नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने जयपुर साहित्य महोत्सव में कथित रूप से दलित विरोधी टिप्पणियां करने वाले प्रमुख शिक्षाविद और समाजशास्त्री आशीष नंदी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है।
पीठ ने नंदी की गिरफ्तारी पर रोक तो लगाई, लेकिन साथ ही कहा कि वह इस तरह के बयान देना जारी नहीं रख सकते। आपका इरादा कुछ भी हो, लेकिन आप इस तरह के बयान नहीं दे सकते। पीठ ने 76-वर्षीय नंदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी से कहा, अपने मुवक्किल से कहिए कि उनके पास इस तरह के बयान देने का कोई लाइसेंस नहीं है।
शीर्ष अदालत ने नंदी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग वाली उनकी याचिका पर केंद्र और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करके उनका जवाब मांगा। प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 26 जनवरी को जयपुर साहित्य महोत्सव में उनके द्वारा दिए गए बयान के संबंध में दर्ज प्राथमिकी के तहत याचिकाकर्ता (नंदी) की इस बीच गिरफ्तारी नहीं होगी। पीठ ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और बिहार की सरकारों को भी नोटिस जारी करके चार हफ्तों में उनका जवाब मांगा, क्योंकि बयानों के संबंध में नंदी के खिलाफ रायपुर, नासिक और पटना में भी प्राथमिकी दर्ज हुई हैं।
इस पीठ में न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन भी शामिल थे। पीठ ने नंदी से कहा कि बयान जिम्मेदार तरीके से दिए जाते हैं। जब लेखी ने पीठ से यह कहने का प्रयास किया कि किसी व्यक्ति को उसके विचार जाहिर करने के लिए सजा नहीं दी जा सकती, तो अदालत ने कहा, आप कुछ भी ऐसा क्यों कहते हैं, जो (कहना) आपका इरादा नहीं है।
अदालत में लेखी ने कहा कि एक अपराध के लिए अलग-अलग जगहों पर कई प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकती, जिस पर पीठ ने कहा कि इससे हर जगह के लोग प्रभावित होते हैं। इस तरह की बातें मत कीजिए।
जब लेखी ने कहा कि उन्माद पैदा किया गया है, इस पर पीठ ने कहा, "(उन्माद) कौन पैदा कर रहा है। बयान किसने दिए। कृपया वह कहिए, जो आपके मुवक्किल ने आपसे कहने को कहा है।
गौरतलब है कि जयपुर साहित्य महोत्सव में एक परिचर्चा के दौरान नंदी ने कथित रूप से कहा था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) के लोग ज्यादा भ्रष्ट होते हैं। नंदी के खिलाफ अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अधिवक्ता ने कहा कि नंदी अपने कथित बयानों के लिए माफी मांग चुके हैं। नंदी के वकील ने अपनी दलीलें यह कहते हुए शुरू कीं कि क्या कानून किसी विचार को सजा दे सकता है। हालांकि पीठ ने कहा कि हम बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। नंदी ने प्राथमिकी खारिज करने की मांग को लेकर गुरुवार को शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी।
पीठ ने नंदी की गिरफ्तारी पर रोक तो लगाई, लेकिन साथ ही कहा कि वह इस तरह के बयान देना जारी नहीं रख सकते। आपका इरादा कुछ भी हो, लेकिन आप इस तरह के बयान नहीं दे सकते। पीठ ने 76-वर्षीय नंदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी से कहा, अपने मुवक्किल से कहिए कि उनके पास इस तरह के बयान देने का कोई लाइसेंस नहीं है।
शीर्ष अदालत ने नंदी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग वाली उनकी याचिका पर केंद्र और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करके उनका जवाब मांगा। प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 26 जनवरी को जयपुर साहित्य महोत्सव में उनके द्वारा दिए गए बयान के संबंध में दर्ज प्राथमिकी के तहत याचिकाकर्ता (नंदी) की इस बीच गिरफ्तारी नहीं होगी। पीठ ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और बिहार की सरकारों को भी नोटिस जारी करके चार हफ्तों में उनका जवाब मांगा, क्योंकि बयानों के संबंध में नंदी के खिलाफ रायपुर, नासिक और पटना में भी प्राथमिकी दर्ज हुई हैं।
इस पीठ में न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन भी शामिल थे। पीठ ने नंदी से कहा कि बयान जिम्मेदार तरीके से दिए जाते हैं। जब लेखी ने पीठ से यह कहने का प्रयास किया कि किसी व्यक्ति को उसके विचार जाहिर करने के लिए सजा नहीं दी जा सकती, तो अदालत ने कहा, आप कुछ भी ऐसा क्यों कहते हैं, जो (कहना) आपका इरादा नहीं है।
अदालत में लेखी ने कहा कि एक अपराध के लिए अलग-अलग जगहों पर कई प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकती, जिस पर पीठ ने कहा कि इससे हर जगह के लोग प्रभावित होते हैं। इस तरह की बातें मत कीजिए।
जब लेखी ने कहा कि उन्माद पैदा किया गया है, इस पर पीठ ने कहा, "(उन्माद) कौन पैदा कर रहा है। बयान किसने दिए। कृपया वह कहिए, जो आपके मुवक्किल ने आपसे कहने को कहा है।
गौरतलब है कि जयपुर साहित्य महोत्सव में एक परिचर्चा के दौरान नंदी ने कथित रूप से कहा था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) के लोग ज्यादा भ्रष्ट होते हैं। नंदी के खिलाफ अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अधिवक्ता ने कहा कि नंदी अपने कथित बयानों के लिए माफी मांग चुके हैं। नंदी के वकील ने अपनी दलीलें यह कहते हुए शुरू कीं कि क्या कानून किसी विचार को सजा दे सकता है। हालांकि पीठ ने कहा कि हम बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। नंदी ने प्राथमिकी खारिज करने की मांग को लेकर गुरुवार को शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी।
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