मराठा जन शक्ति के पीछे कौन? कैसे संभव हुआ बिना किसी नेता का मोर्चा?

मुंबई में इसे अब तक का सबसे विशाल मोर्चा बताया जा रहा है. बिना किसी बड़े चेहरे के मोर्चे की भीड़ के साथ उसका अनुशासन और भी हैरान करने वाला है.

मराठा जन शक्ति के पीछे कौन? कैसे संभव हुआ बिना किसी नेता का मोर्चा?

मोर्चे में कुल कितने लोग शामिल हुए इसका कोई अधिकृत आंकड़ा अभी तक सामने नहीं आया है.(फाइल फोटो)

खास बातें

  • मुंबई में बुधवार को निकले मराठा क्रांति मोर्चे ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए
  • मुंबई में इसे अब तक का सबसे विशाल मोर्चा बताया जा रहा है
  • बड़े से बड़ा राजनीतिक पंडित भी मोर्चे की इस कामयाबी से हैरान है
मुंबई:

मुंबई में बुधवार को निकले मराठा क्रांति मोर्चे ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. मोर्चे में कुल कितने लोग शामिल हुए इसका कोई अधिकृत आंकड़ा अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन मुंबई में इसे अब तक का सबसे विशाल मोर्चा बताया जा रहा है. बिना किसी बड़े चेहरे के मोर्चे की भीड़ के साथ उसका अनुशासन और भी हैरान करने वाला है कि ऐसी कौन सी शक्ति है जो मराठा समाज को इस कदर लामबंद कर रही है. बड़े से बड़ा राजनीतिक पंडित भी मराठा क्रांति मोर्चे की इस कामयाबी से हैरान है. मोर्चे की महिला संयोजक प्रज्ञा जाधव के मुताबिक 2016 में अहमद नगर के कोपर्डी में मराठा समाज की छोटी बच्ची के साथ बलात्कार और फिर उसकी निर्मम हत्या ने समाज को उद्वेलित कर लामबंद कर दिया. वर्ना आरक्षण का मुद्दा तो सालों से चला आ रहा था.

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सबसे पहले औरंगाबाद में ही मराठा क्रांति का मूक मोर्चा निकला
कोपर्डी अहमद नगर में आता है लेकिन वहां के मराठों की रोटी बेटी का रिश्ता औरंगाबाद के मराठों से ज्यादा रहा है. 9 अगस्त को सबसे पहले औरंगाबाद में ही मराठा क्रांति का मूक मोर्चा निकला. राज्य भर में 57 मोर्चे हुए और आखिरी मोर्चा 9 अगस्त को मुंबई में होना तय हुआ जिसकी तैयारी जनवरी 2017 से ही शुरू हो गई थी. तभी से 137 अलग - अलग मराठा संगठन इस काम मे जुट गए. इसके लिए दादर में बाकायदा एक वॉर रूम बनाया गया था जहां से अलग - अलग संदेश बनाकर सोशल मीडिया के जरिये राज्य के  कोने कोने तक लोगों को पहुंचाए जा रहे थे.

एक  शख्स के मोबाइल में तकरीबन 100 व्‍हाट्सऐप ग्रुप. इसके अलावा फेसबुक और ट्विटर के जरिये रोज नए नए संदेश मिनटों में लाखों तक पहुंचाए जाते रहे. मोर्चे के लिए बने सोशल मीडिया के संयोजक भैया पाटिल के नेतृत्व में 10 युवकों का एक दल, संदेश का कंटेंट लिखने से लेकर डिजाईन बनाने में महीने रात दिन सक्रिय रहा और 100 के करीब युवकों का जत्था उन संदेशों को अपने अपने फ़ोन और लैपटॉप के जरिये आगे बढ़ाता रहा.

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भीड़ के लिए बंदोबस्त करने की थी बड़ी जिम्मेदारी
बड़ी जिम्मेदारी इतनी बड़ी संख्या में जुटने वाली भीड़ के लिए बंदोबस्त करने की थी. पनवेल से मुंबई तक तकरीबन 35 हजार वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था की गई. इसकी जिम्मेदारी उठाई नानासाहेब कुटे पाटिल ने. नानासाहेब कुटे पाटिल ने अपनी टीम के साथ दो महीने पहले से ही ट्रैफिक पुलिस के साथ मिलकर पार्किंग का पूरा खाका तैयार किया. शहर में वाहनों की संख्या बढ़ने से ट्रैफिक की समस्या पैदा हो सकती है इसलिए तकरीबन 10 हजार वाहनों को मुंबई के बाहर ठाणे, नवी मुंबई और पनवेल में ही पार्क कराने की व्यवस्था की गई. मोर्च आने वालों को वहां से लोकल गाड़ी से ही मुंबई आने का आव्हान किया गया. नानासाहेब कुटे पाटिल के मुताबिक उनके लिए ये बड़ी चनौती थी. पूरी योजना इस तरह से बनाई गई कि मोर्चे में आये हुए लोग सभा ख़त्म होने के 3 से 4 घंटे के बीच ही वापस चले जाएं ताकि मुंबई का जनजीवन वापस अपनी गति में आ जाये और हुआ भी वैसा ही.

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10000 से भी ज्यादा वॉलंटियर तैयार किए गए
मुंबई में मोर्चे के दौरान किसी तरह की बदइंतजामी ना हो इसके लिए 10000 से भी ज्यादा वॉलंटियर तैयार किए गए और मोर्चे की पूरी आचार संहिता तैयार की गई थी. जिसमे सबसे अहम खुद का अनुशासन बनाये रखना सभी के लिए अनिवार्य था. अब तक का ये पहला मोर्चा था जिसमे समाज की लड़कियों को ही आगे रखा गया था, उसके बाद महिलाएं, फिर युवक, उसके बाद पुरुष और अंत में नेताओं को जगह दी गई थी. मंच पर भी सिर्फ लड़कियों को जगह दी गई थी और सम्बोधन भी लड़कियों ने ही किया.

आयोजकों का दावा, मोर्चा पूरी तरह से गैर राजनीतिक था
आयोजकों का दावा है मोर्चा पूरी तरह से गैर राजनीतिक था, हालांकि इसे लेकर सभी दलों के नेताओं का खुलेआम समर्थन दिखा. सबसे खास बात ये रही कि मोर्चे के लिए नेताओं ने पैसे का ऑफर भी दिया था लेकिन मोर्चे के सम्मान की खातिर मना कर दिया गया. किसी से चंदा नहीं लिया गया, जब जहां जरूरत पड़ी सबने खुद ही दिलखोल कर खर्च किया. मुंबई मराठा मोर्चे के संयोजक वीरेंद्र पवार ने बताया कि पहले दिन से ही तय था कि किसी से भी एक भी रुपया नहीं लिया जायेगा. वीरेंद्र पवार के मुताबिक साढ़े तीन सौ साल बाद मराठों को एक बार फिर अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला था और छत्रपति शिवाजी महाराज का चेहरा लोगों में जोश भरने के लिए काफी था.

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राज्य में 32 फीसदी मराठा हैं और 148 के करीब मराठा विधायक. इसके बावजूद मराठा समाज का इस्तेमाल मोटे तौर पर वोटबैंक के रूप में ही किया गया. समाज की शिकायत है कि मराठा युवकों की कोई नहीं सुनता, नेता आगे बढ़ता गया और समाज पीछे. शायद यही वजह है कि मौजूदा नेताओं में से कोई चेहरा चुनने की बजाय छत्रपति शिवाजी महाराज को चुना गया, जो मराठा समाज के स्वभाविक सम्मान के प्रतीक हैं.

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जाहिर है समाज से बड़ा कोई शिक्षक नहीं होता. मराठा क्रांति मोर्चे के मुद्दे हो सकता है सिर्फ मराठों से जुड़े हों, लेकिन जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए बगैर किसी तोड़फोड़ या सार्वजनिक संपति को नुकसान पहुंचाए भी सिस्टम पर अपना गहरा असर छोड़ सकती है, इस लिहाज से मराठा क्रांति मोर्चे की मिसाल दी जा सकती है. बिना आवाज की क्रांति ने एक नई राह दिखाई है. अब सवाल हमें खुद से पूछना होगा कि क्या हम इन लोगों से कुछ सीखने को तैयार हैं.
 


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