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This Article is From Jul 10, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने रेस्टोरेंट चेन सरवना भवन के मालिक की यह अजीब मांग ठुकराई

सरवना भवन के मालिक पी राजगोपाल ने जेल में समर्पण करने से छूट देने और अस्पताल में भर्ती को ही जेल मान लेने की मांग की थी

सुप्रीम कोर्ट ने रेस्टोरेंट चेन सरवना भवन के मालिक की यह अजीब मांग ठुकराई
सरवना भवन के मालिक पी राजगोपाल.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के जुर्म मे उम्रक़ैद की सजा पाए सरवना भवन के मालिक पी राजगोपाल की जेल में समर्पण करने से छूट देने और अस्पताल में भर्ती को ही जेल मान लेने की मांग ठुकरा दी.

राजगोपाल ने बीमारी के कारण जेल जाने से छूट मांगी थी. राजगोपाल को कर्मचारी की पत्नी से शादी करने के लिए कर्मचारी की हत्या करने के जुर्म मे उम्रक़ैद की सजा हुई है.

उच्चतम न्यायालय ने 2001 के कर्मचारी के अपहरण और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा की सजा शुरू करने में मोहलत देने के लिए रेस्तरां चेन सरवना भवन के मालिक पी राजगोपाल की याचिका खारिज कर दी. वे अपने चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगाकर एम्बुलेंस में मद्रास हाईकोर्ट पहुंचे थे. 72 वर्षीय राजगोपाल ने दावा किया था कि वे अस्वस्थ थे. न्यायमूर्ति एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा, "अगर वे इतने बीमार थे, तो उन्होंने अपनी अपील की सुनवाई के दौरान एक दिन के लिए भी बीमारी का संकेत क्यों नहीं दिया?"

राजगोपाल दक्षिण भारतीय व्यंजनों के चेन रेस्टोरेंट सरवना भवन का मालिक है. हत्या के आरोप में दोषी करार दिए जाने और आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद पी राजगोपाल ने मंगलवार को चेन्नई की एक अदालत में समर्पण कर दिया. इसके बाद उसे जेल भेज दिया गया. अपने कर्मचारी प्रिंस संतकुमार की हत्या के मामले में राजगोपाल को दोषी पाया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के मोहलत देने से इनकार करने के कुछ घंटों बाद ही राजगोपाल ने समर्पण कर दिया. वह अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में एक ऑक्सीजन मास्क के साथ एक एम्बुलेंस में आया और व्हीलचेयर में न्यायाधीश के सामने पेश हुआ.

देश और विदेशों में लोकप्रिय रेस्तरां श्रंखला के संस्थापक राजगोपाल को एक सत्र अदालत ने संतकुमार की हत्या के आरोप में 10 साल जेल की सजा सुनाई थी. संतकुमार की पत्नी से वह शादी करके उसे अपनी तीसरी पत्नी बनाना चाहता था. जब महिला ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो उसने उसके पति को मरवा दिया.

सत्र अदालत के निर्णय के खिलाफ उसने मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन यहां उनकी सजा उम्रकैद तक बढ़ा दी गई.  शीर्ष अदालत ने मार्च में सजा बरकरार रखी थी और उसे सात जुलाई को समर्पण करना था.

उसने बीमारी का हवाला देते हुए सात जुलाई को अपने कार्यकाल की शुरुआत में देरी के लिए सोमवार को शीर्ष अदालत का रुख किया, जहां से उसे निराशा ही हाथ लगी.

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