नई दिल्ली:
राजनीतिक विरोध को दरकिनार करते हुए सरकार ने देश की दो तिहाई जनता को एक से तीन रुपये किलो के सस्ते दाम पर हर महीने पांच किलो अनाज का कानूनी हक देने के लिए अध्यादेश लाने का बुधवार को फैसला किया।
खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अमल में आने पर यह 1,25,000 करोड़ रुपये की सरकारी सहायता वाला दुनिया का इस तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। इसके तहत देश की 67 प्रतिशत आबादी को 6.2 करोड़ टन चावल, गेहूं तथा मोटा अनाज सस्ते दाम पर उपलब्ध होगा।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने खाद्य सुरक्षा विधेयक के कार्यान्वयन के लिए अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को आज मंजूरी दे दी। पिछले महीने मतभेदों के कारण इस मुद्दे पर फैसला टाल दिया गया था। खाद्य मंत्री केवी थामस ने कहा, ‘‘मंत्रिमंडल ने आम सहमति से खाद्य सुरक्षा विधेयक लागू करने के लिये अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी। इसे अब मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।’’
अध्यादेश संसद का मानसून सत्र शुरू होने के कुछ सप्ताह पहले ही लाया जा रहा है। राजनीतिक दल अध्यादेश लाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि विधेयक को मंजूरी मिलने से पहले इस पर संसद में बहस होनी चाहिए। वामदलों ने अध्यादेश का रास्ता अपनाने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि संप्रग-दो ने संसद की अवमानना की है।
वहीं, भाजपा ने इसे ‘चुनावी हथकंडा’ बताया है। पार्टी का कहना है कि कांग्रेस संसद में बहस से भाग रही है।
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने भी अध्यादेश लाने के निर्णय का कड़ा विरोध किया है और कहा कि यह अलोकतांत्रिक है और कार्यक्रम खाद्य अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देगा।
अध्यादेश आने के बाद भी संबंधित विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता होगी। अध्यादेश प्रति व्यक्ति प्रति माह 3, 2 और 1 रुपये किलो के तयशुदा मूल्य पर पांच किलो चावल, गेहूं या मोटे अनाज की गारंटी देगा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश लागू हो जाएगा।
बहरहाल, अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले लगभग 2.43 करोड अत्यंत गरीब लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 35 किलो अनाज प्रति परिवार प्रति माह मिलेगा।
मंत्रिंडल की बैठक में कुछ मंत्रियों ने प्रावधान को कानून का रूप दिया जाए और इसे यथाशीघ्र संसद से पारित कराये जाने की इच्छा जताई।
कृषि मंत्री शरद पवार ने बैठक में कहा कि सिंचाई के लिए और कोष उपलब्ध कराया जाना चाहिए। वह यह भी चाहते हैं कि अनाज के साथ दाल भी उपलब्ध कराई जाए ताकि योजना से गरीबों को पूरा पोषण मिले।
ऐसा कहा जाता है कि पवार को विधेयक पर आपत्ति थी। सूत्रों के अनुसार उन्होंने बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए जीन संवर्धित (जीएम) खाद्य का समर्थन किया।
अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रपति के इस पर हस्ताक्षर होने के बाद नियम तैयार किए जाएंगे और राज्य सरकारों द्वारा लाभार्थियों की सूची तैयार किए जाने के बाद कार्यक्रम अगस्त से शुरू किया जाएगा। उसके मुताबिक योजना को पूरे देश में लागू होने में छह महीने का समय लगेगा।
कानून मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार खाद्य सुरक्षा अध्यादेश जारी करने का लाभ यह है कि विधेयक का स्वरूप यथावत रहेगा और अगर किसी दल द्वारा संसद में इसके पारित होने के दौरान उपबंधों में संशोधन का प्रस्ताव किया जाता है तो इसमें संशोधन नहीं हो सकता।
ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों में एक रपये किलो अनाज उपलब्ध कराए जाने के मद्देनजर सरकार ने अध्यादेश लाने का निर्णय किया है। इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा, ‘‘बड़े पैमाने पर अनाज के भंडार को देखते हुए यह अच्छा कदम हो सकता है। लेकिन कबतक यह टिकाऊ होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि हम कब पीडीएस व्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ उत्पादन स्थिर करने और भंडारण तथा परिवहन में निवेश करते हैं।’’
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती सार्वजनिक जन वितरण (पीडीएस) के जरिये होने वाली कालाबजारी पर रोक लगाना है। दूसरी बड़ी चुनौती खाद्य विधेयक के अनुसार मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर खाद्यान की खरीद होगी। इससे निजी क्षेत्र की कंपनियां इसमें आ सकती हैं।
खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अमल में आने पर यह 1,25,000 करोड़ रुपये की सरकारी सहायता वाला दुनिया का इस तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। इसके तहत देश की 67 प्रतिशत आबादी को 6.2 करोड़ टन चावल, गेहूं तथा मोटा अनाज सस्ते दाम पर उपलब्ध होगा।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने खाद्य सुरक्षा विधेयक के कार्यान्वयन के लिए अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को आज मंजूरी दे दी। पिछले महीने मतभेदों के कारण इस मुद्दे पर फैसला टाल दिया गया था। खाद्य मंत्री केवी थामस ने कहा, ‘‘मंत्रिमंडल ने आम सहमति से खाद्य सुरक्षा विधेयक लागू करने के लिये अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी। इसे अब मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।’’
अध्यादेश संसद का मानसून सत्र शुरू होने के कुछ सप्ताह पहले ही लाया जा रहा है। राजनीतिक दल अध्यादेश लाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि विधेयक को मंजूरी मिलने से पहले इस पर संसद में बहस होनी चाहिए। वामदलों ने अध्यादेश का रास्ता अपनाने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि संप्रग-दो ने संसद की अवमानना की है।
वहीं, भाजपा ने इसे ‘चुनावी हथकंडा’ बताया है। पार्टी का कहना है कि कांग्रेस संसद में बहस से भाग रही है।
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने भी अध्यादेश लाने के निर्णय का कड़ा विरोध किया है और कहा कि यह अलोकतांत्रिक है और कार्यक्रम खाद्य अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देगा।
अध्यादेश आने के बाद भी संबंधित विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता होगी। अध्यादेश प्रति व्यक्ति प्रति माह 3, 2 और 1 रुपये किलो के तयशुदा मूल्य पर पांच किलो चावल, गेहूं या मोटे अनाज की गारंटी देगा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश लागू हो जाएगा।
बहरहाल, अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले लगभग 2.43 करोड अत्यंत गरीब लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 35 किलो अनाज प्रति परिवार प्रति माह मिलेगा।
मंत्रिंडल की बैठक में कुछ मंत्रियों ने प्रावधान को कानून का रूप दिया जाए और इसे यथाशीघ्र संसद से पारित कराये जाने की इच्छा जताई।
कृषि मंत्री शरद पवार ने बैठक में कहा कि सिंचाई के लिए और कोष उपलब्ध कराया जाना चाहिए। वह यह भी चाहते हैं कि अनाज के साथ दाल भी उपलब्ध कराई जाए ताकि योजना से गरीबों को पूरा पोषण मिले।
ऐसा कहा जाता है कि पवार को विधेयक पर आपत्ति थी। सूत्रों के अनुसार उन्होंने बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए जीन संवर्धित (जीएम) खाद्य का समर्थन किया।
अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रपति के इस पर हस्ताक्षर होने के बाद नियम तैयार किए जाएंगे और राज्य सरकारों द्वारा लाभार्थियों की सूची तैयार किए जाने के बाद कार्यक्रम अगस्त से शुरू किया जाएगा। उसके मुताबिक योजना को पूरे देश में लागू होने में छह महीने का समय लगेगा।
कानून मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार खाद्य सुरक्षा अध्यादेश जारी करने का लाभ यह है कि विधेयक का स्वरूप यथावत रहेगा और अगर किसी दल द्वारा संसद में इसके पारित होने के दौरान उपबंधों में संशोधन का प्रस्ताव किया जाता है तो इसमें संशोधन नहीं हो सकता।
ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों में एक रपये किलो अनाज उपलब्ध कराए जाने के मद्देनजर सरकार ने अध्यादेश लाने का निर्णय किया है। इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा, ‘‘बड़े पैमाने पर अनाज के भंडार को देखते हुए यह अच्छा कदम हो सकता है। लेकिन कबतक यह टिकाऊ होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि हम कब पीडीएस व्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ उत्पादन स्थिर करने और भंडारण तथा परिवहन में निवेश करते हैं।’’
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती सार्वजनिक जन वितरण (पीडीएस) के जरिये होने वाली कालाबजारी पर रोक लगाना है। दूसरी बड़ी चुनौती खाद्य विधेयक के अनुसार मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर खाद्यान की खरीद होगी। इससे निजी क्षेत्र की कंपनियां इसमें आ सकती हैं।
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