बच्चों की कस्टडी और संरक्षकता में कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. लंदन में रहने वाली सुलोचना रानी की याचिका पर यह नोटिस केंद्र को जारी किया गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि भारतीय कानून के तहत साझा माता-पिता की अनुपस्थिति में और पति-पत्नी के अलगाव के मामले में किसी एक को विशेष रूप से बच्चे की हिरासत सौंपना माता-पिता और बच्चे के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है.
हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 (ए) और 7, बच्चे और अभिभावक अधिनियम की धारा 25 और शरीयत अधिनियम, 1937 उनकी असंवैधानिकता की हद तक है. इस मामले में कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है.
देश में अभी जो कानूनी प्रावधान मौजूद हैं उसके अनुसार अलगाव की स्थिति में माता-पिता में से किसी एक को विशेष रूप से बच्चों की हिरासत सौंपने की इजाजत देते हैं. जो कानूनी व्यवस्था बनी हुई है उसके अनुसार क़ानून कस्टडी के पक्ष में एक मजबूत अनुमान बनाते हैं. यह अनुमान पति/पत्नी के मौलिक अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है जिन्हें कस्टडी के अधिकारों और बच्चे के मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया है. ऐसे में बच्चे माता-पिता दोनों की देखभाल और प्यार से वंचित होंगे.
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