मैंने 'आप' से अपनी वैगन-आर क्यों वापस मांगी : कुंदन शर्मा

परिचय : कुंदन शर्मा आम आदमी पार्टी के साथ वॉलंटियर के रूप में जुड़े हुए थे... उन्होंने अन्ना यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल के साथ एम.टेक किया था, और अब वह एक इन्वेस्टमेंट बैंक में काम करते हैं... कुंदन शर्मा तब सुर्खियों में आए थे, जब वर्ष 2013 में उन्होंने 'आप' को नीले रंग की वैगन-आर कार दान में दी, जिसे पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान काफी इस्तेमाल किया था...

हां, मैंने आम आदमी पार्टी से मेरी नीली वैगन-आर, एक मोटरसाइकिल और कई अन्य चीज़ें वापस मांगी हैं, जो मैंने और मेरी पत्नी श्रद्धा ने अब तक पार्टी को दान की हैं। दरअसल, मुझे इनमें से कुछ भी वापस नहीं चाहिए, लेकिन मैंने वैगन-आर को अपनी निराशा व्यक्त करने का हथियार बनाया है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल सुन नहीं रहे हैं, और दूसरों को अहंकार न करने की सीख देने वाला आज खुद सिर्फ अहंकार की भाषा बोल रहा है।

मुझे अरविंद केजरीवाल पर विश्वास था। आज मैं उन पर भरोसा नहीं करता। अब मैं सोचता हूं कि वह जो बोल रहे हैं वह सच है या नहीं। मैं 'आप' में इसलिए नहीं आया था कि दिल्ली में एक वैकल्पिक सरकार बन जाए। मैं आया था वैकल्पिक राजनीति के लिए, साफ राजनीति के लिए...

सिर्फ पिछले कुछ दिनों के वाकयात की वजह से मैंने 'आप' से दूरी बनाने का फैसला नहीं किया है। जब मैंने हाल के दिल्ली चुनाव में एक दागी उम्मीदवार को टिकट देने के खिलाफ आवाज़ उठाई, कोई कार्रवाई नहीं की गई। मैंने अरविंद केजरीवाल से मिलने की कई बार कोशिश की, ताकि अपनी बात रख सकूं। मैंने ई-मेल किए। मैंने उन्हें लिखा। मैंने उन्हें फोन करने की कोशिश की, लेकिन किसी भी जरिये से कामयाबी नहीं मिली। इसलिए मैंने पब्लिक डोमेन में यह मुद्दा उठाया।

अब लोग ट्विटर पर मुझे और मेरी पत्नी को गालियां दे रहे हैं, धमका रहे हैं। मुझे अवाम (आम आदमी वॉलंटियर एक्शन मंच) का एजेंट कहा जा रहा है। मुझ पर पब्लिसिटी बटोरने का लालची होने का आरोप लगाया जा रहा है। मैंने 'आप' या केजरीवाल से कभी टिकट की ख्वाहिश नहीं की। मैं सॉफ्टवेयर का से जुड़ा आदमी हूं। मैंने राजनीति में कभी करियर नहीं बनाना चाहा।

मैं हिल गया हूं। स्वच्छ राजनीति का वह बहुत बड़ा सपना, जो हज़ारों को एक साथ ले आया था, आज टूटकर बिखर गया है। मैं अपने पिता से नज़रें नहीं मिला पा रहा हूं, जिन्होंने अपनी पेंशन का एक-तिहाई आम आदमी पार्टी को दान किया था।

अगर 'आप' मेरी कार, मेरी मोटरसाइकिल और मेरे पैसे वापस कर भी देती है, तो मैं उन्हें किसी एनजीओ को दान कर दूंगा।

मैंने 1 जनवरी, 2013 को अरविंद केजरीवाल से बात की और उन्हें वैगन-आर देने की पेशकश की थी। मैंने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि यह एक ऐसी चीज़ थी, जिससे आम आदमी खुद को जोड़कर देख सकता था, और इससे मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल को आम आदमी की छवि मिलती। उन्होंन मुझसे कहा कि उन्हें एक 'दान प्रमाणपत्र' जारी करना होगा, और कार का मूल्यांकन करवाना होगा। मैंने कहा, उनमें से कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, और वह कार का रजिस्ट्रेशन आम आदमी पार्टी के नाम ट्रांसफर करवा लें। इस प्रक्रिया में आठ महीने लग गए।

अब 'आप' नेतृत्व से मेरे दो खास सवाल हैं...

  1. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की सभी मांगें स्वीकार कर ली थीं। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि सभी मांगें जायज़ थीं? सो क्या जायज़ मांग करने वाले लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने की जगह उनका पार्टी में सम्मान नहीं होना चाहिए?
  2. प्रत्येक आरोप के लिए 'आप' का रटा-रटाया जवाब होता है - कि इस मामले की जांच आंतरिक लोकपाल द्वारा कर ली गई है। लेकिन प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के विरुद्ध षडयंत्र के आरोपों के मामले में केजरीवाल खुद ही लोकपाल बन गए, और अपने ही लोकपाल को निष्कासित कर दिया?

मैं यह नहीं कह सकता कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव सही थे या नहीं। मैं इसका फैसला नहीं कर सकता। लेकिन उन्होंने सही सवाल पूछे थे, और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मैं यह जानकर भी बहुत खिन्न हुआ कि कुछ विधायकों ने शांति भूषण को परेशान किया, और उन्हें एक मीटिंग से बाहर निकालने की कोशिश की।

मुझे अरविंद केजरीवाल से यह कहना है - योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कार्रवाई कीजिए, लेकिन तभी कीजिए, जब आपके पास उन पर लगाए गए आरोपों के सबूत हों। किसी को सिर्फ इसलिए बाहर मत फेंकिए, क्योंकि वह आपसे सहमत नहीं। आप हर बार, हर समय सही नहीं हो सकते, कोई भी नहीं हो सकता।

बहुतों ने मुझसे पूछा, अगर योगेंद्र यादव या प्रशांत भूषण कोई पार्टी बनाते हैं, तो क्या मैं उन्हें समर्थन दूंगा। मेरा जवाब है, मैं नहीं दूंगा। इस जवाब का उन दोनों से कोई लेना-देना है, बल्कि जैसा मैंने पहले भी कहा, मैं यहां दिल्ली में वैकल्पिक सरकार बनाने नहीं आया था, मैं आया था वैकल्पिक राजनीति के लिए। ...और मेरा सपना चूर-चूर हो गया है।

सभी राजनीतिज्ञ एक जैसे ही होते हैं, कोई अंतर नहीं। मैं राजनीति में भरोसा पूरी तरह खो चुका हूं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।


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