जिसमें 5 साल की एक लड़की को सांस लेने से जुड़े गंभीर लक्षण से ग्रसित पाया गया है, जिसका फिलहाल कोई सही सही इलाज नहीं है।
सिंड्रोम का नाम 'आरओएचएचएडी' है और लड़की का इलाज कर रहे डॉक्टर के अनुसार लड़की जब जागती है तो सामान्य तरीके से सांस लेती है, लेकिन सोते समय उसकी सांसें बंद हो जाती हैं या अनियमित हो जाती हैं।
बांबे अस्पताल में शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ मुकेश संकलेजा ने कहा, 'लड़की को तीन साल पहले रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर गैंगलियोन्यूरोब्लास्टोमा के लिए हमारे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब हमने उसका इलाज किया था और छुट्टी दे दी थी।'
उन्होंने बताया कि बच्ची के माता-पिता ने मई, 2013 में उसे फिर भर्ती कराया, तब उसे सुस्ती अधिक रहने की शिकायत थी। हमने उसे एक बार फिर आईसीयू में रखा ताकि उसे सांस लेने में दिक्कत नहीं हो। उसे अक्तूबर में छुट्टी दे दी गई। आईसीयू में रहने के दौरान उसे दो बार दिल का दौरा तक पड़ गया। बच्ची को दिसंबर 2013 में एक बार फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया।
डॉक्टर के अनुसार, 'जब तीसरी बार उसे भर्ती कराया गया तो हमने उसकी बीमारी की पूरी पड़ताल की और हमें लगा कि वह 'रैपिड-ऑनसेट ओबेसिटी विद हाइपोथलेमिक डिसफंक्शन, हाइपोवेंटिलेशन एंड ऑटोनोमिक डिसरेगुलेशन' (आरओएचएसएडी) सिंड्रोम से पीड़ित थी।'
लड़की को इस साल जून महीने में शिशुरोग विभाग में भेज दिया गया जहां अब भी उसका इलाज चल रहा है। डॉ. संकलेचा के मुताबिक लड़की के जागते समय तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन उसके सोते समय ध्यान रखना पड़ता है। उस दौरान उसकी नाक में एक बाई पैप मशीन लगा दी जाती है, जिससे वह सोते समय सांस लेती रहे।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर में इस सिंड्रोम के केवल 100 के आसपास मामले हैं और भारत में इस तरह का यह पहला मामला है।
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