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This Article is From Jul 24, 2017

उमा भारती ने कहा- हमने शिवाजी के लिए अपशब्द सुने, दीनानाथ बत्रा के सुझावों पर आपत्ति क्यों?

एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों में बदलाव के सुझाव पर विवाद में फंसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के दीनानाथ बत्रा का केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने बचाव किया

उमा भारती ने कहा- हमने शिवाजी के लिए अपशब्द सुने, दीनानाथ बत्रा के सुझावों पर आपत्ति क्यों?
केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने संघ से जुड़े दीनानाथ बत्रा का बचाव किया है.
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने आरएसएस से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के दीनानाथ बत्रा का बचाव किया है. उमा भारती ने कहा है कि हमारे विरोधी शिवाजी के लिए 'पहाड़ी चूहा' शब्द तक इस्तेमाल कर चुके हैं इसलिए दीनानाथ बत्रा को भी पाठ्यक्रम में बदलाव के सुझाव देने का पूरा हक है और उनसे उनकी अभिव्यक्ति की आजादी कोई छीन नहीं सकता.

आरएसएस से जुड़े बत्रा ने एनसीआरटी को भेजे अपने सुझावों में अंग्रेजी, उर्दू  और अरबी के शब्दों के अलावा टैगोर, एमएफ हुसैन और गालिब का जिक्र हटाने की मांग की है. बत्रा को एनसीईआरटी की किताबों में गुजरात दंगों में 2000 लोगों के मारे जाने की जानकारी पर एतराज है. वे नहीं चाहते कि सिख विरोधी दंगों पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की ओर से मांगी गई माफी के बारे में बताया जाए.

वीडियो- उमा भारती ने कहा, अभिव्यक्ति की आजादी न छीनें



एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए जनता से सुझाव मांगे हैं और इसी सिलसिले में बत्रा ने ये सुझाव भेजे हैं.  लेकिन एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा, “बत्रा ने एनसीईआरटी को जो सुझाव दिए हैं वे सरकार के सुझाव नहीं बत्रा के सुझाव हैं. इसे लेकर इतना हंगामा इसलिए मचाया जा रहा है क्योंकि वामपंथी अब तक बोलने की आजादी पर अपना ही अधिकार समझते थे. इन लोगों का काम सिर्फ बीजेपी और संघ के लोगों को गाली देना रहा है. हमने शिवाजी के लिए पहाड़ी चूहा शब्द तक सुना है. अब इन लोगों को तकलीफ क्यों हो रही है.”

उधर संसद में दीनानाथ बत्रा के सुझावों को लेकर सवाल उठे. तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरिक ओ ब्रायन बत्रा के सुझावों को लेकर राज्यसभा में बोले. उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर को पाठ्यपुस्तकों से हटाने की बात करना हैरान करने वाला है. हालांकि सूत्रों के मुताबिक सरकार का कहना है कि पाठ्य पुस्तकों के लिए सुझाव मांगे गए हैं. हर किसी को सुझाव भेजने का का हक है. सुझाव भेजे जाने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें स्वीकार कर लिया गया है.

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