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This Article is From Sep 17, 2018

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि बढ़ी

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को ऐलगार परिषद के बाद कोरेगांव-भीमा गांव में हुयी हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर इन सभी को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था.

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि बढ़ी
फाइल फोटो
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि बढ़ा दी है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट 19 सितंबर को पुणे पुलिस के रिकॉर्ड देखेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिबर्टी की रक्षा करेंगे. पुलिस के पास जो उनके खिलाफ दस्तावेज हैं वो भी देखेंगे. अगर इसके बाद कोर्ट के दखल की जरूरत होगी तो देखेंगे. कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस के दस्तावेजों में कुछ नहीं मिला तो एफआईआर को रद्द कर सकते हैं.  आपको बता दें कि वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर सहित पांच लोगों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करवाई है. सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर प्रोफेसर सुधा भारद्वाज, वामपंथी विचारक वरवर राव, वकील अरुण फरेरा, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और वेरनन गोंजाल्विस की गिरफ्तारियों को चुनौती दी है. 

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांचों एक्टीविस्ट को नजरबंद किया गया है. महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को ऐलगार परिषद के बाद कोरेगांव-भीमा गांव में हुयी हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर इन सभी को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक अपने घरों में ही नजरबंद करने का आदेश देते हुये कहा था, ‘‘लोकतंत्र में असहमति सेफ्टी वाल्व है.’’ इसके बाद इस नजरबंदी की अवधि आज तक के लिये बढ़ा दी गयी थी.​

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केंद्र सरकार ने इस तरह की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट के दखल का विरोध किया है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा की ओर से दलील गई कि नक्सलवाद की समस्या एक गंभीर मामला है जो देशभर में फैल रहा है.  इस तरह की याचिकाओं को सुना जाएगा तो ये एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा.  क्या संबंधित अदालत इस तरह एक मामलों को नहीं देख सकती. हर मामले को सुप्रीम कोर्ट में क्यों आते हैं? उन्होंने कहा कि  ये काम निचली अदालत का है और ये कानूनी प्रक्रिया के तहत होना चाहिए.  क्या ये संदेश नहीं दिया जा रहा है कि निचली अदालत ऐसे आपराधिक मामलों में फैसला करने के काबिल नहीं है.

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वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस केस में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से जांच होगी तभी सच्चाई सामने आ जाएगी.  दोनों FIR में पांचों का नाम नहीं है.  उन्होंने सम्मेलन में भाग नहीं लिया था. 
 

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