यह ख़बर 20 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

राजीव गांधी के तीन हत्यारों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा से राहत पाने वाले तीन दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले पर आज रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के इस निर्णय में कुछ प्रक्रियातगत खामियां हैं।

फैसले पर कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी याचिका तीन लोगों (संथन, मुरुगन और पेरारीवलन) के खिलाफ थी। बाकी हत्यारों के खिलाफ (नलिनी श्रीहरन, रॉबर्ट पायस, रविचंद्रन और जयकुमार) भी याचिका दायर करेंगे।

प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इन तीन कैदियों के मामले में यथास्थिति बनाए रखने का राज्य सरकार को निर्देश दिया। इन तीन कैदियों की मौत की सजा शीर्ष अदालत ने उम्र कैद में तब्दील कर दी थी। न्यायालय ने कहा कि चार अन्य दोषियों की सजा माफी के मामले में केन्द्र नई याचिका दायर कर सकता है।

कोर्ट ने केन्द्र सरकार की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार ने कानून में प्रतिपादित सभी प्रक्रियागत बिन्दुओं का पालन नहीं किया है। इसलिए केन्द्र की अर्जी में उठाये गए सवालों पर विचार किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि वह कैदियों की सजा माफ करने का राज्य सरकार का अधिकार छीन नहीं रहा है, लेकिन राज्यों को प्रक्रिया का पालन करना होगा।

कोर्ट ने इसके साथ ही तमिलनाडु सरकार और इन दोषियों को नोटिस जारी किए। इन सभी को दो सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना है। इस मामले में कोर्ट अब 6 मार्च को आगे विचार करेगा।

इससे पहले, तमिलनाडु सरकार ने केन्द्र सरकार की अर्जी पर जोरदार तरीके से विरोध किया। राज्य सरकार ने कैदियों की रिहाई पर रोक लगाने का आदेश नहीं देने का अनुरोध किया। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, हम राज्य सरकार के अधिकार को कमतर करके नहीं आंक रहे हैं, लेकिन उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर गौर कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का परिणाम स्वत: ही सजा में माफी नहीं हो सकता है और जेल से कैदियों की रिहाई से पहले कानून में प्रतिपादित उचित प्रक्रिया का पालन करना ही होगा। इससे पहले आज सुबह केन्द्र सरकार ने इस मामले के दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले पर रोक के लिये न्यायालय में अर्जी दायर की। न्यायालय इस पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया।

केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल मोहन परासरन ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया। उनका कहना था कि तीन दोषियों की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने के शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार की याचिका पर फैसला होने तक राज्य सरकार को इन कैदियों को रिहा करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने दया याचिकाओं के निबटारे में 11 साल का विलंब होने के आधार पर राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी संतन, मुरूगन (दोनों श्रीलंकाई तमिल हैं) और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था।

कोर्ट के इस निर्णय के बाद राज्य सरकार ने बुधवार को ही इस मामले के सभी सात दोषियों को रिहा करने का फैसला कर लिया था।

संतन, मुरूगन और पेरारिवलन इस समय वेल्लोर जेल में बंद हैं। राज्य सरकार ने इनके साथ ही 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा भुगत रहे चार अन्य दोषियों नलिनी, राबर्ट पायस, जयकुमार तथा रवीचंद्रन को भी राज्य सरकार ने रिहा करने का फैसला किया था।

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राज्य सरकार ने इनकी रिहाई के मामले में अपने लिए और केन्द्र सरकार के लिए तीन दिन की समय सीमा निर्धारित की थी। टाडा अदालत ने जनवरी, 1998 में राजीव गांधा हत्याकांड के अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुये उन्हें मौत की सजा दी थी। शीर्ष अदालत ने 11 मई, 1999 को इसकी पुष्टि कर दी थी।