देहरादून/केदारनाथ/बद्रीनाथ:
उत्तराखंड में बचाव का काम आज भी जारी है। यहां के पहाड़ी इलाकों में अभी भी करीब 4000 लोग फंसे हुए हैं, जिन्हें निकाला जाना बाकी है।
धरासु, हर्षिल और गौचर इलाके में मौसम साफ है और वायुसेना ने इन इलाकों में रेसक्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया है, लेकिन बद्रीनाथ में बचावकर्मी मौसम साफ होने का इंतजार कर रहे हैं।
इससे पहले बुधवार को उत्तराखंड के कई इलाकों में तेज बारिश हुई, जिससे राहत और बचावकार्य में काफी दिक्कतें आईं।
बुधवार दोपहर तक हर्षिल से 350 लोगों को निकाला गया, जिसके बाद बारिश की वजह बचाव का काम धीमा पड़ गया। राज्य सरकार का कहना है कि जल्द से जल्द फंसे हुए लोगों को निकाल लिया जाएगा।
वहीं मौसम विभाग का कहना है कि उत्तराखंड में अगले 48 घंटे तक बारिश के आसार हैं। फिलहाल बड़ी चुनौती केदारनाथ और दूसरे इलाकों में फंसे शवों को निकालने और उनका अंतिम संस्कार करने की है। बुधवार को केदारनाथ में शवों का सामूहिक दाह-संस्कार शुरू किया गया, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां भी पूरी नहीं पड़ रहीं। दरअसल, यहां बीमारियों के फैलने का खतरा है, जो इलाके में मलबे और शवों की वजह से फैल सकती हैं। हालांकि एनडीएमए अब इन शवों को निकालने के लिए जोर लगाने की बात कह रहा है।
दारमा और व्यास घाटी में जहां 16 तारीख की रात तबाही तो पहुंची, लेकिन उसके बाद मदद के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। वक्त पर न तो कोई सरकारी मदद मिली और न ही मीडिया के लोग ही वहां पहुंच पाए। यहां का हाल जानने के लिए एनडीटीवी की टीम सबसे पहले पहुंची।
16 तारीख को आई तबाही का मंजर यहां हर ओर दिखाई दे रहा है। लोगों के मकान और दुकान पूरी तरह से तबाह हो गए हैं हांलाकि अब यहां राहत और बचाव टीम पहुंच चुकी है और फिलहाल 137 लोगों को यहां से निकाल लिया गया है। इसमें कुछ लोग कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री हैं। दरअसल, व्यास घाटी से ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू होती है और इस इलाके की सीमा नेपाल के साथ चीन से भी जुड़ती है।
वहीं उत्तराखंड के ऊखीमठ के इलाके के कई गांवों में इन दिनों मातम छाया हुआ है। बताया जा रहा है कि सिर्फ ऊखीमठ के ही 800 लोग अपने घर नहीं पहुंचे हैं। यात्रा के सीजन में इन गांवों के ज्यादातर पुरुष केदारनाथ में ही रहते हैं। कुछ पंडित हैं तो कइयों की वहां दुकानें हैं।
धरासु, हर्षिल और गौचर इलाके में मौसम साफ है और वायुसेना ने इन इलाकों में रेसक्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया है, लेकिन बद्रीनाथ में बचावकर्मी मौसम साफ होने का इंतजार कर रहे हैं।
इससे पहले बुधवार को उत्तराखंड के कई इलाकों में तेज बारिश हुई, जिससे राहत और बचावकार्य में काफी दिक्कतें आईं।
बुधवार दोपहर तक हर्षिल से 350 लोगों को निकाला गया, जिसके बाद बारिश की वजह बचाव का काम धीमा पड़ गया। राज्य सरकार का कहना है कि जल्द से जल्द फंसे हुए लोगों को निकाल लिया जाएगा।
वहीं मौसम विभाग का कहना है कि उत्तराखंड में अगले 48 घंटे तक बारिश के आसार हैं। फिलहाल बड़ी चुनौती केदारनाथ और दूसरे इलाकों में फंसे शवों को निकालने और उनका अंतिम संस्कार करने की है। बुधवार को केदारनाथ में शवों का सामूहिक दाह-संस्कार शुरू किया गया, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां भी पूरी नहीं पड़ रहीं। दरअसल, यहां बीमारियों के फैलने का खतरा है, जो इलाके में मलबे और शवों की वजह से फैल सकती हैं। हालांकि एनडीएमए अब इन शवों को निकालने के लिए जोर लगाने की बात कह रहा है।
दारमा और व्यास घाटी में जहां 16 तारीख की रात तबाही तो पहुंची, लेकिन उसके बाद मदद के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। वक्त पर न तो कोई सरकारी मदद मिली और न ही मीडिया के लोग ही वहां पहुंच पाए। यहां का हाल जानने के लिए एनडीटीवी की टीम सबसे पहले पहुंची।
16 तारीख को आई तबाही का मंजर यहां हर ओर दिखाई दे रहा है। लोगों के मकान और दुकान पूरी तरह से तबाह हो गए हैं हांलाकि अब यहां राहत और बचाव टीम पहुंच चुकी है और फिलहाल 137 लोगों को यहां से निकाल लिया गया है। इसमें कुछ लोग कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री हैं। दरअसल, व्यास घाटी से ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू होती है और इस इलाके की सीमा नेपाल के साथ चीन से भी जुड़ती है।
वहीं उत्तराखंड के ऊखीमठ के इलाके के कई गांवों में इन दिनों मातम छाया हुआ है। बताया जा रहा है कि सिर्फ ऊखीमठ के ही 800 लोग अपने घर नहीं पहुंचे हैं। यात्रा के सीजन में इन गांवों के ज्यादातर पुरुष केदारनाथ में ही रहते हैं। कुछ पंडित हैं तो कइयों की वहां दुकानें हैं।
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