जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जारी पाबंदियों के खिलाफ दी गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत पाबंदियों के आदेश देते समय नागरिकों की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे की अनुपातिका को देखकर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए. बार- बार एक ही तरीके के आदेश जारी करना उल्लंघन है. जम्मू कश्मीर सरकार धारा 144 लगाने के फैसले को पब्लिक करे और चाहे तो प्रभावित व्यक्ति उसे चुनौती दे सकता है. गौरतलब है कि सरकारों पर इस बात का हमेशा आरोप लगा रहा है कि वे विरोध की आवाज को दबाने के लिए धारा-144 का दुरुपयोग करती हैं और शांति-व्यवस्था के नाम पर इसे थोप दिया जाता है. हाल ही में जम्मू-कश्मीर, नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भी ऐसे आरोप लगे हैं.
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में जारी पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट की 7 खरी-खरी बातें
जम्मू-कश्मीर पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 144 लगाना भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है. सरकार जम्मू-कश्मीर में 144 लगाने को लेकर भी जानकारी सार्वजनिक करे. समीक्षा के बाद जानकारी को पब्लिक डोमेन में डालें ताकि लोग कोर्ट जा सकें. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि धारा 144 सीआरपीसी के तहत बार-बार आदेश देने से सत्ता का दुरुपयोग होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को प्रतिबंधों के सभी आदेशों को प्रकाशित करना चाहिए और कम प्रतिबंधात्मक उपायों को अपनाने के लिए अनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए.
अदालत ने इस दौरान जिन प्रमुख बातों पर जोर दिया वह है, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इंटरनेट का अधिकार शामिल है. इंटरनेट पर प्रतिबंधों पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन करना होगा. अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट का निलंबन मंजूर नहीं है. यह केवल एक उचित अवधि के लिए हो सकता है और वक्त-वक्त पर इसकी समीक्षा की जानी चाहिए.
Jammu Kashmir: इंटरनेट जीने के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार, जहां जरूरत, वहां तुरंत हो बहाल
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