क्या यह महज इत्तफाक है, या किसी गड़बड़ी का नतीजा, डीडीए के लकी ड्रॉ में एक ही व्यक्ति नसीबचंद के तीन बेटों के फ्लैट निकल आए हैं, और यही नहीं, उनके आवेदन नंबर भी एक ही सीरियल में थे। जी हां, यह सच है, और अगर यह महज़ किस्मत से जुड़ा मामला है, तो नसीबचंद के नसीब को सलाम...
लेकिन अगर कोई गड़बड़ है तो डीडीए की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। लोग इसलिए भी हैरान हैं कि लकी ड्रॉ में आवेदन संख्या 1145320 (हेतराम पुत्र गीता राम), 1145321 (अनिल कुमार पुत्र नसीबचंद), 1145322 (गुरनैब सिंह पुत्र नसीबचंद) तथा 1145323 (तेजा सिंह पुत्र नसीबचंद), यानि चार लगातार सीरियल नंबरों का फ्लैट निकल आया है। जिस लकी ड्रॉ के लिए हर एक फ्लैट पर 40 आवेदन आए हुए थे, या यूं कहिए, हर 40 लोगों में से सिर्फ एक के नाम फ्लैट निकल सकता था, वहां नसीबचंद के तीनों बेटों का नसीब खुल गया।
दरअसल, जब आप ड्रॉ के नतीजे देखेंगे तो अनुसूचित जनजाति श्रेणी (एसटी कैटेगरी) में पेज नंबर 1495 आते ही आपकी आंखें ठिठककर रह जाएंगी, क्योंकि लिस्ट में लगातार नंबरों वाली चार एप्लिकेशन इस ड्रॉ में कामयाब दिख रही हैं, जिनमें नसीबचंद के तीन बेटे शामिल हैं, और इसी के चलते बहुत-से लोग डीडीए को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
पेश से बिजनेसमैन राहुल गुप्ता का कहना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि बिना गड़बड़ी किए इस तरह चार लगातार नंबरों पर ड्रॉ निकल आए। वह इस मामले को डीडीए के ड्रॉ की तारीख में बार-बार फेरबदल किए जाने से भी जोड़कर देखते हैं।
उधर, डीडीए की प्रवक्ता नीमोधर कहती हैं कि इस तरह की शिकायत मिलने के बाद पूरी जांच करवाई गई है, जिसमें किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। उनका कहना है कि चारों ही फॉर्मों को कंप्यूटर ने जो रैन्डम नंबर दिए, उनमें एक लाख से ज्यादा का अंतर था। यानि अनिल कुमार, जिनका फॉर्म नंबर 1145321 था, उस फॉर्म को कंप्यूटर ने 759776 नंबर दिया था और उनका च्वॉइस नंबर भी अलग था। यही नहीं, जिन लोगों के लकी ड्रॉ में नाम निकले हैं, उनका डीडीए से भी कोई संबंध नहीं है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि किसी तरह की कोई गड़बड़ी हुई है।
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